Friday, December 25, 2015

न तुम जीते न हम हारे


टिप्पणी 

अब यह मान लेने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए कि मेडिकल छात्रा की हादसे में मौत के बाद उपजा आक्रोश और उसके बाद चले घटनाक्रम का पटाक्षेप इस तरह नाटकीय अंदाज में होना पहले से ही तय था। यह स्वीकारने में भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि जो कुछ जायज/ नायायज हुआ उसमें दोनों ही पक्षों की कहीं न कहीं ज्यादा या कम भागीदारी रही है। तभी तो समझौते की बुनियाद रखने में किसी तरह की कोई किन्तु-परन्तु नहीं हुई। थोड़ी सी मान-मनोव्वल और ना नुकर के बाद अंततोगत्वा सहमति की इबारत तैयार हो गई। ना छात्र कानून हाथ में लेते और ना पुलिस बिना चेतावनी दिए लाठीवार करती तो शायद इस तरह के समझौते के आसार कम ही बनते। गलती के रूप में सामने आई दोनों ही पक्षों की कमजोर कड़ी ने इस सुलह में प्रमुख एवं कारगर भूमिका निभाई। खैर, जिस तरह के हालात पैदा कर दिए गए उसका सबसे मुफीद रास्ता इस सुलह के अलावा और कोई था भी नहीं। रेजीडेंट की चेतावनी अगर धरातल पर उतरती तो हालात और भी विकट हो जाते।
वैसे विरोध के तरीके और भी कई हो सकते हैं लेकिन रेजीडेंट को सबसे कारगर एवं जल्दी मांग मनवाने का शोर्टकट व सबसे बड़ा हथियार अक्सर हड़ताल ही नजर आता है। यह तो गनीमत रही कि बात हड़ताल तक नहीं पहुंची। अगर बात बढ़ती तो फिर पुलिस व मेडिकल छात्रों की इस लड़ाई की गाज आम जनता पर ही गिरना तय था। समझौते को लेकर भले ही दोनों पक्ष अपने-अपने हिसाब से व्याख्या करंे या उसके अर्थ निकालें लेकिन इसका बड़ा फायदा आम जन को ही मिला है। हां, इतना जरूर है कि इस समूचे घटनाक्रम और समझौते ने आम जन के जेहन में कई सवाल खड़े कर दिए हैं जो कई दिनों तक सालते रहेंगे। मसलन, सहानुभूति की लहर पर सवार होकर जिस न्याय की उम्मीद की जा रही थी क्या वास्तव में वह न्याय उस छात्रा को मिला? जिन मांगों को लेकर आंदोलन किया क्या वे मुकाम तक पहुंची? क्या छात्रों के शरीर पर बने जख्मों के लिए यह समझौता कोई राहत या मलहम का काम कर पाएगा? शांतिभंग के आरोप में मेडिकल छात्रों के साथ गिरफ्तार किए बाकी छात्र कौन थे तथा उनको किस किए की सजा मिली, क्या इसका खुलासा कभी हो पाएगा? जो तोडफ़ोड़ हुई क्या इस समझौते से उसकी भरपाई हो पाएगी? दोनों पक्ष में किसी एक की भूमिका भी अगर सही होती तो क्या समझौते की राह इतनी जल्दी आसान हो पाती?
बहरहाल, उक्त सवाल भले ही अनुत्तरित रहे लेकिन इसमें किस पक्ष को कितनी राहत मिली यह तय करना भी मुश्किल है। हां, इतना जरूर है कि अगर जीत है तो भी दोनों पक्षों की है और हार भी है तो भी दोनों की। बिलकुल तुम्हारी भी जय-जय, हमारी जय-जय, ना तुम जीते ना हम हारे की तर्ज पर। उम्मीद की जानी चाहिए दोनों ही पक्ष इस घटनाक्रम से सबक जरूर लेंगे। एक नजीर के रूप में इसको आत्मसात करेंगे। क्योंकि जोर आजमाइश एवं शक्ति प्रदर्शन के रूप में तब्दील होते-होते बचा यह मामला अगर और आगे तक जाता है तो निंसदेह दोनों ही पक्षों की छवि को नुकसान जरूर पहुंचाता।

राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 29 अगस्त 15 के अंक में प्रकाशित 

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