टिप्पणी
यह तो गनीमत है कि बीकानेर में राज्य के अन्य जिलों की तुलना में कम बारिश हुई है, अन्यथा हालात और भी खराब होते। फिलहाल जितनी भी बारिश हुई है, उसने शहर को बदहाल कर दिया है। सीवरेज और ड्रेनेज दोनों ही व्यवस्थाएं लगभग जवाब दे चुकी हैं। दोनों ही व्यवस्थाओं में इतना घालमेल है कि पता ही नहीं चलता है कि यह ड्रेनेज लाइन है या सीवरेज। सीवरेज की लाइन से बारिश का पानी निकल रहा है तो ड्रेनेज लाइन में सीवरेज का पानी जा रहा है। समय पर सफाई ना होने के कारण नाले अवरुद्ध हैं और बरसाती पानी घरों में घुस रहा है। शहर के अंदरुनी गली-मोहल्लों के साथ-साथ प्रमुख रास्ते भी गंदगी से बजबजा रहे हैं। जगह-जगह सड़कों पर गंदा पानी जमा है और सड़ांध मार रहा है। सड़कें टूटकर गड्ढों में तब्दील हो हादसों को न्योता दे रही हैं। कई जगह तो पैदल निकलना तक मुश्किल हो रहा है। इन समस्याओं से समूचा शहर परेशान है। इस प्रकार व्यवस्था में यह दोष ही लोगों के आक्रोश का कारण बन रहा है। आक्रोश भी इसीलिए ज्यादा है कि उनकी बात को ठीक से सुना नहीं जा रहा है। समस्या समाधान तो बाद की बात है।
पुरानी गिन्नाणी व मेहरों का बास के लोगों ने शनिवार को जो पीड़ा बयां की है वो कड़वी हकीकत है। वो सोचने पर मजबूर करती है और व्यवस्था पर सवाल भी उठाती है। आखिर कब तक लोग मूलभूत सुविधाओं में सुधार के लिए यूं ही चिल्लाते रहेंगे? कब तक ज्ञापन एवं प्रदर्शनों का दौर चलेगा। सीवरेज, नाली व सफाई जैसी बुनियादी सुविधाओं में सुधार का इंतजार क्यों। क्यों अधिकारी, जनप्रतिनिधि इन समस्याओं से ऊपर उठकर सोच नहीं पा रहे हैं? क्या इस प्रकार के प्रदर्शनों से समस्याओं के समाधान का कोई रास्ता निकलेगा? दअरसल, निगम अधिकारियों के लिए प्रदर्शन आम हो गए हैं। वे इन प्रदर्शनों के आदी हो चुके हैं। छिटपुट ज्ञापन व पत्रों से तो हलचल ही दिखाई नहीं देती। आक्रोश ज्यादा तेज हुआ तो जरूर निगम का अमला कुछ हरकत करता दिखाई देता है और तात्कालिक आक्रोश जैसे-तैसे शांत भी कर दिया जाता है। विडम्बना देखिए आक्रोश शांत हो भी जाता है लेकिन समस्या यथावत रहती है और प्रदर्शनों का दौर बदस्तूर चलता रहता है।
बहरहाल, शहर जिस गति से बढ़ रहा है न तो उस रफ्तार से सुविधाओं में विस्तार हो रहा है और ना ही जो सुविधाएं हैं उनकी समय पर खैर-खबर ली जा रही है। सीवरेज लाइन के चैम्बर जगह-जगह लीकेज हैं। उनकी सफाई का परंपरागत तरीका ही काम में लिया जा रहा है। सीवरेज लाइन भी पुरानी हो चुकी है। ऐसे में इन सब समस्याओं को ध्यान में रखते हुए फिर से विचार करने की जरूरत है। अब समय आ गया है कि शहर के भीतरी इलाकों के लिए दीर्घकालीन योजना बने। ठोस एवं कारगर उपाय खोजे जाएं। बिना किसी राजनीतिक चश्मे के समूचे शहर के समग्र विकास का खांचा दूरदर्शिता के साथ खींचना अब बेहद जरूरी हो गया है। हालात बद से बदतर होने तक जा पहुंचे हैं, इसलिए अब स्थायी समाधान खोज ही लेना चाहिए।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 01 अगस्त 15 के अंक में प्रकाशित
यह तो गनीमत है कि बीकानेर में राज्य के अन्य जिलों की तुलना में कम बारिश हुई है, अन्यथा हालात और भी खराब होते। फिलहाल जितनी भी बारिश हुई है, उसने शहर को बदहाल कर दिया है। सीवरेज और ड्रेनेज दोनों ही व्यवस्थाएं लगभग जवाब दे चुकी हैं। दोनों ही व्यवस्थाओं में इतना घालमेल है कि पता ही नहीं चलता है कि यह ड्रेनेज लाइन है या सीवरेज। सीवरेज की लाइन से बारिश का पानी निकल रहा है तो ड्रेनेज लाइन में सीवरेज का पानी जा रहा है। समय पर सफाई ना होने के कारण नाले अवरुद्ध हैं और बरसाती पानी घरों में घुस रहा है। शहर के अंदरुनी गली-मोहल्लों के साथ-साथ प्रमुख रास्ते भी गंदगी से बजबजा रहे हैं। जगह-जगह सड़कों पर गंदा पानी जमा है और सड़ांध मार रहा है। सड़कें टूटकर गड्ढों में तब्दील हो हादसों को न्योता दे रही हैं। कई जगह तो पैदल निकलना तक मुश्किल हो रहा है। इन समस्याओं से समूचा शहर परेशान है। इस प्रकार व्यवस्था में यह दोष ही लोगों के आक्रोश का कारण बन रहा है। आक्रोश भी इसीलिए ज्यादा है कि उनकी बात को ठीक से सुना नहीं जा रहा है। समस्या समाधान तो बाद की बात है।
पुरानी गिन्नाणी व मेहरों का बास के लोगों ने शनिवार को जो पीड़ा बयां की है वो कड़वी हकीकत है। वो सोचने पर मजबूर करती है और व्यवस्था पर सवाल भी उठाती है। आखिर कब तक लोग मूलभूत सुविधाओं में सुधार के लिए यूं ही चिल्लाते रहेंगे? कब तक ज्ञापन एवं प्रदर्शनों का दौर चलेगा। सीवरेज, नाली व सफाई जैसी बुनियादी सुविधाओं में सुधार का इंतजार क्यों। क्यों अधिकारी, जनप्रतिनिधि इन समस्याओं से ऊपर उठकर सोच नहीं पा रहे हैं? क्या इस प्रकार के प्रदर्शनों से समस्याओं के समाधान का कोई रास्ता निकलेगा? दअरसल, निगम अधिकारियों के लिए प्रदर्शन आम हो गए हैं। वे इन प्रदर्शनों के आदी हो चुके हैं। छिटपुट ज्ञापन व पत्रों से तो हलचल ही दिखाई नहीं देती। आक्रोश ज्यादा तेज हुआ तो जरूर निगम का अमला कुछ हरकत करता दिखाई देता है और तात्कालिक आक्रोश जैसे-तैसे शांत भी कर दिया जाता है। विडम्बना देखिए आक्रोश शांत हो भी जाता है लेकिन समस्या यथावत रहती है और प्रदर्शनों का दौर बदस्तूर चलता रहता है।
बहरहाल, शहर जिस गति से बढ़ रहा है न तो उस रफ्तार से सुविधाओं में विस्तार हो रहा है और ना ही जो सुविधाएं हैं उनकी समय पर खैर-खबर ली जा रही है। सीवरेज लाइन के चैम्बर जगह-जगह लीकेज हैं। उनकी सफाई का परंपरागत तरीका ही काम में लिया जा रहा है। सीवरेज लाइन भी पुरानी हो चुकी है। ऐसे में इन सब समस्याओं को ध्यान में रखते हुए फिर से विचार करने की जरूरत है। अब समय आ गया है कि शहर के भीतरी इलाकों के लिए दीर्घकालीन योजना बने। ठोस एवं कारगर उपाय खोजे जाएं। बिना किसी राजनीतिक चश्मे के समूचे शहर के समग्र विकास का खांचा दूरदर्शिता के साथ खींचना अब बेहद जरूरी हो गया है। हालात बद से बदतर होने तक जा पहुंचे हैं, इसलिए अब स्थायी समाधान खोज ही लेना चाहिए।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 01 अगस्त 15 के अंक में प्रकाशित
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