टिप्पणी
बीकानेर में जनहित के बड़े काम तय समय सीमा में पूरे होने की
तो कल्पना ही क्या की जाए, जब अच्छी खासी मशक्कत एवं पसीना बहाने के
बाद भी छोटे-छोटे काम ही नहीं होते। सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते-लगाते फरियादियों की चप्पलें भले ही घिस जाएं, लेकिन
अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। उनके पत्थर दिल
को जरा सा भी तरस नहीं आता। कहने को पीडि़तों के प्रार्थना पत्र
जरूर रख लिए जाते हैं, पर कार्रवाई के नाम पर कोई हरकत
दिखाई नहीं देती। शहर में जनहित से जुड़े कामों को दरकिनार
करने वाले अधिकारियों की न केवल लम्बी फेहरिस्त है बल्कि
उनकी कार्यप्रणाली के भी कई किस्से व उदाहरण हैं। शहर भर
में उधड़ी सड़कें, उफान मारते सीवर, बंद पड़ी रोडलाइटें और
बेतरतीब यातायात व्यवस्था कुछ जीते-जागते नमूने हैं। पुलिस लाइन से रोशनीघर चौराहे तक की सड़क भी कुछ ऐसे ही अधिकारियों की उदासीनता, लापरवाही एवं अकर्मण्यता की जीती जागती नजीर है। दो साल से यह सड़क खुदी हुई है। लोग गड्ढों में धक्के खा रहे हैं, धूल फांक रहे हैं। वाहन चालक हिचकोले खाते हुए गुजर रहे हैं। इतना लम्बा समय बीतने तथा लोगों को हो
रही असुविधा को नजरअंदाज कर सभी जि मेदार चुप्पी साधे बैठे
हैं। ऐसी समस्याओं को लेकर पता नहीं क्यों सब के सब आंखों पर
पट्टी बांधकर 'धृतराष्ट्र' होने का धर्म निभा रहे हैं। वैसे,इस मामले में पीडि़त एवं प्रभावित जिला कलक्टर तक गुहार लगा चुके हैं, लेकिन समस्या यथावत है।
सड़क अब इस हाल में भी नहीं रह गई है कि उसकी मरम्मत की जा
सके। अब इसे नए सिरे से ही बनाना होगा। सार्वजनिक निर्माण का भी
यही कहना है कि सड़क नई बनानी पड़ेगी। बड़ा सवाल है कि यह
बनेगी कैसे? दरअसल, पहले सीवरेज लाइन तथा बाद में पेयजल पाइप
लाइन डालने से यह सड़क पूरी तरह टूट गई। पर्याप्त बजट न होने
के कारण यह सड़क फुटबाल बनी हुई है। जलदाय विनभाग तो अपने
हिस्से की राशि जमा भी करवा चुका है, लेकिन निगम इस मामले में
उतनी राशि नहीं दे रहा है जिससे सड़क बन सके। बस इसीलिए मामला
अटका हुआ है। लेकिन अंतत: फैसला तो निगम को ही करना है।
निगम के इस ना-नुकर के 'खेल' में जनभावनाओं के साथ सरासर
खुलेआम खिलवाड़ हो रहा है।
यही हाल सीवरेज समस्या से परेशान शहर के हैं। बात ज्यादा बढ़ जाने पर
फौरी निर्देश तथा कार्रवाई कर मामला निपटाने की कोशिश की जाती
है, लेकिन मूल समस्या सतह के नीचे पहले से भी ज्यादा विकराल हो खदबदाती
रहती है। नए ठेकेदार के आने के बाद भी शहर की रोडलाइट समस्या भी
हल नहीं हो पाई है। गाहे-बगाहे ठेकेदार को भुगतान कर समस्या हल होने
की खोखली कोशिशों तक ही मामला सीमित है। कहने की जरूरत नहीं है
विकास कार्यों को लेकर मौजूदा निगम प्रशासन एवं उसके मुखिया
की भूमिका कैसी है। आलम यह है कि बुनियादी सुविधाओं जैसे
काम भी सहजता के साथ नहीं हो रहे हैं। तभी तो जनहित से जुड़ी
समस्याओं को लेकर, न केवल आमजन बल्कि पार्षदों को भी शिकायत
रहती है कि उनकी बातों पर गौर नहीं होता है। निगम से
लेकर विधानसभा और फिर लोकसभा तक एक ही दल की सरकार
होने के बावजूद समस्याओं का समाधान न होना जनप्रतिनिधियों को
कठघरे में खड़ा करता है। आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि काम नहीं हो रहे हैं। एक छोटी सी सड़क को जो दो साल में भी ठीक नहीं करवा सके उनसे
और बड़े की क्या उम्मीद की जा सकती है। देर बहुत हो चुकी है। जिम्मेदारों को
अब पहल करते हुए जो भी रुकावट या बाधा है, उसका निस्तारण
कर तत्काल जनहित में निर्णय लेना चाहिए। वैसे भी दो साल तक धैर्य
रखना सामान्य बात नहीं है।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 16 अक्टूबर 15 के अंक में प्रकाशित
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