मेरे संस्मरण-2
यह अलग बात है कि गुमानसिंह भी बाद में भर्ती हुए। खैर, मेरा नम्बर आया तो धड़कन कुछ तेज हो गई लेकिन किस्मत यहां करवट बदल रही थी। शारीरिक नाप तौल एवं जांच के बाद मेरा चयन कर लिया गया। इसके बाद पता लिखवाने को कहा गया तो मैंने मना कर दिया। कहा कि मेरे साथ गांव के दो बंदे ही जब भर्ती नहीं हुए तो फिर मैं क्या करूंगा। मेरी बात सुनकर सैन्य अधिकारी मुस्कुराए और अचानक चेहरे के भाव बदलते हुए बोले अब कुछ नहीं हो सकता है। मैंने दुबारा आग्रह किया तो कड़क होते हुए बोले ज्यादा नखरे नहीं चुपचाप नाम लिखा दे वरना पुलिस पकड़ लेगी और नासिक (महाराष्ट्र ) ले जाकर छोड़ेगी। मैं डर गया और चुपचाप पता लिखवा दिया। इसके बाद मेरा नासिक का रेल का पास और अन्य कागजात बन गए। पास और कागजात मेरे को देते हुए कहा गया कि कल सुबह आ जाना। आपको जयपुर जाना है। खैर, मैं शाम को घर लौटा और मां व कंवरजी (पिताजी ) को जब यह खबर सुनाई तो दोनों रोने लगे। कहने अभी यह बच्चा है। इसके नौकरी के दिन थोड़े ही हैं। कहां जाएगा इस उम्र में। मैं परिवार में सबसे छोटा था। घर में हड़कंप मच गया था। चर्चा इसी बात को लेकर थी कि आखिर किस तरह भर्ती को निरस्त करवाया जाए। अचानक काकोसा बाघ सिंह को बुलाया गया। वे कुछ समय सेना में रह चुके थे। उनको कहा कि कल झुंझुनूं भर्ती दफ्तर जाकर इन्द्र का (मेरा) नाम कटवा कर आओ। काकोसा ने हां भर थी लेकिन मां एवं कवंरजी की आंखों में उस रात नींद नहीं थी। मैं भी ऊहापोह वाली स्थिति में था। किसी तरह रात बीती। सुबह थैले में कपड़े आदि रख कर हम दोनों झुंझुनूं पहुंचे। भर्ती दफ्तर पहुंचते ही काकोसा ने कप्तान को सेल्यूट मारी और पास जाकर बोले साब, यह अभी टाबर है। भूल से भर्ती में आ गया। इसका बाप अंधा है और मां बूढ़ी है। घर पर मवेशी भी बहुत हैं। यह फौज में चला गया तो मां-बाप की सेवा कौन करेगा? कौन मवेशियों को संभालेगा? ऐसा करो साहब आप इस टाबर का नाम काट दो। कप्तान मथुरासिंह (संभवत: यही नाम था) काकोसा की बात सुन फिर मुस्कुराए। बोले, अब कुछ नहीं हो सकता है। इसके भर्ती संबंधी कागजात बन गए हैं। भर्ती नहीं होना है तो कोई बात नहीं लेकिन एक बार नासिक तो जाना ही पड़ेगा। अच्छा है इस बहाने नासिक घूम आएगा, आपका कौन सा किराया लग रहा है। कप्तान साहब की बात सुनकर काकोसा के पास कहने को कुछ नहीं बचा था। वो मेरे सिर पर हाथ रखकर गांव के लिए रवाना हो गए। मेरे साथ पातुसरी गांव का एक लड़का भर्ती हुआ था। नाम था नेमीचंद। हम दोनों झुंझुनूं से जयपुर के लिए रवाना हो गए। शाम होते-होते हम जयपुर पहुंच गए। आगरा के लिए हमारी ट्रेन रात बारह बजे थी। हम दोनों स्टेशन पर एक ही बैंच पर लेट गए। इस बीच मैंने झुंझुनूं कार्यालय से बनाकर दिए गए कागजात को स्टेशन पर इस उम्मीद के साथ फेंक दिया कि जब कागजात ही नहीं होंगे तो यकीनन भर्ती नहीं करेंगे। रात बजे हमारी गाड़ी आ गई और हम आगरा के लिए रवाना हो गए।
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