मेरी टिप्पणी
तो क्या यह मान लेना चाहिए कि आश्वासनों की रेवडिय़ां अब कारगर नहीं रही। या इस बात पर यकीन कर लिया जाए कि कार्यकर्ताओं को दिलासा देने के सारे रास्ते अवरूद्ध हो गए हैं। लगता तो यही है, कि जनता को संतुष्ट करने वाले तरकश के सारे तीर इस्तेमाल कर लिए गए हैं, तभी तो बीकानेर जिले के प्रभारी मंत्री ने खुद की प्रतिष्ठा से जोड़ते हुए ब्रह्मास्त्र रूपी बड़े बयान का रास्ता इख्तियार किया और उनको कहना पड़ा कि 'अगर काम नहीं हुए तो वे इस्तीफा दे देंगे। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी भी है कि प्रभारी मंत्री को इस तरह का बयान देने की नौबत आखिरकार आई ही क्यों? क्या कार्यकर्ता अब इससे कम पर संतुष्ट नहीं हो रहे या परम्परागत जवाब सुन सुृन कर उनके कान पक गए और वो अब कुछ नया सुनना चाहते हैं। खैर, कारण जो भी हो लेकिन प्रभारी मंत्री के बयान ने एक नई बहस को जन्म जरूर दे दिया है। कुछ इसी तरह का बड़ा बयान करीब पौने दो साल पहले बीकानेर में सरकार आपके द्वार अभियान के दौरान प्रदेश के चिकित्सा मंत्री ने भी दिया था। उन्होंने पीबीएम अस्पताल का निरीक्षण करते समय व्यवस्थाओं में सुधार के लिए अस्पताल में सर्जरी की जरूरत बताई थी। पीबीएम की व्यवस्था कितनी सुधरी? वहां आज के हालात किस तरह के हैं? मंत्री के बयानानुसार सर्जरी की दिशा में कितना काम हुआ? इन सब सवालों के बारे में शहर का हर प्रबुद्ध एवं जागरूक शख्स जानता है।
वैसे भी बीकानेर शहर के हालात किसी से छिपे हुए नहीं हैं। प्रदेश सरकार के दो साल तथा स्थानीय निगम का एक साल होने के बाद भी शहर व जिले में कोई उल्लेखनीय काम दिखाई नहीं देता। इसके बावजूद प्रभारी मंत्री अस्सी फीसदी काम होने का दावा करते हैं। अगर वाकई उनके दावों में दम है तो फिर शेष बीस प्रतिशत के लिए जनता के बीच जाने की मजबूरी क्यों आन पड़ी? और अगर वो सही हैं तो फिर उनके ही दावों की हवा उनकी पार्टी के लोग ही क्यों निकाल रहे हैं?
खैर, प्रभारी मंत्री सरकार के दो साल पूर्ण होने के बाद जिले के आला अधिकारियों के साथ विधानसभा क्षेत्रों में जाने तथा आमजन के अभाव अभियोग सुनने की बात कहते हैं। जनप्रतिनिधि को जनता के बीच जाना भी चाहिए, ताकि वास्तविकता का पता लग सके। जिले के साथ-साथ लगे हाथ उनको बीकानेर शहर का भ्रमण भी कर लेना चाहिए। बिलकुल अपने हिसाब से एकदम औचक निरीक्षण की तर्ज पर शहर में घूमना चाहिए ताकि वो अपनी आंखों से वह सब देख सके जो अधिकारी उनको दिखाना नहीं चाहते। प्रभारी मंत्री रात को अंधेरे में डूबे शहर का हाल भी जान लें तो उनको हकीकत पता लगेगी कि वास्तव में कितना काम हुआ है। यह सब इसीलिए भी जरूरी है क्योंकि समूचे शहर की समस्याओं से वाकिफ हुए बिना, उनको महसूस या देखे बिना तो इसी तरह के दावे किए जाते रहेंगे।
बहरहाल, बीकानेर की बदहाली बयानों से दूर नहीं होगी। बयानों की बारिश से भी अब भला नहीं होने वाला। बयानों के बवंडर में जनता को भरमाना किसी भी कीमत पर उचित नहीं है। दो साल पूर्ण होने के मौके पर बेहतर है बीकानेर को बेनजीर बनाने के ठोस एवं कारगर प्रयास हों। बचकाने एवं बेचारगी भरे बयानों से जनता वैसे ही आजिज आ चुकी है। उसकी सहनशीलता एवं धैर्य की परीक्षा लेने से अब बचना चाहिए। सरकार को अब ऐसा कुछ करना चाहिए कि आमजन को महसूस हो कि वाकई 'अच्छे दिन' चल रहे हैं।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 09 दिसम्बर 15 के अंक में प्रकाशित
तो क्या यह मान लेना चाहिए कि आश्वासनों की रेवडिय़ां अब कारगर नहीं रही। या इस बात पर यकीन कर लिया जाए कि कार्यकर्ताओं को दिलासा देने के सारे रास्ते अवरूद्ध हो गए हैं। लगता तो यही है, कि जनता को संतुष्ट करने वाले तरकश के सारे तीर इस्तेमाल कर लिए गए हैं, तभी तो बीकानेर जिले के प्रभारी मंत्री ने खुद की प्रतिष्ठा से जोड़ते हुए ब्रह्मास्त्र रूपी बड़े बयान का रास्ता इख्तियार किया और उनको कहना पड़ा कि 'अगर काम नहीं हुए तो वे इस्तीफा दे देंगे। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी भी है कि प्रभारी मंत्री को इस तरह का बयान देने की नौबत आखिरकार आई ही क्यों? क्या कार्यकर्ता अब इससे कम पर संतुष्ट नहीं हो रहे या परम्परागत जवाब सुन सुृन कर उनके कान पक गए और वो अब कुछ नया सुनना चाहते हैं। खैर, कारण जो भी हो लेकिन प्रभारी मंत्री के बयान ने एक नई बहस को जन्म जरूर दे दिया है। कुछ इसी तरह का बड़ा बयान करीब पौने दो साल पहले बीकानेर में सरकार आपके द्वार अभियान के दौरान प्रदेश के चिकित्सा मंत्री ने भी दिया था। उन्होंने पीबीएम अस्पताल का निरीक्षण करते समय व्यवस्थाओं में सुधार के लिए अस्पताल में सर्जरी की जरूरत बताई थी। पीबीएम की व्यवस्था कितनी सुधरी? वहां आज के हालात किस तरह के हैं? मंत्री के बयानानुसार सर्जरी की दिशा में कितना काम हुआ? इन सब सवालों के बारे में शहर का हर प्रबुद्ध एवं जागरूक शख्स जानता है।
वैसे भी बीकानेर शहर के हालात किसी से छिपे हुए नहीं हैं। प्रदेश सरकार के दो साल तथा स्थानीय निगम का एक साल होने के बाद भी शहर व जिले में कोई उल्लेखनीय काम दिखाई नहीं देता। इसके बावजूद प्रभारी मंत्री अस्सी फीसदी काम होने का दावा करते हैं। अगर वाकई उनके दावों में दम है तो फिर शेष बीस प्रतिशत के लिए जनता के बीच जाने की मजबूरी क्यों आन पड़ी? और अगर वो सही हैं तो फिर उनके ही दावों की हवा उनकी पार्टी के लोग ही क्यों निकाल रहे हैं?
खैर, प्रभारी मंत्री सरकार के दो साल पूर्ण होने के बाद जिले के आला अधिकारियों के साथ विधानसभा क्षेत्रों में जाने तथा आमजन के अभाव अभियोग सुनने की बात कहते हैं। जनप्रतिनिधि को जनता के बीच जाना भी चाहिए, ताकि वास्तविकता का पता लग सके। जिले के साथ-साथ लगे हाथ उनको बीकानेर शहर का भ्रमण भी कर लेना चाहिए। बिलकुल अपने हिसाब से एकदम औचक निरीक्षण की तर्ज पर शहर में घूमना चाहिए ताकि वो अपनी आंखों से वह सब देख सके जो अधिकारी उनको दिखाना नहीं चाहते। प्रभारी मंत्री रात को अंधेरे में डूबे शहर का हाल भी जान लें तो उनको हकीकत पता लगेगी कि वास्तव में कितना काम हुआ है। यह सब इसीलिए भी जरूरी है क्योंकि समूचे शहर की समस्याओं से वाकिफ हुए बिना, उनको महसूस या देखे बिना तो इसी तरह के दावे किए जाते रहेंगे।
बहरहाल, बीकानेर की बदहाली बयानों से दूर नहीं होगी। बयानों की बारिश से भी अब भला नहीं होने वाला। बयानों के बवंडर में जनता को भरमाना किसी भी कीमत पर उचित नहीं है। दो साल पूर्ण होने के मौके पर बेहतर है बीकानेर को बेनजीर बनाने के ठोस एवं कारगर प्रयास हों। बचकाने एवं बेचारगी भरे बयानों से जनता वैसे ही आजिज आ चुकी है। उसकी सहनशीलता एवं धैर्य की परीक्षा लेने से अब बचना चाहिए। सरकार को अब ऐसा कुछ करना चाहिए कि आमजन को महसूस हो कि वाकई 'अच्छे दिन' चल रहे हैं।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 09 दिसम्बर 15 के अंक में प्रकाशित
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