Friday, December 25, 2015

सरकारी दौरा

मेरी सातवीं कहानी
मंत्री का पीए बदहवाश सा दौड़ता हुआ आया और मीटिंग के बीच में ही चिल्लाया सर अनहोनी हो गई। मंत्री के माथे पर चिंता की सलवटें उभरी। चश्मे को नीचे खिसका कर नाक पर टिकाते हुए पीए की आंखों में आंखें डाल कर बोले, हुआ क्या है। पीए थोड़ा और करीब आया और कान में फुसफुसाया। इसके बाद तो मंत्रीजी के चेहरे पर दूसरा ही रंग था। उनकी उत्सुकता अब नैराश्य में तब्दील हो चुकी थी। मीटिंग में मौजूद अधिकारीगण मंत्री का मूड भांप कर चुपचाप हाथ जोड़ते हुए वहां से जाने लगे। पलक झपकते ही समूचा रूम खाली था। मन की पीड़ा को बाहर लाते हुए मंत्रीजी बुदबुदाए छेदीलाल मेरा समर्पित कार्यकर्ता था। चुनाव में मेरी बहुत मदद करता था, हमेशा ही। भगवान उसकी आत्मा को शांति दे। पीए ने मौके की नजाकत को ताड़ते हुए कहा सर सांत्वना देने का कार्यक्रम बना लेते हैं। मंत्री ने पीए को अपनी तरफ खींचते हुए कहा, दीवारों के भी कान होते हैं जरा धीरे बोला करो। ऐसा करो कोई सरकारी काम या बैठक की तैयारी के लिए संबंधित जिले के आला अधिकारियों को फोन कर दो। सब कुछ आनन-फानन में और गुपचुप तरीके से तय हो गया। इस तरह मंत्री का निहायत निजी कार्यक्रम सरकारी दौरे में तब्दील हो चुका था।

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