आदमी, आदमी से इतना डरता क्यों है
वफा की बात किसी से करता क्यों है
जरा सी भी उमंग नहीं है अगर मन में,
तो फिर घर से बाहर निकलता क्यों है।
सपने तो वो रोज ही देखता है चांद के
माचिस पकडऩे में मगर झिझकता क्यों है।
प्यार की राह पर चलने की देते हैं नसीहतें,
जमाने को फिर यह अखरता क्यों है।
गलत ही सुना है पत्थर दिल होते हैं लोग
तन्हाई में फिर रह-रह के वो मचलता क्यों है।
बड़ा ही पाक है 'माही' रुहों का दोस्ताना,
रिश्ता ये फिर टूट के बिखरता क्यों है
वफा की बात किसी से करता क्यों है
जरा सी भी उमंग नहीं है अगर मन में,
तो फिर घर से बाहर निकलता क्यों है।
सपने तो वो रोज ही देखता है चांद के
माचिस पकडऩे में मगर झिझकता क्यों है।
प्यार की राह पर चलने की देते हैं नसीहतें,
जमाने को फिर यह अखरता क्यों है।
गलत ही सुना है पत्थर दिल होते हैं लोग
तन्हाई में फिर रह-रह के वो मचलता क्यों है।
बड़ा ही पाक है 'माही' रुहों का दोस्ताना,
रिश्ता ये फिर टूट के बिखरता क्यों है
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