टिप्पणी
जा न है तो जहान है। इसके पीछे जिंदगी का बहुत बड़ा फलसफा छिपा है। विशेषकर सड़क पर बिना नियमों और बगैर हेलमेट चलने वालों के लिए तो यह किसी कारगर नसीहत से कम नहीं है। फिर भी लोग इसे नजरअंदाज कर जान जोखिम में डालने से बाज नहीं आते। विशेषकर बीकानेर में यातायात नियमों की धज्जियां उड़ाने के उदाहरण ज्यादा हैं। हालांकि कई बार सवाल पुलिस कार्रवाई पर भी उठे हैं। वाहन चालकों ने पुलिस कार्रवाई के तौर-तरीकों पर कड़ा एतराज भी जताया। इसी के चलते दो तीन पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर भी किया जा चुका है। वाहन चालकों की पीड़ा इस बात को लेकर है कि पुलिस के जवान बीच रास्ते में दोनों हाथ फैलाकर वाहन रुकवाते हैं और चाबी निकाल लेते हैं। नहीं रुकने पर पीछे दौड़ते हैं या डंडा तक फटकार देते हैं। वाहन चालकों की पीड़ा अपनी जगह सही है लेकिन पुलिस यह सब नहीं करेगी तो क्या हेलमेट की या नियमों की पालना संभव हैं? जब पुलिस की मौजूदगी में ही लोग यू टर्न लेने से गुरेज नहीं करते हैं तो फिर बिना भय के वो यातायात नियमों की पालना करने लगेंगे, संभव नहीं लगता। वाहन चालकों को भी समझना होगा कि यह सब उनकी सुरक्षा के लिए ही तो किया जा रहा है और हेलमेट पहनेंगे तो सबसे ज्यादा फायदा और हित उनका ही होगा। वाहन चालक पुलिस के समक्ष ईमानदारी से पेश आएं तो शायद बीच सड़क पर वाहन रुकवाने, चाबी निकालने या डंडा फटकारने की नौबत ही नहीं आए। सर्वविदित है कि बीकानेर में दुपहिया वाहन पर पीछे बैठने वाली सवारी के लिए भी हेलमेट लगाना अनिवार्य है, लेकिन यहां तो चालक ही हेलमेट नहीं पहनता है। ऐसे में पुलिस को आदेश की पालना करवाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। हां, इतना जरूर है कि हेलमेट के चक्कर में यातायात व्यवस्था से जुड़े अन्य पहलू उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं। शहर में बिना नंबरी वाहन हर कहीं दिखाई दे जाएंगे। शीशों पर काली फिल्म लगे वाहन बड़ी संख्या में दौड़ रहे हैं। सीट बेल्ट के उपयोग करने के उदाहरण तो बेहद कम हैं। गाड़ी चलाते वक्त मोबाइल का उपयोग खूब हो रहा है। प्रतिबंधित क्षेत्रों में भारी वाहन बेखौफ आ जा रहे हैं। क्षमता से ज्यादा सवारियांं न केवल दुपहिया वाहनों बल्कि चौपहिया वाहनों में सरेआम बिठाई जा रही हैं। जिला मुख्यालय पर ही बसों की छतों पर यात्रा हो रही है। ओवरलोड वाहन शहर से गुजर रहे हैं। कई जगह अघोषित बस स्टैंड बन चुके हैं। मनमर्जी की पार्किंग से तो समूचा शहर परेशान है। शहर में कई जगह लगने वाले जाम में फंसे लोग अपने-अपने हिसाब से ही निकल रहे हैं।
बहरहाल, पुलिस हेलमेट अभियान को प्राथमिकता में रखे, लेकिन यातायात संबंधी बाकी पहलुओं पर भी विचार करे। जिन तौर-तरीकों पर आपत्ति है, उनमें सुधार हो, ताकि वाहन चालकों को भी समझ में आ जाए कि जो किया जा रहा है वह उनके भले के लिए ही है। हेलमेट की सार्थकता तभी है जब यह आदत में शुमार हो जाए। इसके लिए जरूरी यह भी है कि समझाइश भी हो। सामाजिक, धार्मिक, व्यापारिक संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ सामूहिक बैठक रखी जा सकती है। सरकारी कार्यालयों में सभी विभागाध्यक्ष अपने मातहतों को हेलमेट के लिए न केवल प्रेरित करें बल्कि गंभीरता के साथ अनिवार्य भी कर दें तो लगता नहीं कि पुलिस को हेलमेट के लिए डंडा फटकारने की जरूरत पड़ेगी। वैसे भी कानून और यातायात नियमों की पालना करवाने की जिम्मेदारी सिर्फ पुलिस की ही नहीं है। आम नागरिक होने के नाते उनकी पालना करना हम सब का भी नैतिक दायित्व है।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 24 जून 15 के अंक में प्रकाशित ...
जा न है तो जहान है। इसके पीछे जिंदगी का बहुत बड़ा फलसफा छिपा है। विशेषकर सड़क पर बिना नियमों और बगैर हेलमेट चलने वालों के लिए तो यह किसी कारगर नसीहत से कम नहीं है। फिर भी लोग इसे नजरअंदाज कर जान जोखिम में डालने से बाज नहीं आते। विशेषकर बीकानेर में यातायात नियमों की धज्जियां उड़ाने के उदाहरण ज्यादा हैं। हालांकि कई बार सवाल पुलिस कार्रवाई पर भी उठे हैं। वाहन चालकों ने पुलिस कार्रवाई के तौर-तरीकों पर कड़ा एतराज भी जताया। इसी के चलते दो तीन पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर भी किया जा चुका है। वाहन चालकों की पीड़ा इस बात को लेकर है कि पुलिस के जवान बीच रास्ते में दोनों हाथ फैलाकर वाहन रुकवाते हैं और चाबी निकाल लेते हैं। नहीं रुकने पर पीछे दौड़ते हैं या डंडा तक फटकार देते हैं। वाहन चालकों की पीड़ा अपनी जगह सही है लेकिन पुलिस यह सब नहीं करेगी तो क्या हेलमेट की या नियमों की पालना संभव हैं? जब पुलिस की मौजूदगी में ही लोग यू टर्न लेने से गुरेज नहीं करते हैं तो फिर बिना भय के वो यातायात नियमों की पालना करने लगेंगे, संभव नहीं लगता। वाहन चालकों को भी समझना होगा कि यह सब उनकी सुरक्षा के लिए ही तो किया जा रहा है और हेलमेट पहनेंगे तो सबसे ज्यादा फायदा और हित उनका ही होगा। वाहन चालक पुलिस के समक्ष ईमानदारी से पेश आएं तो शायद बीच सड़क पर वाहन रुकवाने, चाबी निकालने या डंडा फटकारने की नौबत ही नहीं आए। सर्वविदित है कि बीकानेर में दुपहिया वाहन पर पीछे बैठने वाली सवारी के लिए भी हेलमेट लगाना अनिवार्य है, लेकिन यहां तो चालक ही हेलमेट नहीं पहनता है। ऐसे में पुलिस को आदेश की पालना करवाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। हां, इतना जरूर है कि हेलमेट के चक्कर में यातायात व्यवस्था से जुड़े अन्य पहलू उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं। शहर में बिना नंबरी वाहन हर कहीं दिखाई दे जाएंगे। शीशों पर काली फिल्म लगे वाहन बड़ी संख्या में दौड़ रहे हैं। सीट बेल्ट के उपयोग करने के उदाहरण तो बेहद कम हैं। गाड़ी चलाते वक्त मोबाइल का उपयोग खूब हो रहा है। प्रतिबंधित क्षेत्रों में भारी वाहन बेखौफ आ जा रहे हैं। क्षमता से ज्यादा सवारियांं न केवल दुपहिया वाहनों बल्कि चौपहिया वाहनों में सरेआम बिठाई जा रही हैं। जिला मुख्यालय पर ही बसों की छतों पर यात्रा हो रही है। ओवरलोड वाहन शहर से गुजर रहे हैं। कई जगह अघोषित बस स्टैंड बन चुके हैं। मनमर्जी की पार्किंग से तो समूचा शहर परेशान है। शहर में कई जगह लगने वाले जाम में फंसे लोग अपने-अपने हिसाब से ही निकल रहे हैं।
बहरहाल, पुलिस हेलमेट अभियान को प्राथमिकता में रखे, लेकिन यातायात संबंधी बाकी पहलुओं पर भी विचार करे। जिन तौर-तरीकों पर आपत्ति है, उनमें सुधार हो, ताकि वाहन चालकों को भी समझ में आ जाए कि जो किया जा रहा है वह उनके भले के लिए ही है। हेलमेट की सार्थकता तभी है जब यह आदत में शुमार हो जाए। इसके लिए जरूरी यह भी है कि समझाइश भी हो। सामाजिक, धार्मिक, व्यापारिक संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ सामूहिक बैठक रखी जा सकती है। सरकारी कार्यालयों में सभी विभागाध्यक्ष अपने मातहतों को हेलमेट के लिए न केवल प्रेरित करें बल्कि गंभीरता के साथ अनिवार्य भी कर दें तो लगता नहीं कि पुलिस को हेलमेट के लिए डंडा फटकारने की जरूरत पड़ेगी। वैसे भी कानून और यातायात नियमों की पालना करवाने की जिम्मेदारी सिर्फ पुलिस की ही नहीं है। आम नागरिक होने के नाते उनकी पालना करना हम सब का भी नैतिक दायित्व है।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 24 जून 15 के अंक में प्रकाशित ...
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