कालजयी कवि माखनलाल जी चतुर्वेदी तो हम सभी को याद ही होंगे। और उनकी पुष्प की अभिलाषा कविता का तो कहना ही क्या। आज अचानक फेसबुक पर कॉपी पेस्ट की हुई सामग्री देखकर मुझे चतुर्वेदी जी की कविता का स्मरण हो आया। और उनकी कविता की तर्ज पर मैंने भी यह छोटी सी कविता लिखने का प्रयास कर ही डाला।
....फेसबुकी की अभिलाषा....
चाह नहीं मैं कुछ लिखकर
कोई नाम कमाऊं,
चाह नहीं मैं घंटों बैठकर
यूं ही मगज खपाऊं।
रचना किसी की चुराकर
अपने वाल पर लगाऊं,
केवल कॉपी और पेस्ट कर
मैं झूठी वाह-वाह पाऊं।
फेसबुक का मोह है ऐसा,
और कहीं ना जाऊं,
कोई कहे कुछ भी मुझको,
चाहे फेक कहाऊं।
मुझे पढ़ लेना हे साथी,
कमेंट एक तू कर देना,
इतना भी समय नहीं तो
लाइक एक तो दे देना।
चाह नहीं मैं कुछ लिखकर
कोई नाम कमाऊं,
चाह नहीं मैं घंटों बैठकर
यूं ही मगज खपाऊं।
रचना किसी की चुराकर
अपने वाल पर लगाऊं,
केवल कॉपी और पेस्ट कर
मैं झूठी वाह-वाह पाऊं।
फेसबुक का मोह है ऐसा,
और कहीं ना जाऊं,
कोई कहे कुछ भी मुझको,
चाहे फेक कहाऊं।
मुझे पढ़ लेना हे साथी,
कमेंट एक तू कर देना,
इतना भी समय नहीं तो
लाइक एक तो दे देना।
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