बस यूं ही
कल से दो शब्दों को लेकर जेहन मे बड़ी उधेड़बुन चल रही है। वैसे तो दोनों शब्दों के अर्थ सामान्य और जल्द ही समझ में आने वाले हैं लेकिन किसी जमात विशेष के साथ जोड़ कर देखा तो दिमाग की बत्ती जल गई। दोनों शब्दों को सोच-सोचकर कभी गंभीर हुआ तो कभी खुद-ब-खुद मुस्कुरा लिया। बार-बार सोचा। सोच-सोच के सोचा। इतना इसलिए सोचा क्योंकि दोनों शब्दों की कल्पना अपनी ही जमात के साथ कर ली। अरे भई पत्रकारों की जमात। अब रहस्य से पर्दा उठा दूं, वे दोनों शब्द हैं सक्रिय और वरिष्ठ। हमारी जमात में यह दोनों ही पद पता नहीं कब नाम के आगे आ जुड़ते हैं। यह ऐसी पदवी है, जो जमात की, जमात के लिए एवं जमात के द्वारा की अवधारणा पर दी जाती है। अब जमात कह रही है तो जनता भी हां में हां मिलाती है और उसी का अनुसरण भी करती है। क्या मजाल जो इस पदवी में किसी तरह की छेड़छाड़ की जाए। भला, पत्रकारों से पंगा कौन ले। चूंकि यह स्वजातीय व हमपेशा लोगों द्वारा प्रदत्त पदवी है लिहाजा, इसके लिए योग्यता एवं अनुभव कोई मायने नहीं रखते। सक्रिय शब्द से तो मैं हंस-हंस के लोटपोट हूं। पत्रकार वो भी सक्रिय। गोया कोई निष्क्रिय पत्रकारों की भी श्रेणी होती है। अब सवाल उठना लाजिमी है कि भला जो निष्क्रिय है तो वह पत्रकार कैसा? अब मैं इस सवाल का जवाब ना कहकर गुस्ताखी कैसे कर सकता हूं। हर क्रिया की प्रतिक्रिया है। बिलकुल सिक्के के दो पहलुओं की तरह। मसलन, दिन है तो रात है। सुबह है तो शाम है आदि-आदि। इसलिए संभव है यह श्रेणी भी अस्तित्व में हो। मानना या ना मानना अपने-अपने विवेक पर निर्भर करता है। अब जमात के भाईलोगो के साथ दिक्कत यह भी कि उनका ईगो सातवें आसमान पर होता है। ऐसे में कोई किसी को निष्क्रिय कहकर, आ बैल मुझे मार की कहावत को भला क्यों चरितार्थ करे? खैर, यह तो हुई बात सक्रिय शब्द की। अब अपने बगल वाले बुजुर्ग बोस अंकल के बारे में बता दूं। उनके आगे वरिष्ठ जुड़ा हुआ है। लम्बे समय तक ग्रामीण क्षेत्र में पत्रकारिता करने के बाद शहर में आ आ गए। लिखने की आदत अब भी गई नहीं है। कई धार्मिक एवं सामाजिक संगठनों की निशुल्क सेवा करते हैं। उनके प्रेस नोट बना देते हैं। अंदर के पत्रकार को जिंदा रखना है और वरिष्ठता की पदवी को भी। यह बात दीगर है कि वो आज भी बाकी को बाकि, सूची को सुची ही लिखते हैं। ऐसे शब्दों की फेहरिस्त लम्बी है। लेकिन उनकी वरिष्ठता को दरकिनार कैसे किया जा सकता है। अब यह सब कहकर मेरा किसी पर अंगुली उठाने या आलोचना करने का मकसद कतई नहीं है। वैसे भी सक्रिय और वरिष्ठ शब्द जमात ने ही ईजाद किए हैं, इसलिए जमात का ख्याल तो रखना ही पड़ता है।
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