Friday, December 25, 2015

मजबूरी

मेरी 11वीं कहानी

वह बहुत अच्छा लिखता था। इतना अच्छा कि कइयों को उसकी लेखनी से रस्क होने लगा था। लेकिन उसके समक्ष सबसे बड़ा संकट यही था कि उसको कोई प्लेटफार्म नहीं मिल रहा था। कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी होता था लेकिन उसके बदले मिलने वाला मानदेय ऊंट के मुंह में जीरे के समान था। उससे गृहस्थी की गाड़ी चलना बड़ा मुश्किल काम था। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे। बचपन का दोस्त एक दिन अचानक बाजार में मिल गया। दुआ-सलाम होने के बाद जब परेशानी बयां की तो मित्र ने मुस्कुराते हुए कहा, काम तो मिल जाएगा लेकिन नींव का पत्थर बनना पड़ेगा। नींव का पत्थर मतलब? उसने जिज्ञासावश पूछ लिया तो मित्र कहने लगा, कुछ नहीं, बस लिखोगे तुम लेकिन नाम दूसरे का होगा। इतना सुनते ही उसकों पैरों के नीचे से जमीन खिसकती सी लगी। यही तो एकमात्र थाती थी उसकी और पहचान भी। अचानक आंखों के सामने जवान होती बहनों एवं परिवार की जिम्मेदारियों का अक्स घूमने लगा। मजबूरी के आगे सब सपने चकनाचूर हो गए थे। मित्र की सलाह पर उसने तत्काल हां कर दी। तब से वह गुमनामी के भंवर में लिखने लगा और दूसरे लोग उसके लेखन पर अपना लेबल लगाकर बड़े लेखक के रूप में स्थापित हो गए। बदले में मिलने वाले मानदेय से अब उसकी गृहस्थी की गाडी भी ठीक ठाक चलने लगी थी।

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