टिप्पणी
बीकानेर-चेन्नई साप्ताहिक एक्सप्रेस को अब अणुव्रत एक्सप्रेस के नाम से जाना जाएगा। इससे पहले बीकानेर-जयपुर के बीच चलने वाली इंटरसिटी एक्सप्रेस का नाम लीलण एक्सप्रेस कर दिया गया था। अब सवाल यह खड़ा होता है कि नाम बदलने से क्या रेल सुविधा में विस्तार हो गया या यात्रियों कोई राहत मिल गई? सवाल इसलिए भी है क्योंकि रेल सुविधाओं में अपेक्षित विस्तार नहीं हुआ है। अकेले बीकानेर रेल मंडल की ही बात करें तो अभी भी बहुत सारी घोषणाएं व सुविधाएं कागजों में ही हैं। यकीनन यह पूरी हों तो यात्रियों का काफी लाभ मिलेगा। बीकानेर की सबसे बड़ी समस्या रेल फाटकों पर लगने वाले जाम को लेकर भी है। उसके समाधान का मुद्दा फुटबाल बना हुआ है। न्यायालय के निर्देश के बावजूद किसी जनप्रतिनिधि ने इसके स्थायी हल के लिए कोई बड़ी पहल नहीं की। घोषणाओं की फेहरिस्त लगातार बढ़ती जा रही है लेकिन उनका समाधान नहीं होता। मेड़ता-पुष्कर रेल लाइन का काम अभी तक शुरू नहीं हुआ है। इसी तरह नोखा-सीकर रेल लाइन का सर्वे हुआ, रिपोर्ट भी बनी लेकिन फिर इसे भुला दिया गया। बीकानेर-बिलासपुर एक्सप्रेस काघोषणा के हिसाब से संचालन नहीं हो रहा है। बीकानेर-जयपुर इंटरसिटी को मेड़ता से बाइपास से निकालने का आदेश मुद्दत बाद भी लागू नहीं हो रहा। इस गाड़ी में एसी कोच लगाने की मांग भी लगातार नजरअंदाज की जा रही है। बीकानेर-डेगाणा के बीच पैसेंजर फिर से शुरू करने की मांग भी समय-समय पर उठती रही है। बीकानेर से कोलकाता के लिए सिर्फ साप्ताहिक गाड़ी है लेकिन अलग से नियमित गाड़ी नहीं है। उदयपुर और अजमेर के लिए सीधी रेल सेवा नहीं है। हरिद्वार स्पेशल है लेकिन वह सिर्फ साप्ताहिक है। बीकानेर-दिल्ली सराय रोहिल्ला इंटरसिटी का गुडग़ांव में तथा जैसलमेर-हावड़ा का भदोही में केवल ठहराव करने भर से ही यात्रियों को काफी राहत मिलेगी। इसी तरह कुछ गाडिय़ों में विस्तार कर दिया जाए तो यात्रियों की बहुत बड़ी मुश्किल हल हो जाएगी। कुछ समय पहले तक जरूरत एवं अवसर विशेषों पर स्पेशल गाडिय़ों का संचालन होता था लेकिन अब उनकी संख्या भी घट गई है। बीकानेर रेलवे प्लेटफार्म पर पूरा शैड, ऐस्केलटर निर्माण, विश्रामालय विस्तार, पर्यटन सूचना केन्द्र निर्माण, स्टेशन पर पुख्ता सुरक्षा इंतजाम तथा अक्सर खराब रहने वाले स्केनर आदि पर भी सोचने की जरूरत है। बहरहाल, नाम बदलने पर संबंधित जनप्रतिनिधियों को बधाइयां मिलना जारी है। इसे बाकायदा प्रचारित भी करवाया जा रहा है, लेकिन इस बात का आंनद तो तभी है जब जनप्रतिनिधि नाम के साथ-साथ रेल सुविधाओं व यात्री हित का भी ख्याल रखें। सिर्फ हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा ही चोखा की तर्ज पर काम करने के बजाय वास्तविक, ठोस एवं कारगर काम हो। आज भी बीकानेर से संचालित लम्बी दूरी की गाडिय़ों में पेंट्री कार की सुविधा नहीं है। भविष्य की जरूरतों को देखते हुए अभी से सोचने एवं काम करने की जरूरत है। भटिण्डा-बीकानेर-फलौदी व बीकानेर-हिसार-रेवाड़ी मार्ग पर विद्युतीकरण शुरू हो गया है। बीकानेर और लालगढ़ में तीन ही वांशिग लाइन है। भविष्य में इनके विस्तार की जरूरत भी पड़ेगी। रेलवे की काफी जमीन खाली है। बड़े संस्थान रेलवे विवि या रेलवे मेडिकल कॉलेज की संभावनाओं पर विचार हो सकता है। जनप्रतिनिधि चाहें तो काम बहुत हैं। उम्मीद है वे सोचेंगे भी और दायरा भी बड़ा करेंगे। भले ही जनप्रतिनिधि अपने किए का श्रेय लें लेकिन उनको बुनियादी एवं प्रमुख समस्याओं पर भी ध्यान देना चाहिए और उनके समाधान के लिए प्रयास भी करने चाहिए।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 26 जून 15 के अंक में प्रकाशित ...
बीकानेर-चेन्नई साप्ताहिक एक्सप्रेस को अब अणुव्रत एक्सप्रेस के नाम से जाना जाएगा। इससे पहले बीकानेर-जयपुर के बीच चलने वाली इंटरसिटी एक्सप्रेस का नाम लीलण एक्सप्रेस कर दिया गया था। अब सवाल यह खड़ा होता है कि नाम बदलने से क्या रेल सुविधा में विस्तार हो गया या यात्रियों कोई राहत मिल गई? सवाल इसलिए भी है क्योंकि रेल सुविधाओं में अपेक्षित विस्तार नहीं हुआ है। अकेले बीकानेर रेल मंडल की ही बात करें तो अभी भी बहुत सारी घोषणाएं व सुविधाएं कागजों में ही हैं। यकीनन यह पूरी हों तो यात्रियों का काफी लाभ मिलेगा। बीकानेर की सबसे बड़ी समस्या रेल फाटकों पर लगने वाले जाम को लेकर भी है। उसके समाधान का मुद्दा फुटबाल बना हुआ है। न्यायालय के निर्देश के बावजूद किसी जनप्रतिनिधि ने इसके स्थायी हल के लिए कोई बड़ी पहल नहीं की। घोषणाओं की फेहरिस्त लगातार बढ़ती जा रही है लेकिन उनका समाधान नहीं होता। मेड़ता-पुष्कर रेल लाइन का काम अभी तक शुरू नहीं हुआ है। इसी तरह नोखा-सीकर रेल लाइन का सर्वे हुआ, रिपोर्ट भी बनी लेकिन फिर इसे भुला दिया गया। बीकानेर-बिलासपुर एक्सप्रेस काघोषणा के हिसाब से संचालन नहीं हो रहा है। बीकानेर-जयपुर इंटरसिटी को मेड़ता से बाइपास से निकालने का आदेश मुद्दत बाद भी लागू नहीं हो रहा। इस गाड़ी में एसी कोच लगाने की मांग भी लगातार नजरअंदाज की जा रही है। बीकानेर-डेगाणा के बीच पैसेंजर फिर से शुरू करने की मांग भी समय-समय पर उठती रही है। बीकानेर से कोलकाता के लिए सिर्फ साप्ताहिक गाड़ी है लेकिन अलग से नियमित गाड़ी नहीं है। उदयपुर और अजमेर के लिए सीधी रेल सेवा नहीं है। हरिद्वार स्पेशल है लेकिन वह सिर्फ साप्ताहिक है। बीकानेर-दिल्ली सराय रोहिल्ला इंटरसिटी का गुडग़ांव में तथा जैसलमेर-हावड़ा का भदोही में केवल ठहराव करने भर से ही यात्रियों को काफी राहत मिलेगी। इसी तरह कुछ गाडिय़ों में विस्तार कर दिया जाए तो यात्रियों की बहुत बड़ी मुश्किल हल हो जाएगी। कुछ समय पहले तक जरूरत एवं अवसर विशेषों पर स्पेशल गाडिय़ों का संचालन होता था लेकिन अब उनकी संख्या भी घट गई है। बीकानेर रेलवे प्लेटफार्म पर पूरा शैड, ऐस्केलटर निर्माण, विश्रामालय विस्तार, पर्यटन सूचना केन्द्र निर्माण, स्टेशन पर पुख्ता सुरक्षा इंतजाम तथा अक्सर खराब रहने वाले स्केनर आदि पर भी सोचने की जरूरत है। बहरहाल, नाम बदलने पर संबंधित जनप्रतिनिधियों को बधाइयां मिलना जारी है। इसे बाकायदा प्रचारित भी करवाया जा रहा है, लेकिन इस बात का आंनद तो तभी है जब जनप्रतिनिधि नाम के साथ-साथ रेल सुविधाओं व यात्री हित का भी ख्याल रखें। सिर्फ हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा ही चोखा की तर्ज पर काम करने के बजाय वास्तविक, ठोस एवं कारगर काम हो। आज भी बीकानेर से संचालित लम्बी दूरी की गाडिय़ों में पेंट्री कार की सुविधा नहीं है। भविष्य की जरूरतों को देखते हुए अभी से सोचने एवं काम करने की जरूरत है। भटिण्डा-बीकानेर-फलौदी व बीकानेर-हिसार-रेवाड़ी मार्ग पर विद्युतीकरण शुरू हो गया है। बीकानेर और लालगढ़ में तीन ही वांशिग लाइन है। भविष्य में इनके विस्तार की जरूरत भी पड़ेगी। रेलवे की काफी जमीन खाली है। बड़े संस्थान रेलवे विवि या रेलवे मेडिकल कॉलेज की संभावनाओं पर विचार हो सकता है। जनप्रतिनिधि चाहें तो काम बहुत हैं। उम्मीद है वे सोचेंगे भी और दायरा भी बड़ा करेंगे। भले ही जनप्रतिनिधि अपने किए का श्रेय लें लेकिन उनको बुनियादी एवं प्रमुख समस्याओं पर भी ध्यान देना चाहिए और उनके समाधान के लिए प्रयास भी करने चाहिए।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 26 जून 15 के अंक में प्रकाशित ...
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