Wednesday, December 28, 2016

कडवा घूंट -4


फोटो सेशन
पिछले दिनों बीकानेर में हुई ओलावृष्टि को भला अभी तक कौन भुला पाया है। विशेषकर वे किसान जिन्होंने परिश्रम से पसीना बहाकर से यह फसल तैयार की थी। उनकी तो साल भर की कमाई आंखों के सामने देखते-देखते खराब हो गई। ओलावृष्टि के बाद सर्वे आदि का काम भले ही समान रूप से सब जगह एक साथ शुरू नहीं हुआ लेकिन जनप्रतिनिधि एवं छुटभैये नेताओं में इस तरह की समानता जरूर दिखाई दी। जैसे ही ओलावृष्टि हुई सब के सब नुकसान का जायजा लेने के नाम पर खेतों में पहुंच गए। सभी ने हाथों में नष्ट हुई फसल के टुकड़े लेकर फोटो जरूर खिंचवाए। हावभाव से सभी ने यह साबित करने का प्रयास किया कि वे किसानों के हमदर्द हैं तथा वे किसानों के इस दुख से बेहद दुखी हैं। खैर, किसानों के हितैषी बने जनप्रतिनिधियों के हाव भावों में कितनी सच्चाई है यह तो अलग बात है लेकिन राजनीतिक गलियारों में भी कई तरह की चर्चाएं चटखारे के साथ चल रही हैं। ओलावृष्टि के बाद हुए फोटो सेशन की सब अपने-अपने तरीके से व्याख्या जो कर रहे हैं।
विवादों का साया
परीक्षा चाहे अकादमिक हो या फिर प्रतियोगी। इन पर आजकल किसी न किसी तरह का लफड़ा़ कहीं न कहीं चस्पा जरूर हो ही जाता है। हाल ही में हुई वन विभाग की भर्ती भी इससे अछूती नहीं बची है। इस परीक्षा पर भी विवादों का साया मंडरा रहा है। विशेषकर बीकानेर के विभिन्न हिस्सों में हुई परीक्षा पर भी सवाल निशान उठने शुरू हो गए हैं। जिस तरह कोटा एवं उदयपुर में अपनों को रेवडिय़ा बांटने की बातें सामने आई हैं। इसी बात की पड़ताल में बीकानेर में विभाग के एक पूर्व रेंजर भी जुटे हुए हैं। उनका आरोप हैं कि बीकानेर में भी कोटा एवं उदयपुर की तरह अपनों की उपकृत करने में गुरेज नहीं किया है। विभाग की कार्यप्रणाली से यह पूर्व रेंजर बेहद खफा हैं लेकिन उसका आत्मविश्वास गजब का है। अधिकारियों/कर्मचारियों में किसका कौन रिश्तेदार परीक्षा में बैठा इस बात के पुख्ता सबूत के लिए वे सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांग रहे हैं लेकिन विभाग गंभीरता से नहीं ले रहा है। कहीं यह लेटलतीफी किसी गड़बड़ की तरफ इशारा तो नहीं कर रहीं?
आमदनी अठन्नी खर्चा रुपया
आ मदनी अठनी खर्चा रुपया वाली कहावत तो कई बार कही एवं सुनी जा चुकी है। इस बार यह कहावत बीकानेर सहकारी उपभोक्ता होलसेल भंडार पर चरितार्थ होती दिखाई दे रही है। हाल में भंडार को लेकर कई तरह के आरोप-प्रत्यारोप सामने आए। इस तरह का काम करने वाले कोई बाहर के लोग नहीं थे। इतना ही नहीं आरोप-प्रत्यारोपों व भंडार सदस्यों एवं पदाधिकारियों के इस तरह के तेवरों के हालात सामान्य व सहज दिखाई नहीं देते। बताया जा रहा है कि भंडार की तरफ से शहर में महिला मिनी मार्केट में सौन्दर्य प्रसाधनों से संंबंधित दुकान खोली गई। दुकान के लिए बाकायदा एक महिला को भी रखा बताया। माह के अंत में जब हिसाब किया गया तो स्थिति जितने के ढोल नहीं थे उतने के मंजीरे फूटने वाली हो गई। चर्चाओं में कितना दम है। उसमेंसच व झूठ का कितना कितना समावेश है यह तो आरोप-प्रत्यारोप करने वाले ही बेहतर जानते हैं लेकिन इतना जरूर है कि इस शोर-शराबे के बीच कुछ तो है, जो इस रूप में बाहर आ रहा है।
फिर भी जाना पड़ा
भ्रष्टाचार के विरोध में कुछ अधिकारी ऐसे भी होते हैं जो अंदर ही अंदर बिलकुल बिना किसी प्रचार-प्रसार के अपना मिशन जारी रखते हैं लेकिन भ्रष्टाचार करने वालों को भला इस तरह की मुहिम कहां रास आती है, लिहाजा अंदरााने एक तरह का शीत युद्ध जारी रहता है। युद्ध की जानकारी बाहर तभी आती है, जब बात काफी आगे बढ़ जाती है। ऐसा ही कुछ यूआईटी के एक अधिकारी के साथ हुआ। उन्होंने अपने ब्लॉग में साफ-साफ लिखा है कि कार्यकाल के दौरान उनके काम के तरीके से स्टाफ के सदस्य तो खफा हुए ही, सबसे ज्यादा तकलीफ तो प्रभावशाली लोगों को हुई। अधिकारी ने बेबाकी से लिखा है कि उनको इस बात को लेकर धमकियां भी मिली लेकिन उन्होंने अपना काम जारी रखा तथा लोकायुक्त को शिकायत भी भेजी। खैर, ब्लॉग में अधिकारी ने अतिरिक्त पद छोडऩे की जानकारी देते हुए अपना मूल पद संभालने के बात कही है। एेसे में सवाल उठना लाजिमी है कि अधिकारी ने अपनी मर्जी यह पद छोड़ा या फिर उनको यह कदम उठाने के लिए मजबूर किया गया।
बातूनी
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 20 मार्च 16 के अंक में प्रकाशित साप्ताहिक कॉलम ....

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