टिप्पणी
शायद श्रीगंगानगर जिले में शहीद व शहादत के मायने दूसरे हैं। संभवत: यहां के कुछ खास लोगों ने शहीद की एक अलग ही परिभाषा ईजाद कर रखी है। लगता है इन लोगों की नजरों में वह शहीद नहीं है, जो अपने घर-परिवार को छोड़कर सीमा पर जाकर प्रतिकूल परिस्थितियों में मोर्चा संभालता है। दुश्मन के नापाक इरादों को नेस्तनाबूद करता है।
देश की खातिर हंसते-हंसते सीमा पर प्राणोत्सर्ग कर देता है। शहीद वीरांगनाओं के लिए भी इन खास लोगों के पास अलग ही शब्दकोष दिखाई देता है। इनकी नजरों में देश की जीत के संदर्भ भी दूसरे ही लगते हैं। दरअसल, यह खास लोग और कोई नहीं बल्कि श्रीगंगानगर जिले के प्रशासनिक अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि हैं। करगिल विजय दिवस के उपलक्ष्य में जिला मुख्यालय पर प्रशासन की तरफ से किसी तरह का कोई कार्यक्रम ना होना तो यही दर्शाता है। विडम्बना देखिए जब समूचा देश वीर सैनिकों की शहादत व बहादुरी को याद कर रहा था, उनकी जीत का जश्न मना रहा था, तब जिले के यह खास लोग खुद तक ही सीमित रहे। बिना किसी प्रचार के किसी ने चुपचाप यह जश्न मना लिया हो तो बात अलग है लेकिन उनके व्यवहार को देखकर लगता नहीं कि उन्होंने शहीदों को याद किया या उनको श्रद्धासुमन अर्पित किए हों। इन खास लोगों के दिल में अगर देश प्रेम का जज्बा होता तो वे कहीं पर भी कार्यक्रम करके शहीदों को याद कर सकते थे, लेकिन इतना कुछ करने का साहस यह खास लोग जुटा नहीं सके। जिम्मेदारों का यह रवैया न केवल गैर जिम्मेदाराना है बल्कि हौसले को तोडऩा वाला भी है। उनका इस तरह का व्यवहार शर्मसार करता है। शहीद परिवारों को संबल देने के बजाय उनका मनोबल कम करता है। उनके जज्बे को ठेस पहुंचाता है। आखिरकार इसी तरह की संकीर्ण सो च एवं सौतेला व्यवहार देश सेवा के लिए जाने वाले युवाओं की राह में रुकावट बनता है।
सीमावर्ती व संवदेनशील जिला होने के नाते यहां तो देशभक्ति से जुड़े कार्यक्रम बड़ी संख्या में होने चाहिए। इनमें न केवल आमजन बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों का जोरदार जोश भी झलकना चाहिए। जनसहभागिता भी इतनी हो कि सीमा पर तैनात जवानों को लगाना चाहिए कि इस लड़ाई में वो अकेले नहीं हैं । उनके पीछे चिंता करने वाले कई हैं। कितना बेहतर होता कि जिला प्रशासन के तत्वावधान में सीमा के पास ऐसा देश भक्ति से जुड़ा कोई कार्यक्रम होता जो न केवल आमजन को बल्कि सरहद के पास तैनात सैनिकों में यह विश्वास पैदा करता है कि वाकई लोगों में सेना के प्रति सम्मान है। लेकिन अफसोसनजक तो यह है कि श्रीगंगानगर जिले के खास लोग न तो एेसा कोई कार्यक्रम कर या करवा पाए और ना ही ऐसा कोई संदेश नहीं दे प ाए। सोचिए, जिम्मेदार ही अगर इस तरह की उदासीनता बरतेंगे तो फिर आने वाली पीढी को प्रेरणा कौन देगा। आखिर देशप्रेम से बड़ा तो कोई नहीं है। हम सब के लिए देशप्रेम सर्वोपरि है। भले ही वो अधिकारी या जनप्रतिनिधि ही क्यों ना हों।
राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर के 27 जुलाई 16 के अंक में प्रकाशित.....
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