टिप्पणी
बीकानेर जिले के छतरगढ़ उपखण्ड के कस्बे सत्तासर में हथियार बनाने का कारखाना पकडऩा पुलिस के लिए बड़ी कामयाबी हो सकती है लेकिन संवदेनशील क्षेत्र में इस तरह हथियार बनाने का साजो सामान मिलना कहीं न कहीं व्यवस्था में सुराख भी है। सत्तासर से अंतरराष्ट्रीय सीमा की दूरी बामुश्किल पचास-पचपन किलोमीटर होगी। पुलिस के अनुसार सत्तासर कस्बे की एक पंक्चर की दुकान में यह हथियार बन रहे थे। चौंकाने वाली बात तो यह सामने आ रही है कि हथियार बनाने का गोरखधंधा काफी समय से चल रहा था। संभवत: यह खेल बेखौफ व बेरोकटोक ही चल रहा था, क्योंकि इतने लंबे समय तक कानून व पुलिस की आंखों में धूल झौंकना संभव नहीं लगता। किसी तरह की मिलीभगत या तालमेल से घालमेल करने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। हथियार बनाने का यह गैरकानूनी खेल बदस्तूर चलते रहना और किसी को कानों-कान खबर तक नहीं होने की बात शायद ही किसी के गले उतरे।
आरोपित का अचानक ही कब्जे में आना, सब कुछ हाथों-हाथ उगल देना तथा फटाफट ही हथियार बनाने का कारखाना पकड़ लेना भी किसी आश्चर्य से कम नहीं है। ऐसे में यह समूची कार्रवाई भी संदिग्ध व संदेह के घेरे में नजर आती है। वैसे सरेआम हथियार बनाने का खेल हमारी व्यवस्था पर सवाल उठाता है। उसको कठघरे में खड़ा करता है। सवाल भी एक दो नहीं बल्कि कई तरह के हैं। मसलन छोटे से कस्बे में यह हथियार बनते रहे हैं और किसी को खबर तक नहीं हुई? इस दुकान के आगे से गुजरने वाले आंखें बंद करके गुजरते रहे? आरोपित अकेला ही इतने बड़े कार्य को अंजाम देता रहा? किसी ने इस काले कारोबार के खिलाफ कभी आवाज ही नहीं उठाई? यदि उठाई तो कहीं अनसुनी या दबा तो नहीं दी गई? क्या वह इतना शातिर था कि जो गुपचुप तरीके से अपना काम करता रहा ? क्या आरोपित हथियार कहीं और बनाता था और यहां लाकर बेचता था? कहीं इस खेल में कोई बड़ा गिरोह तो नहीं? क्या पकड़ा गया आरोपित महज मोहरा तो नहीं? खैर, इस प्रकरण से जुड़े सवाल और भी हैं और जांच के दायरे में शामिल करने के लायक भी। जैसे यहां से बने हथियार कहां-कहां गए? क्या इस खेल में और भी चेहरे हैं? कानून के रखवाले इस दुकान से अनजान कैसे बने रहे? क्यों उसकी गतिविधियों पर किसी को शक नहीं हुआ? यह सवाल सभी के जेहन में हैं, लिहाजा इन सबकी तह तक जाना जरूरी है। सबका खुलासा होना तो बेहद जरूरी है। जाहिर सी बात है कि इस खेल में कहीं न कहीं घालमेल और तालमेल है। व्यवस्था से जुड़ी कोई न कोई कमजोर कड़ी जरूर है। नोखा क्षेत्र का रहने वाला आरोपित छतरगढ़ के पास सत्तासर में जाकर यह सब कर रहा है तो मान लेना चाहिए कि इस खेल की जड़ों ने गहरे तक घुसपैठ कर रखी है।
बहरहाल, इस समूचे प्रकरण को हथियार तस्करी से जोड़ कर भी देखा जाना चाहिए। जिस तरह बीकानेर अवैध हथियारों की मंडी बना है वह किसी से छिपा नही है। हथियार तस्करी से जुड़े प्रकरण अक्सर सामने आते रहते हैं। लेकिन जिस अंदाज में आधुनिक एवं देसी हथियारों की बरामदगी होती रही है तथा हो रही है उससे लगता है कि बेचने व खरीदने वालों में किसी तरह का भय नहीं है। जि मेदारों को तस्करी व तालमेल के इन तारों को तोडऩे का तरीका जल्द खोजना होगा। ऐसा न हो सिरदर्द बना हथियार तस्करी का यह खेल कहीं लाइलाज मर्ज बन जाए और बीकानेर जैसे शांत व सीमा से सटे इलाके का अमन-चैन भंग कर दे।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 17 जनवरी 2016 के अंक में प्रकाशित।
बीकानेर जिले के छतरगढ़ उपखण्ड के कस्बे सत्तासर में हथियार बनाने का कारखाना पकडऩा पुलिस के लिए बड़ी कामयाबी हो सकती है लेकिन संवदेनशील क्षेत्र में इस तरह हथियार बनाने का साजो सामान मिलना कहीं न कहीं व्यवस्था में सुराख भी है। सत्तासर से अंतरराष्ट्रीय सीमा की दूरी बामुश्किल पचास-पचपन किलोमीटर होगी। पुलिस के अनुसार सत्तासर कस्बे की एक पंक्चर की दुकान में यह हथियार बन रहे थे। चौंकाने वाली बात तो यह सामने आ रही है कि हथियार बनाने का गोरखधंधा काफी समय से चल रहा था। संभवत: यह खेल बेखौफ व बेरोकटोक ही चल रहा था, क्योंकि इतने लंबे समय तक कानून व पुलिस की आंखों में धूल झौंकना संभव नहीं लगता। किसी तरह की मिलीभगत या तालमेल से घालमेल करने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। हथियार बनाने का यह गैरकानूनी खेल बदस्तूर चलते रहना और किसी को कानों-कान खबर तक नहीं होने की बात शायद ही किसी के गले उतरे।
आरोपित का अचानक ही कब्जे में आना, सब कुछ हाथों-हाथ उगल देना तथा फटाफट ही हथियार बनाने का कारखाना पकड़ लेना भी किसी आश्चर्य से कम नहीं है। ऐसे में यह समूची कार्रवाई भी संदिग्ध व संदेह के घेरे में नजर आती है। वैसे सरेआम हथियार बनाने का खेल हमारी व्यवस्था पर सवाल उठाता है। उसको कठघरे में खड़ा करता है। सवाल भी एक दो नहीं बल्कि कई तरह के हैं। मसलन छोटे से कस्बे में यह हथियार बनते रहे हैं और किसी को खबर तक नहीं हुई? इस दुकान के आगे से गुजरने वाले आंखें बंद करके गुजरते रहे? आरोपित अकेला ही इतने बड़े कार्य को अंजाम देता रहा? किसी ने इस काले कारोबार के खिलाफ कभी आवाज ही नहीं उठाई? यदि उठाई तो कहीं अनसुनी या दबा तो नहीं दी गई? क्या वह इतना शातिर था कि जो गुपचुप तरीके से अपना काम करता रहा ? क्या आरोपित हथियार कहीं और बनाता था और यहां लाकर बेचता था? कहीं इस खेल में कोई बड़ा गिरोह तो नहीं? क्या पकड़ा गया आरोपित महज मोहरा तो नहीं? खैर, इस प्रकरण से जुड़े सवाल और भी हैं और जांच के दायरे में शामिल करने के लायक भी। जैसे यहां से बने हथियार कहां-कहां गए? क्या इस खेल में और भी चेहरे हैं? कानून के रखवाले इस दुकान से अनजान कैसे बने रहे? क्यों उसकी गतिविधियों पर किसी को शक नहीं हुआ? यह सवाल सभी के जेहन में हैं, लिहाजा इन सबकी तह तक जाना जरूरी है। सबका खुलासा होना तो बेहद जरूरी है। जाहिर सी बात है कि इस खेल में कहीं न कहीं घालमेल और तालमेल है। व्यवस्था से जुड़ी कोई न कोई कमजोर कड़ी जरूर है। नोखा क्षेत्र का रहने वाला आरोपित छतरगढ़ के पास सत्तासर में जाकर यह सब कर रहा है तो मान लेना चाहिए कि इस खेल की जड़ों ने गहरे तक घुसपैठ कर रखी है।
बहरहाल, इस समूचे प्रकरण को हथियार तस्करी से जोड़ कर भी देखा जाना चाहिए। जिस तरह बीकानेर अवैध हथियारों की मंडी बना है वह किसी से छिपा नही है। हथियार तस्करी से जुड़े प्रकरण अक्सर सामने आते रहते हैं। लेकिन जिस अंदाज में आधुनिक एवं देसी हथियारों की बरामदगी होती रही है तथा हो रही है उससे लगता है कि बेचने व खरीदने वालों में किसी तरह का भय नहीं है। जि मेदारों को तस्करी व तालमेल के इन तारों को तोडऩे का तरीका जल्द खोजना होगा। ऐसा न हो सिरदर्द बना हथियार तस्करी का यह खेल कहीं लाइलाज मर्ज बन जाए और बीकानेर जैसे शांत व सीमा से सटे इलाके का अमन-चैन भंग कर दे।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 17 जनवरी 2016 के अंक में प्रकाशित।
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