Wednesday, December 28, 2016

मुक्तक

दो दिन का अवकाश था। कल शाम को बैठे-बैठे कल्पना के घोड़े दौड़ाए तो यह पांच मुक्तक तैयार हो गए। आप भी देखिए...
1.
अजब दिन हैं कल-आज के, अजब हैं ये त्योहार।
कल श्रीराम का दिन था तो आज श्रीकृष्ण का वार। 
मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम हैं तो प्रेम पथिक कृष्ण मुरार। 
मिलजुल के रहो और प्रेम करो, है यही जीवन आधार।
2.
जैसे रिश्तों में एहसास जरूरी है।
जैसे जिंदा शरीर में सांस जरूरी है।
अक्सर सड़ जाता है ठहरा हुआ पानी दोस्तो।
आगे बढने के लिए हरदम प्रयास जरूरी है।
3.
रिश्ते डिजीटल हो गए क्या करें अब जोर।
धुआं और धमाके अब तो करते हैं बस शोर।
रिश्तों की बुनियाद हिली है, ना रहे वो लोग,
प्यार महोब्बत की बातें जो करते थे चहुंओर।
4.
मुंह देखकर ही निभाते, यहां सभी लोग दस्तूर।
अदला बदली के खेल में मिलती दाद भरपूर।
डिजीटल रिश्तों की बस तुम बात न पूछो दोस्तो
एक पल में जो लगते अपने, दूजे पल हो जाते दूर।
5.
कॉपी पेस्ट पर मिलता देखो यहां स्नेह अपार,
पर जो मौलिक होता यारो, करते सभी दरकिनार
इस वाहवाही के खेल में, बने ग्रुप अनेक
जो रखता है सोच बडी, वो ही करता नेक व्यवहार।

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