Wednesday, December 28, 2016

कडवा घूंट -3


औचित्य पर सवाल
कु छ गड़बड़ तो है वरना न तो चर्चा होती और न ही इस तरह का िवरोधाभास सामने आता। शुक्रवार को जिला परिषद में हुई गोष्ठी में घटते लिंगानुपात पर चिंता जताई गई। बताया गया कि जिले में बाल लिंगानुपात अप्रत्याशित रूप से कम हुआ है और हो रहा है। यह कम कैसे हो रहा है यह जांच का विषय है, क्योंकि जिले में प्रसव पूर्व जांच के मामले तो सामने आने लगभग बंद ही हो गए हैं। न इस तरह का काम करने वाले किसी सेंटर पर कार्रवाई की कोई खबर आई। मामले बंद होने तथा कार्रवाई होने का मतलब तो यही निकलता है कि सब ठीक है। अगर सच में ऐसा है तो फिर इसके लिए गठित सेल का औचित्य ही क्या रह जाता है। वैसे लिंगानुपात घटना और किसी तरह की गड़बड़ सामने ना आना ही अपने आप में काफी कुछ कहता है। साथ ही लिंगानुपात में गिरावट की खबरों से सरकारी आंकड़ों के दावों की पोल भी खुल रही है। 
यह बेचैनी क्यों? 
पु लिस के नाम से तो अक्सर कइयों को डरते देखा है लेकिन इन दिनों खाखी के एक अधिकारी की बेचैनी बढऩे की बातें सामने आ रही हैं। बताया जा रहा है कि बेचैनी दूर करने के लिए यह पुलिस अधिकारी खबरनवीसों को फोन कर रहे हैं और मैसेज के माध्यम से भी पूछ रहे हैं। दरअसल, हडकंप की वजह सोशल मीडिया में चल रही है जोरदार चचार्एं है। चर्चाएं तरह तरह की है। एक चर्चा तो पुलिस अधिकारी की कथित अंतरंग वीडियो क्लिप किसी खबरनवीस के पास होने की है तो दूसरी यह है कि यही पुलिस अधिकारी अपनी किसी महिला मित्र के साथ मेडिकल मैदान में बैठे हुए देखे गए बताए। फिलहाल इस तरह की चर्चाएं जोरों पर हैं और जितने मुंह उतनी बातें हंै। सभी की एकसूत्री जिज्ञासा अधिकारी का नाम जानने की है। खैर, इस मामले में जिस तरह की बेचैनी देखी जा रही है, उससे शक तो होता ही है। वैसे भी आग के बिना भला धुआं उठता ही कहां है। 
प्रशासन की छूट है...
क हावत है कि खूंटा मजबूत हो तो बछड़ा खूब उछल कूद कर सकता है। कुछ ऐसा ही इन दिनों शराब बेचने वालों के साथ हो रहा है। निर्धारित समय के बाद शराब बेचने की शिकायतें तो साल भर से लगातार आती रही लेकिन आबकारी एवं पुलिस दोनों ही विभाग जानबूझकर अनजान बने रहे। अब नए ठेकों की लॉटरी निकलने के साथ ही नई दुकानों की जगह तय हो चुकी हैं। चूंकि नई दुकानों में अभी समय है कि इसलिए पुराने दुकान वाले अब पूरी फॉर्म में हैं। वे न केवल दुकानें देर तक खोल रहे हैं बल्कि निर्धारित दर से ज्यादा कीमत भी वसूल रहे हैं। सुरा प्रेमियों के लिए वाकई यह माह जेबें ढीली करने वाला है। ऐसा हो नहीं सकता है कि विभाग को सुरा प्रेमियों से हो रही लूट का पता नहीं हो। पता होने के बावजूद कार्रवाई न करने को तो लोग प्रशासन की छूट की संज्ञा ही देंगे। 
वाह रे राजनीति
रा जनीति में न तो कोई स्थायी दुश्मन होता है ना ही स्थायी मित्र, अलबत्ता अवसर के हिसाब से फैसले जरूर लिए जाते हैं। अवसर विशेष पर लिए जाने वाले फैसलों में जोड़तोड़ करने से भी गुरेज नहीं किया जाता। हाल ही में रेल समितियों के सदस्य बनाने के मामले को भी इसी से जोडक़र देखा जा रहा है। समिति में कुछ नाम तो चौंकाने वाले थे। मतलब नेपथ्य में चल रहे कुछ लोगों की लॉटरी लग गई तो कुछ जो हमेशा चर्चा में रहते थे वे ताकते रह गए। बताया जाता है कि यह सब पार्टी को मजबूत करने के लिहाज से किया गया है लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि यह सब एक पार्टी के बड़े नेता के विरोध के बावजूद किया गया। वैसे भी राजनीति में नफा-नुकसान दोनों का महत्व है लेकिन जब कम नुकसान में बड़ा नफा हो रहा हो तो फिर दांव खेलने में किसी तरह की हिचकिचाहट होती दिखाई नहीं देती है। 
-बातूनी
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 13 मार्च 16 के अंक में प्रकाशित साप्ताहिक कॉलम...

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