कश्मीर के उरी में आतंकी हमले के बाद समूचे देश में देशभक्ति की बयार बह रही है। विशेषकर सोशल मीडिया पर हर दूसरी पोस्ट इस हमले की प्रतिक्रिया से संबंधित है। कोई कविता के माध्यम से अपना आक्रोश व्यक्त कर रहा है तो कोई कुछ लिखकर। लब्बोलुआब यह है कि देशभक्ति से ओतप्रोत जोश व जज्बे की जो धारा देशभर में बह रही है, उससे यह जाहिर हो रहा है कि देश एकजुटता के सूत्र में बंध गया है जबकि हकीकत में ऐसा है नहीं। चौंकाने वाली बात यह है कि सब अपने को देशभक्त साबित करने पर तुले हैं और सबके कारण दीगर हैं। मतलब एकजुट होते हुए भी एकजुटता दिखाई नहीं देती। मुख्य रूप से देशभक्ति पांच भागों में बंटी नजर आती है। हमले से लेकर अब तक जो बयानबाजी हुई है, जो जुमले गढ़े गए हैं, इससे यह बात जाहिर भी होती है। मैंने कल सुबह से लेकर आज शाम तक मैंने महसूस किया तो इस मसले पर मुख्य रूप से पांच तरह की विचारधारा चल रही हैं।
1. युद्ध के पक्षधर
यह वर्ग आतंकी हमले के बदले युद्ध चाहता है। इस वर्ग की दलील है कि लगातार हमले हो रहे हैं लेकिन उनका कारगर जवाब न देने के कारण दुश्मन का दुस्साहस बढ़ रहा है। दुश्मन छदम युद्ध के जरिये जान माल को नुकसान पहुंचा रहा है और हम केवल बयान-बैठकें कर इतिश्री कर लेते हैं। दुश्मन की नापाक करतूत माफी के काबिल नहीं है। दुश्मन को उसके किए की सजा जरूर मिलनी चाहिए। ऐसे लोगों में अधिकतर संवदेनशील, भावुक एवं जज्बाती ज्यादा हैं, जो खून का बदला खून से लेने के हिमायती हैं।
2. शांति के हिमायती
लगातार आतंकी हमले के बावजूद एक वर्ग ऐसा भी है जो युद्ध नहीं चाहता। इस वर्ग का मानना है कि युद्ध से इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सकता है। युद्ध पहले भी हुए हैं लेकिन पड़ोसी अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। यह वर्ग मानता है कि समस्या का हल बातचीत एवं कूटनीतिक रणनीति से संभव है। इसके जरिये हम दुश्मन को अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य से अलग-थलग करने में सफल होंगे। इस वर्ग में कई बुद्धजीवी एवं पत्रकार शामिल हैं, जो युद्ध को मानवता के लिए खतरा भी मानते हैं।
3. मोदी समर्थक
इस वर्ग में विशुद्ध रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समर्थक एवं उनकी पार्टी के लोग शामिल हैं। यह लोग युद्ध की आलोचना तो कर रहे हैं लेकिन लगे हाथ पुराने मसलों को समानांतर रखकर विरोधियों को पटखनी देने के प्रयास में जुटे हैं। विशेषकर अहिष्णुता मसले पर पुरस्कार त्यागने वाले, कश्मीर घाटी में आतंकी की मौत पर संवेदना जताने वाले, याकूब मेनन की सही ठहहराने वालों के प्रति यह वर्ग आक्रामक है और इस बहाने सवाल भी पूछ रहा है कि कल तक यह सब करने वाले अब कहां हैं और चुप क्यों हैं।
4. मोदी विरोधी
इस हमले के बाद एक वर्ग ऐसा भी है जो प्रधानमंत्री के चुनाव से पूर्व दिए गए बयानों को ही व्यंग्य व तंज के रूप में पेश कर रहा है। विशेषकर मोदी के 56 इंच के सीने को लेकर कई तरह के जुमले ईजाद हो गए। दरअसल यह वर्ग मोदी विरोधी पार्टियों का है। सीमा पर लगातार हो रहे हमलों व केन्द्र के लचीले रूख ने इस वर्ग को आक्रामक और मुखर बना दिया है। इस वर्ग के व्यंग्य व तंज सोशल मीडिया पर बडे ही दिलचस्प अंदाज में पोस्ट किए किए जा रहे हैं और उसी अंदाज में शेयर भी हो रहे हैं।
5. केवल देशभक्ति
दरअसल, यह वो वर्ग है जो देशभक्त होने का दावा करता है लेकिन उक्त चारों विचारधाराओं से खुद को अलग भी साबित करता है। यह वर्ग न तो मोदी का विरोधी है और ना ही पक्षधर। बड़ी बात यह है कि यह न तो युद्ध की बात करता है ना ही शांति की। यह किसी वर्ग से भी बंधना नहीं चाहता। यह चारों विचाराधाराओं का आलोचक भी है और खुद को देशभक्त भी बताता है। देखा जाए तो इस वर्ग के पास हमले के बाद क्या किया जाना चाहिए इसको लेकर कोई विकल्प नहीं है। यह केवल देश भक्ति की बात करता है।
बहरहाल, सोशल मीडिया पर अब जिस तरह की पोस्ट आती है, उसको उसी विचारधारा का पोषक मान लिया जाता है। राजनीतिक दलों व उनके समर्थकों में इस तरह की बातें ज्यादा हैं। इस मुद्दें के लेकर बाकायदा गरमागरम बहसें हो रही हैं। सब अपनी-अपनी दलीलें दे रहे हैं। यहां तक कि तर्क-कुतर्क एवं तमाम तरह के उदाहरणों का सहारा लिया जा रहा है। इस तरह की देशभक्ति पहली बार देखने को मिल रही है। युद्ध समर्थकों व शांति के हिमायती वर्ग भी अपने-अपने हिसाब से तर्क दे रहे हैं। इसमें शांति समर्थक युद्ध के हालात, इसके बाद के हालात का चित्रण कर इसकी भयावहता से अवगत करा रहे हैं जबकि युद्ध समर्थकों की दलील है कि दुश्मन बात से न पहले समझा है और ना ही अब समझेगा। खैर, इस हमले के बाद क्या होगा। इस बात का फैसला तो दिल्ली को करना है लेकिन इस मसले से बैठे बिठाए लोगों को बहस के लिए मुद्दा जरूर मिल गया है। इसलिए बहस जारी रहे।
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