बस यूं ही
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश में कौन कब क्या बोल दे, इसका कोई भरोसा नहीं है। मीडिया जगत में भले ही इसे जुबान फिसलना करार दिया जाता रहा हो लेकिन यह एक सुनियोजित तरीका है, सस्ती लोकप्रियता पाने का, चर्चा में आने का। विशेषकर हमारे देश के नेता विवादित बयान जारी करने में कभी पीछे नहीं रहते। एक बयान जारी होता है और इसके तत्काल बाद विरोध और समर्थन में आवाजें उठने शुरू हो जाती हैं। सियासी नफे नुकसान का आकलन होने लगता है। रेप का मसला भी देश में 'गरीब की लुगाई' की तरह ही है। तभी तो कोई कुछ भी बयान जारी कर देता है। रेप को लेकर वैसे तो विवादित बयानों की फेहरिस्त लंबी है और ऐसा करने वाले ज्यादातर नेता ही हैं, लेकिन फिल्म अभिनेता सलमान खान भी इन दिनों चर्चा में हैं। उनके ताजा बयान की जमकर आलोचना हो रही है। सलमान में अपनी फिल्म सुल्तान की शूटिंग के दौरान कहा, 'जब शूट के बाद रिंग से बाहर निकल रहा था तो मुझे लगा कि मैं एक एेसी महिला हूं, जिसके साथ रेप हुआ है। मैं सीधे बिलकुल नहीं चल पा रहा था।' भला यह भी कोई कहने की बात है कि आप थके हुए हो तो कैसा महसूस करते हो? रेप और थकान में काहे की समानता? और फिर एक पुरुष रेप की पीड़ा का एहसास कैसे कर सकता है? यह बेहद बचकाना बयान है, जो केवल और केवल चर्चा मेें आने के लिए ही दिया गया है। खैर, चौतरफा आलोचना के बीच सलमान के समर्थन में फिल्म अदाकारा पूजा बेदी ने बयान जारी किया है। सलमान के पिता ने भी माफी मांगी है लेकिन इन लोगों के ऐसा करने से जो कहा गया है, उसकी गंभीरता खत्म नहीं होने वाली। आखिर ऐसी क्या मजबूरी आन पड़ी थी कि सलमान को थकान की तुलना रेप से करनी पड़ी।
बेतुके एवं बचकाने बयान जारी करने में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मार्केंडय काटजू का नाम भी आता है। सलमान के बयान के तर्ज पर उन्होंने भी मंगलवार को इंदौर में बयान दिया कि 'देश में महिला से रेप होना कोई महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है। यह तो पहले भी होता रहा है और आगे भी होता रहेगा।' तरस आता है इस तरह के बयान देने वालों पर। आखिर वो किस आधार पर कह रहे हैं कि रेप आगे भी होता रहेगा। इसका मतलब तो यह है कि काटजू बहुत बड़े दूरदर्शी हैं और उनको देश की कानून व्यवस्था पर भरोसा भी नहीं है।
सलमान एवं काटजू के हालिया बयानों से इतर बात करें तो रेप शब्द हमारे नेताओं की जुबान पर इस कदर चढ़ा हुआ है कि वो कुछ भी कह उठते हैं। नेताओं की बदजुबानी के किस्से कई हैं। मसलन यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कहा था ' एक महिला से चार पुरुष रेप कर ही नहीं सकते।' यूपी के ही सपा नेता आजम खान जब एक रेप पीडि़ता उनसे मिलने गई तो 'दुनिया को कैसे शक्ल दिखाओगी' कहकर फंस चुके हैं। कर्नाटक के गृहमंत्री केजे चार्ज हों या छत्तीसगढ़ के पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा या फिर महाराष्ट, के पूर्व गृहमंत्री आरआर पाटिल यह सब नेता भी रेप पर विवादित बयान जारी कर चुके हैं। जार्च ने कहा था ' दो लोगों द्वारा किया रेप गैंग रेप नहीं है।' पैकरा ने कहा था ' रेप जान बूझकर नहीं धोखे से होता है। 'इसी तरह से पाटिल ने रेप मामले में फंसे एक उम्मीदवार को लेकर कहा था कि ' रेप करना ही था तो चुनाव के बाद करना था।' इसी तरह विवादत बयान जारी करने वालों में सीपीआई नेता अतुल अंजान एवं तृणमल कांग्रेस के तपस पाल भी पीछे नहीं रहे।
खैर, इस तरह के बयान जारी कर तात्कालिक रूप से चर्चा में जरूर बना रहा जा सकता है लेकिन यह परिपक्वता की निशानी तो कतई नहीं कही जा सकती। इससे बयान जारी करने वालों की मानसिकता का स्तर तो पता चल ही जाता है। यह सिर्फ सस्ती लोकप्रियता पाने के अलावा और कुछ भी नहीं है। यह नारी शक्ति का अपमान है। यह बोलने की आजादी का सरासर दुरुपयोग है लेकिन दुर्भाग्य से इस दिशा में कोई सुधार होता दिखाई नहीं देता। राजनीतिक दल अक्सर संबंधित नेता का व्यक्तिगत मामला बताकर पल्ला झाड़ लेते हैं तो बयानवीर भी बढ़ते विरोध के बाद पलट जाते हैं। ऐसे में सवाल शेष रह जाता है कि आखिर इस तरह के बयान जारी करने की जरूरत क्यों व कहां है?
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश में कौन कब क्या बोल दे, इसका कोई भरोसा नहीं है। मीडिया जगत में भले ही इसे जुबान फिसलना करार दिया जाता रहा हो लेकिन यह एक सुनियोजित तरीका है, सस्ती लोकप्रियता पाने का, चर्चा में आने का। विशेषकर हमारे देश के नेता विवादित बयान जारी करने में कभी पीछे नहीं रहते। एक बयान जारी होता है और इसके तत्काल बाद विरोध और समर्थन में आवाजें उठने शुरू हो जाती हैं। सियासी नफे नुकसान का आकलन होने लगता है। रेप का मसला भी देश में 'गरीब की लुगाई' की तरह ही है। तभी तो कोई कुछ भी बयान जारी कर देता है। रेप को लेकर वैसे तो विवादित बयानों की फेहरिस्त लंबी है और ऐसा करने वाले ज्यादातर नेता ही हैं, लेकिन फिल्म अभिनेता सलमान खान भी इन दिनों चर्चा में हैं। उनके ताजा बयान की जमकर आलोचना हो रही है। सलमान में अपनी फिल्म सुल्तान की शूटिंग के दौरान कहा, 'जब शूट के बाद रिंग से बाहर निकल रहा था तो मुझे लगा कि मैं एक एेसी महिला हूं, जिसके साथ रेप हुआ है। मैं सीधे बिलकुल नहीं चल पा रहा था।' भला यह भी कोई कहने की बात है कि आप थके हुए हो तो कैसा महसूस करते हो? रेप और थकान में काहे की समानता? और फिर एक पुरुष रेप की पीड़ा का एहसास कैसे कर सकता है? यह बेहद बचकाना बयान है, जो केवल और केवल चर्चा मेें आने के लिए ही दिया गया है। खैर, चौतरफा आलोचना के बीच सलमान के समर्थन में फिल्म अदाकारा पूजा बेदी ने बयान जारी किया है। सलमान के पिता ने भी माफी मांगी है लेकिन इन लोगों के ऐसा करने से जो कहा गया है, उसकी गंभीरता खत्म नहीं होने वाली। आखिर ऐसी क्या मजबूरी आन पड़ी थी कि सलमान को थकान की तुलना रेप से करनी पड़ी।
बेतुके एवं बचकाने बयान जारी करने में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मार्केंडय काटजू का नाम भी आता है। सलमान के बयान के तर्ज पर उन्होंने भी मंगलवार को इंदौर में बयान दिया कि 'देश में महिला से रेप होना कोई महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है। यह तो पहले भी होता रहा है और आगे भी होता रहेगा।' तरस आता है इस तरह के बयान देने वालों पर। आखिर वो किस आधार पर कह रहे हैं कि रेप आगे भी होता रहेगा। इसका मतलब तो यह है कि काटजू बहुत बड़े दूरदर्शी हैं और उनको देश की कानून व्यवस्था पर भरोसा भी नहीं है।
सलमान एवं काटजू के हालिया बयानों से इतर बात करें तो रेप शब्द हमारे नेताओं की जुबान पर इस कदर चढ़ा हुआ है कि वो कुछ भी कह उठते हैं। नेताओं की बदजुबानी के किस्से कई हैं। मसलन यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कहा था ' एक महिला से चार पुरुष रेप कर ही नहीं सकते।' यूपी के ही सपा नेता आजम खान जब एक रेप पीडि़ता उनसे मिलने गई तो 'दुनिया को कैसे शक्ल दिखाओगी' कहकर फंस चुके हैं। कर्नाटक के गृहमंत्री केजे चार्ज हों या छत्तीसगढ़ के पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा या फिर महाराष्ट, के पूर्व गृहमंत्री आरआर पाटिल यह सब नेता भी रेप पर विवादित बयान जारी कर चुके हैं। जार्च ने कहा था ' दो लोगों द्वारा किया रेप गैंग रेप नहीं है।' पैकरा ने कहा था ' रेप जान बूझकर नहीं धोखे से होता है। 'इसी तरह से पाटिल ने रेप मामले में फंसे एक उम्मीदवार को लेकर कहा था कि ' रेप करना ही था तो चुनाव के बाद करना था।' इसी तरह विवादत बयान जारी करने वालों में सीपीआई नेता अतुल अंजान एवं तृणमल कांग्रेस के तपस पाल भी पीछे नहीं रहे।
खैर, इस तरह के बयान जारी कर तात्कालिक रूप से चर्चा में जरूर बना रहा जा सकता है लेकिन यह परिपक्वता की निशानी तो कतई नहीं कही जा सकती। इससे बयान जारी करने वालों की मानसिकता का स्तर तो पता चल ही जाता है। यह सिर्फ सस्ती लोकप्रियता पाने के अलावा और कुछ भी नहीं है। यह नारी शक्ति का अपमान है। यह बोलने की आजादी का सरासर दुरुपयोग है लेकिन दुर्भाग्य से इस दिशा में कोई सुधार होता दिखाई नहीं देता। राजनीतिक दल अक्सर संबंधित नेता का व्यक्तिगत मामला बताकर पल्ला झाड़ लेते हैं तो बयानवीर भी बढ़ते विरोध के बाद पलट जाते हैं। ऐसे में सवाल शेष रह जाता है कि आखिर इस तरह के बयान जारी करने की जरूरत क्यों व कहां है?
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