Wednesday, December 28, 2016

...तो भयावह होंगे हालात

 टिप्पणी

 दो चार दिन पहले देश के विभिन्न हिस्सों में छाया स्मॉग तो सभी को याद ही होगा। किस तरह दिन भर धुआं सा छाया रहा। आंखों में जलन थी तो सांस तक आसानी से नहीं ले पा रहे थे लोग। इस स्मॉग से निपटने पर अच्छा खासा चिंतन मंथन भी शुरू हुआ। स्मॉग किस स्तर तक है इसको बाकायदा मापा भी गया। हालात इस कदर बिगड़े कि आठ नवंबर को राजस्थान राज्य प्रदूषण नियत्रंण मंडल ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के निर्देशों की पालना में अलवर व भरतपुर जिलों में एक सप्ताह तक सभी स्टोन क्रेशर व ईंट भट्ठों के संचालन पर रोक लगा दी। इसी तरह दस नवम्बर को प्राधिकरण ने ही दिल्ली में थर्मल पावर प्लांट को अस्थायी रूप से बंद कर दिया। एक महत्वपूर्ण आदेश भी गुरुवार को दिया गया जब सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण पर केन्द्र को फटकार लगाते हुए कहा कि केन्द्र सरकार इस बात का इंतजार कर रही है कि लोग सड़कों पर प्रदूषण की वजह से मरें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वच्छ सांस लेना लोगों का मौलिक हक है।
ऐसे में सवाल उठता है कि स्वच्छ सांस लेने की बात क्या दिल्ली के लोगों तक ही सीमित है? प्रदूषण से स्वास्थ्य को सर्वाधिक खतरा उन्हीं को होता है? श्रीगंगानगर एवं हनुमानगढ़ जिले के लोगों के जान की कीमत ही नहीं? बड़ी बात तो यह है कि श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ में प्रदूषण मापने का कोई पैमाना ही नहीं है जबकि दोनों जिलों में धूल, धुंध एवं धुआं कदम-कदम पर है। ईंट भ_ों की संख्या दोनों जिलों में बड़ी संख्या में हैं। दुपहिया एवं चौपहिया वाहनों की संख्या भी यहां दूसरे जिलों की अपेक्षा ज्यादा है। हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर जिले में चावल की खेती खूब होती है। खेतों में पराली जलाने का प्रचलन इधर भी है। श्रीगंगानगर जिला मुख्यालय की ही बात करें तो सड़कों पर उडऩे वाली धूल ही इतनी है कि भले चंगे आदमी को अस्पताल जाने को मजबूर कर देती है।
बहरहाल, स्मॉग को देखते हुए श्रीगंगानगर एवं हनुमानगढ़ जिले में प्रदूषण का स्तर चिंता बढाने वाला है। जिम्मेदारों को इस दिशा में अविलंब पहल करनी चाहिए वरना हालात भयावह होते देर नहीं लगेगी। आम आदमी के स्वास्थ्य से जुड़े इस मामले में जागरूक लोगों को भी आगे आना चाहिए। जब अतिक्रमण जैसी समस्या के लिए यहां के जागरूक लोग अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं, प्रशासन को कठघरे में खड़ा कर सकते हैं, तो जीवन से जुड़े इस मसले पर चुप्पी क्यों? प्रदूषण से बचाव की बात तो बाद की है पहले इसके स्तर को मापने की बाद तो करें। इसके लिए कोई ठोस एवं कारगर प्रयास तो हों।

राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 12 नवम्बर 16 प्रकाशित ....

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