टिप्पणी
बदहाली के भंवर में फंसे शहर की तमाम व्यवस्थाएं भगवान भरोसे नजर आती हैं। बद से बदतर होने की तरफ बढ़ रहे हालात हकीकत में हतप्रभ करने वाले हैं। दीपावली के चलते दर ओ दीवारों को दमकाने का दौर भले ही चल रहा हो लेकिन शहर गंदगी और गर्त के आगोश में है। यही कारण रहा कि मंगलवार को कुछ युवाओं ने सोए हुए प्रशासन को जगाने की एक छोटी सी कोशिश की।
नगर परिषद कार्यालय में मोमबत्तियां जलाकर इन युवाओं ने प्रशासन, नगर परिषद एवं पार्षदों की कार्यशैली के खिलाफ विरोध जताया। भले ही यह विरोध प्रतीकात्मक रहा हो लेकिन यह साबित करता है कि लोगों का धैर्य अब जवाब देने लगा है। शहर का आम आदमी दुखी है। वह अंदर ही अंदर सुलग रहा है। व्यवस्थाओं को कोस रहा है और मुखर होकर सडक़ पर आने लगा है।
वैसे भी शहर में ऐसी व्यवस्था नजर नहीं आती जिस पर संतोष किया जा सके। निराश्रित पशुओं का स्वच्छंद विचरण, श्वानों की बढ़ती फौज और गंदगी से बजबजाती नालियों में पनपते मच्छरों ने शहर व शहरवासियों की सेहत वैसे ही बिगाड़ रखी है। शहर की खूबसूरती से खिलवाड़ कर गंगानगर से गंदानगर होते शहर की फिक्र किसी को नहीं? सडक़ों पर उड़ती धूल, कचरे से अटी नालियां, कई जगह बंद पड़ी रोडलाइट, खराब हाइमास्ट, टूटी सडक़ें, क्षतिग्रस्त डिवाइडर, जगह-जगह पसरा अतिक्रमण, मनमर्जी की पार्किंग, बेतरतीब यातायात आदि यह बताते हैं कि व्यवस्थाएं यहां हांफ रही हैं तो प्रशासन पंगु जैसा हो चुका है। रही-सही कसर सियासी रस्साकशी ने पूरी कर दी। जनप्रतिनिधि और जिम्मेदार अधिकारी भी जनहित के जुड़े मसलों को दरकिनार कर खुद के अहं की तुष्टि करने में जुटे हैं।
बहरहाल, जनप्रतिनिधियों एवं जिम्मेदारों को इस सांकेतिक प्रदर्शन से अब जाग जाना जाहिए। शहरवासियों की दीपावली अच्छे से मने। शहर साफ सुथरा हो, अधूरे काम प्राथमिकता से जल्द पूरे हो, लगभग स्थायी बन चुकी समस्याओं के निराकरण के लिए ठोस एवं दूरगामी योजना बने। प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी-कर्मचारी एवं जनप्रतिनिधि ऐसा कर पाए तो यकीन मानिए शहर सुकून के साथ दीपोत्सव मना पाएगा।
राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण के 20 अक्टूबर 16 के अंक में प्रकाशित....
बदहाली के भंवर में फंसे शहर की तमाम व्यवस्थाएं भगवान भरोसे नजर आती हैं। बद से बदतर होने की तरफ बढ़ रहे हालात हकीकत में हतप्रभ करने वाले हैं। दीपावली के चलते दर ओ दीवारों को दमकाने का दौर भले ही चल रहा हो लेकिन शहर गंदगी और गर्त के आगोश में है। यही कारण रहा कि मंगलवार को कुछ युवाओं ने सोए हुए प्रशासन को जगाने की एक छोटी सी कोशिश की।
नगर परिषद कार्यालय में मोमबत्तियां जलाकर इन युवाओं ने प्रशासन, नगर परिषद एवं पार्षदों की कार्यशैली के खिलाफ विरोध जताया। भले ही यह विरोध प्रतीकात्मक रहा हो लेकिन यह साबित करता है कि लोगों का धैर्य अब जवाब देने लगा है। शहर का आम आदमी दुखी है। वह अंदर ही अंदर सुलग रहा है। व्यवस्थाओं को कोस रहा है और मुखर होकर सडक़ पर आने लगा है।
वैसे भी शहर में ऐसी व्यवस्था नजर नहीं आती जिस पर संतोष किया जा सके। निराश्रित पशुओं का स्वच्छंद विचरण, श्वानों की बढ़ती फौज और गंदगी से बजबजाती नालियों में पनपते मच्छरों ने शहर व शहरवासियों की सेहत वैसे ही बिगाड़ रखी है। शहर की खूबसूरती से खिलवाड़ कर गंगानगर से गंदानगर होते शहर की फिक्र किसी को नहीं? सडक़ों पर उड़ती धूल, कचरे से अटी नालियां, कई जगह बंद पड़ी रोडलाइट, खराब हाइमास्ट, टूटी सडक़ें, क्षतिग्रस्त डिवाइडर, जगह-जगह पसरा अतिक्रमण, मनमर्जी की पार्किंग, बेतरतीब यातायात आदि यह बताते हैं कि व्यवस्थाएं यहां हांफ रही हैं तो प्रशासन पंगु जैसा हो चुका है। रही-सही कसर सियासी रस्साकशी ने पूरी कर दी। जनप्रतिनिधि और जिम्मेदार अधिकारी भी जनहित के जुड़े मसलों को दरकिनार कर खुद के अहं की तुष्टि करने में जुटे हैं।
बहरहाल, जनप्रतिनिधियों एवं जिम्मेदारों को इस सांकेतिक प्रदर्शन से अब जाग जाना जाहिए। शहरवासियों की दीपावली अच्छे से मने। शहर साफ सुथरा हो, अधूरे काम प्राथमिकता से जल्द पूरे हो, लगभग स्थायी बन चुकी समस्याओं के निराकरण के लिए ठोस एवं दूरगामी योजना बने। प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी-कर्मचारी एवं जनप्रतिनिधि ऐसा कर पाए तो यकीन मानिए शहर सुकून के साथ दीपोत्सव मना पाएगा।
राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण के 20 अक्टूबर 16 के अंक में प्रकाशित....
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