आक्रोश की आग अब मंद पड़ कर बड़ी तेजी से एेसे अंगारों में तब्दील हो रही है, जो बुझ कर राख होने वाली है। गुस्सा भी गंभीरता छोड़कर हास-परिहास पर उतर आया है। दिलों में दबा दर्द जुबान तक आकर ही रह गया। सब्र भी शांत होकर अपनी सीमाएं तोडऩे का साहस नहीं दिखा पा रहा। सुलह, समझौता व संधि जैसे शब्द फिर से सुकून देने लगे हैं। इन सबके साथ केन्द्र की कमजोरी को कोसने वाले यकायक बढ़ गए हैं। जुमलों एवं चुटकलों का तो सैलाब सा आ गया है। हास्य व व्यंग्य से लबरेज एेसे एेसे चुटकुले ईजाद हो गए हैं, जो किसी को गुदगुदाते हैं तो किसी को अंदर ही अंदर बहुत चुभते हैं। सोशल मीडिया व टीवी पर दस दिन से घमासान मचा है। खबरें व चुटकुले भी दो तरह के हैं और इसी के हिसाब से दो खेमे भी बन गए हैं। संयोग से दोनों ही देशभक्त खेमे हैं। सरकार की आलोचना करने वाले देशभक्त और सरकार का समर्थन करने वाले देशभक्त। देश में फिलवक्त इन दोनों देशभक्तों के बीच ही घमासान मचा है। तर्क-कुतर्क व आरोप-प्रत्यारोपों की बहस के बीच दोनों एक दूसरे को सही एवं गलत ठहराने पर आमादा हैं। खून का बदला खून व आर पार की लड़ाई की बात अब ' मैं सही तू गलत' में बदल चुकी है। दुश्मन को नेस्तनाबूद करने के लिए रोज नए सुझाव बन और खारिज हो रहे हैं।
खैर, मुझे मौजूदा हालात में सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है यह जुमला बेहद मौजूं लगता हैं.....
'दो व्यक्ति बात कर रहे हैं....
एक : अगर पाकिस्तान नहीं होता तो भी हम देशभक्त होते क्या?
दूसरा : यार अगर हम सच में देशभक्त होते तो ये पाकिस्तान ही नहीं होता.....'
दो लाइन के इस जुमले में मेरे को तो काफी कुछ छिपा नजर आता है। आप क्या सोचते हैं?
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