Wednesday, December 28, 2016

मुक्तक

1
 राजनीति में चलते हैं, दांव-पेंच के खेल,
रोज यहां बनते-बिगड़ते, गठजोड़ बेमेल।
सत्ता सुंदरी के खातिर, सिद्धांत हुए गौण,
गाहे-बगाहे यारो, मां बेटी को रहे धकेल।
2
सलमान को मिला है देखो, शिव का यह वरदान,
सोमवार के दिन है आया, निर्णय बड़ा 'महान '।
साल अठारह तक जिसने, अटका रखे थे प्रान,
पीछा छूटा उस चिंकारा से, आई जान में जान।
.3
सहज, सरल, सीधे हैं हम, करते हैं सबका सम्मान,
पर चालाक पड़ोसी हमारा, करता रहता है अपमान।
पैंसठ, इकहत्तर व करगिल में नाको चने चबवाए हैं,
पर कुत्ते की दुम की तरह, नहीं सुधरा है बेईमान।
4
हिन्द देश के वीरों का जन-जन करता है सम्मान,
इतिहास का पन्ना-पन्ना, करता है इनके गुणगान।
अपमान के घूंट आखिर, कब तक पीते रहेंगे हम,
फिर से नए शंखनाद की, उम्मीद में है हिन्दुस्तान
5
काम की कीमत क्या होती है, समझा गए कलाम,
अपने करमों से कर गए वो, ऊंचा हिन्द का नाम।
मां भारती का सीना तो एेसे सपूतों से ही चौड़ा है,
कृतज्ञ राष्ट्र भी करता है, उस महामानव को सलाम।

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