टिप्पणी
जरा सोचिए, चंद नोटों के लिए जमीर को ताक पर रखने वाले। जरा से लालच के लिए ईमान का सौदा करने वाले। निजी हितों लिए देश की साख से खिलवाड़ करने वाले। देश के लिए फर्ज और कर्तव्य की शपथ लेकर भूलने वाले। क्या ऐसे लोग जरूरत पडऩे पर देशभक्ति दिखा पाएंगे? क्या ऐसे लोगों से वतन की खातिर जान देने की उम्मीद की जा सकती है? क्या इस तरह के लोग वतन की सुरक्षा के लिए मुफीद हैं? सवालों का यह सिलसिला बेहद लंबा है। मामला जोश, जज्बे और जुनून से लबरेज जवानों से लैस भारतीय सेना से जुड़ा है, इसलिए सोचनीय है। चिंताजनक तो है ही, क्योंकि सीमा से सटे बेहद संवदेनशील इलाके में कमीशन के कारोबार का भंडाफोड़ जो हुआ है। यकीनन, सुरक्षा जैसे संवदेनशील लेकिन मजबूत किले में भ्रष्टाचार की यह घुसपैठ चौंकाती है, डराती है। साधुवाली छावनी में सेना की इंजीनियरिंग सर्विस के चार अफसरों और एक लिपिक का साठ हजार रुपए की घूस लेते पकड़े जाना नि:सदेह किसी काले अध्याय से कम नहीं हैं। सेना के अनुशासन, उसूलों एवं नियमों के खिलाफ जाकर इस तरह के कृत्य को अंजाम देना एक तरह का
देशद्रोह ही तो है। दरअसल, इस तरह के मामले पहले भी उजागर होते रहे हैं और यह भी सही है कि यह ईमान बेचने वाले चंद लोगों की करतूत है। लेकिन, इस तरह के घटनाक्रम अनुशासन का चीरहरण करते हैं। हौसलों को तो हतोत्साहित करते ही हैं मनोबल कमजोर करने में भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं। बहरहाल, भ्रष्टाचार का यह मामला सिलसिलेवार कई तरह की जांचों से गुजरता हुआ किस मुकाम पर पहुंचेगा, अभी कुछ तय नहींं। हां, इस तरह के घटनाक्रमों से सबक जरूर लिया जा सकता है, लेना भी चाहिए। सबसे ज्यादा जरूरत तो कमजोर कड़ी पहचानने की है। आस्तीन के ऐसे सांपों की शिनाख्त बेहद जरूरी है। पैसा ही जिनके लिए भगवान है, उनके लिए फिर देश क्या और देशप्रेम क्या। चंद नोटों में बिकने वालों से देशभक्ति की उम्मीद करना बेमानी है। सुरक्षा में ऐसे सुराख समय रहते रोक देना लाजिमी है, वरना इस तरह की मछलियां तालाब को गंदा और छवि को धूमिल करती रहेंगी।
राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर के 13 अप्रेल 16 के अंक में प्रकाशित...
जरा सोचिए, चंद नोटों के लिए जमीर को ताक पर रखने वाले। जरा से लालच के लिए ईमान का सौदा करने वाले। निजी हितों लिए देश की साख से खिलवाड़ करने वाले। देश के लिए फर्ज और कर्तव्य की शपथ लेकर भूलने वाले। क्या ऐसे लोग जरूरत पडऩे पर देशभक्ति दिखा पाएंगे? क्या ऐसे लोगों से वतन की खातिर जान देने की उम्मीद की जा सकती है? क्या इस तरह के लोग वतन की सुरक्षा के लिए मुफीद हैं? सवालों का यह सिलसिला बेहद लंबा है। मामला जोश, जज्बे और जुनून से लबरेज जवानों से लैस भारतीय सेना से जुड़ा है, इसलिए सोचनीय है। चिंताजनक तो है ही, क्योंकि सीमा से सटे बेहद संवदेनशील इलाके में कमीशन के कारोबार का भंडाफोड़ जो हुआ है। यकीनन, सुरक्षा जैसे संवदेनशील लेकिन मजबूत किले में भ्रष्टाचार की यह घुसपैठ चौंकाती है, डराती है। साधुवाली छावनी में सेना की इंजीनियरिंग सर्विस के चार अफसरों और एक लिपिक का साठ हजार रुपए की घूस लेते पकड़े जाना नि:सदेह किसी काले अध्याय से कम नहीं हैं। सेना के अनुशासन, उसूलों एवं नियमों के खिलाफ जाकर इस तरह के कृत्य को अंजाम देना एक तरह का
देशद्रोह ही तो है। दरअसल, इस तरह के मामले पहले भी उजागर होते रहे हैं और यह भी सही है कि यह ईमान बेचने वाले चंद लोगों की करतूत है। लेकिन, इस तरह के घटनाक्रम अनुशासन का चीरहरण करते हैं। हौसलों को तो हतोत्साहित करते ही हैं मनोबल कमजोर करने में भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं। बहरहाल, भ्रष्टाचार का यह मामला सिलसिलेवार कई तरह की जांचों से गुजरता हुआ किस मुकाम पर पहुंचेगा, अभी कुछ तय नहींं। हां, इस तरह के घटनाक्रमों से सबक जरूर लिया जा सकता है, लेना भी चाहिए। सबसे ज्यादा जरूरत तो कमजोर कड़ी पहचानने की है। आस्तीन के ऐसे सांपों की शिनाख्त बेहद जरूरी है। पैसा ही जिनके लिए भगवान है, उनके लिए फिर देश क्या और देशप्रेम क्या। चंद नोटों में बिकने वालों से देशभक्ति की उम्मीद करना बेमानी है। सुरक्षा में ऐसे सुराख समय रहते रोक देना लाजिमी है, वरना इस तरह की मछलियां तालाब को गंदा और छवि को धूमिल करती रहेंगी।
राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर के 13 अप्रेल 16 के अंक में प्रकाशित...
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