बस यूं ही
पत्रकारिता दिवस के मौके पर आज फेसबुक पर कई साथियों के अनुभव जानने और पढऩे को मिले। किसी ने जमात की बिलकुल बेबाकी से बखियां उधेड़ी तो किसी ने बीच का रास्ता निकालकर अपनी बात बड़ी चतुराई से पेश की। यह सही है कि सभी लोग अपनी हकीकत जानते हैं। पत्रकार जमात भी उससे अछूती नहीं हैं। लेकिन मुझसे भला न कोय की तर्ज पर बुरा बनना भी कौन चाहता है। वैसे, कमोबेश हर क्षेत्र में दो तरह के लोग होते हैं। जमीर को जिंदा रखने वाले और जमीर का दम घोंटने वाले। इनके अलावा एक तीसरी प्रजाति भी होती है, जो अंदर ही अंदर जमीर को मारती भी है और दिखावे के तौर पर जिंदा रखने का ढोंग भी करती है। मैं पत्रकारिता में सबसे खतरनाक इस तीसरी प्रजाति को ही मानता हूं। तीसरी प्रजाति मतलब जिनके दो चेहरे होते हैं। सार्वजनिक रूप से ऐसे लोग छदम तरीके से बहुत ही नेक, ईमानदार एवं सिद्धांतवादी होने का ढिंढोरा पीटते हैं/ दिखावा करते हैं लेकिन अंदर खाने यही लोग जरा सा प्रलोभन मिलने पर ईमान से समझौता करने से नहीं चूकते। ऐसे उदाहरण एक दो नहीं दर्जनों हैं।
खैर, पत्रकारिता के मूल्यों में आ रही गिरावट के लिए लोग बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, उदाहरण देते हैं, लेकिन खुद का गिरेबान नहीं झांकते। मेरा मानना है कि आप वो ही कहो जो आप करते हैं या करना पसंद करते हैं। मतलब कथनी और करनी में भेद नहीं होना चाहिए। आप प्याज का सेवन करते हैं तो आपको कोई अधिकार नहीं है आप लोगों से प्याज न खाने का आग्रह करें। ऐसे लोगों के लिए मेरे को शकील बदायूंनी के शेर ' पायल के गमों का इल्म नहीं, झंकार की बातें करते हैं, दो कदम जो कभी चले नहीं रफ्तार की बातें करते हैं... का भान हो उठता है। पत्रकारिता के मूल्यों एवं सिद्धातों को शिद्दत से निभाने वाले साथी माफ करें लेकिन मेरी आंखों ने ऐसे-ऐसे सच भी देखे हैं कि बताते हुए भी बड़ी कोफ्त होती है। पैगों के लिए प्रायोजक ढूंढने वालों को भी नैतिकता का पाठ पढ़ाते देखा है। लब्बोलुआब यह है कि जनता की नजरों में जो बदनाम हैं वो बदनाम ही रहते हैं। और चढ़ गए वो अक्सर चढ़े ही रहते हैं लेकिन दुख इस तीसरी प्रजाति से होता है। इस प्रजाति से सभी दुखी हैं। आखिरकार इसके घालमेल ने सारा गुड़ गोबर एक कर रखा है।
नोट - यह पोस्ट किसी भी तरह का प्रलोभन न लेने तथा ईमानदारी व जुनून के साथ पत्रकारिता धर्म निभाने वाले साथियों के लिए नहीं हैं। इसलिए इसे पढ़कर वे दिल पर ना लेवें
No comments:
Post a Comment