Wednesday, December 28, 2016

हम शर्मिन्दा हैं...

मेरी टिप्पणी

चै त्र शुक्ल अष्टमी मतलब मां दुर्गा का दिन। मां की महिमा का दिन। मां से मुरादें मांगने का दिन। शक्ति की भक्ति में सराबोर रहने का दिन। मां के समक्ष संकल्प लेने का दिन। शक्ति स्वरूपा बेटियों को पूजने का दिन। उनके मान-सम्मान का दिन। मान-मनुहार एवं आवभगत के साथ बेटियों की सुरक्षा की शपथ लेने का दिन। ऐसे पावन एवं पुनीत मौके के दिन हुआ यह घिनौना और घृणित कुकृत्य हमे झकझोर देता है। शर्मसार करता है। वहशी की दरिंदगी की शिकार हुई मासूम मुनिया (परिवर्तित नाम) इलाज के इंतजार में दर्द से कराहती रही, लेकिन उसकी दशा देखकर किसी को दया नहीं आई। हनुमानगढ़ जिले के रावतसर कस्बे के अस्पताल में उसको ऐसा कोई रहमदिल नहीं मिला जो उसके दर्द की दवा कर सके। न तो परिजनों की पुकार एवं मासूम की पीड़ा पर किसी का दिल नहीं पसीजा और न ही उसकी तबीयत पर किसी ने तरस नहीं खाया। गुहार की गंभीरता को दरकिनार कर सभी ने उस मासूम से मुंह मोड़ लिया। हालात से हारी उस मासूम को मदद के नाम पर मिला तो केवल लंबा इंतजार। उसके दर्द की इंतिहा थी, लेकिन इलाज का इंतजार और लंबा हो गया।
व्यवस्था का यह व्यवहार जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा ही तो है। लानत है ऐसी व्यवस्था पर है, जो भरोसा तोड़ती है। व्यवस्था का यह रूप तो दुष्कर्म से भी ज्यादा शर्मनाक नजर आता है। अफसोजनक तो है ही। आखिर यह व्यवस्था है किसके लिए? व्यवस्थाओं के ऐसे दोष ही तो कालांतर में आक्रोश बढऩे के वाहक बनते हैं और विरोध की वजह भी। कल्पना कीजिए पीड़ा से कराहती मासूम व उसके परिजनों के लिए इंतजार का एक-एक पल कितना भारी रहा होगा।
बहरहाल, कोमल कल्पनाओं को कुचलने वाले उस वहशी भेडिय़ों को तो कानून यकीनन सजा देगा ही लेकिन व्यवस्था के जिम्मेदारों का जमीर क्या इस वाकये से जागेगा? क्या हम बार-बार शर्मिन्दा ही होते रहेंगे या व्यवस्था में बदलाव की कोई बयार भी दिखाई देगी? विडम्बना देखिए, एक तरफ तो हम बेटियों को आगे बढ़ाने की बात करते हैं। उनको बचाने का दंभ भरते हैं लेकिन जब उनके साथ इस तरह की अमानवीय हरकतें होती हैं तो कोई हलचल दिखाई नहीं देती। कथनी और करनी का यह भेद मिटाना होगा। आंसू आक्रोश में तब्दील होकर विरोध का रास्ता अख्तियार करें उससे पहले जिम्मेदारों को व्यवस्था पर लगी जंग हटाने की पहल शुरू कर देनी चाहिए। और अगर व्यवस्थाओं पर लगे विराम को हटाने का रास्ता विरोध ही है तो फिर जिम्मेदारों से उम्मीद रखना बेमानी है।


राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर के 15 अप्रेल 16 के अंक में प्रकाशित ...

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