Wednesday, December 28, 2016

सम्मान


मेरी 21वीं कहानी

तमाम प्रयासों के बावजूद शहर की सफाई व्यवस्था पटरी पर नहीं लौट रही थी। आए दिन समाचार पत्र शहर की बदहाली को बयां करते लेकिन सुधार होता दिखाई नहीं दे रहा था। आखिरकार अधिकारियों ने एक तरीका खोजा। सप्ताह में एक दिन जनप्रतिनिधियों व शहरवासियों को श्रमदान करने को कहा गया। लेकिन यह तरीका भी कारगर नहीं रहा। जिम्मेदार औपचारिकता निभा कर चलते बने। एक दिन आई तेज बारिश ने तो कोढ में खाज का काम किया। नालों की गंदगी सड़कों पर आ गई थी। तमाम तरह के उपाय फिर काम नहीं आए। अब तो जहां विरोध होता वहीं सफाई के काम को प्राथमिकता दी जाने लगी। जहां कोई नहीं बोलता वहां हाल बुरा था। इसी बीच स्वाधीनता दिवस आ गया। जिम्मेदार तैयारियों में व्यस्त हो गए। सफाई का काम उसी ढर्रे पर चलता रहा। अधिकारियों के बंगले व निवास जरूर चकाचक हो गए। स्वाधीनता दिवस के दिन तो शहर के अधिकतर हिस्से सफाई से वंचित रहे। यहां तक की समारोह स्थल पर खडी घास भी जिम्मेदारों की कार्यकुशलता की चुगली कर रही थी। जिला स्तरीय समारोह में उदघोषक ने सम्मानित होने वालों के नाम पुकारे। उनमें दो तीन नाम जब सफाई निरीक्षकों के आए तो मैं सन्न रह गया। सोच के भंवर में इतना डूबा कि बस इतना ही कह पाया, वाह रे सम्मान।

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