आज धर्मपत्नी निर्मल का जन्मदिन है। मेरा जन्मदिन भी अक्टूबर माह में ही आता है। दोनों के जन्मदिन में केवल सात दिन का अंतर है। मतलब मेरा 18 तो उसका 25 अक्टूबर। जन्मदिन की शुभकामना तो वैसे रात को ऑफिस से घर पहुंचते ही दे दी थी लेकिन सुबह कुछ शरारत सूझी। मैंने कहा जिंदगी के ......बसंत पूरे करने पर बधाई। (महिलाएं अपनी सही उम्र बताती ही कहां हैं। भला मैं सही बोलकर यह गुस्ताखी कैसे कर सकता हूं।) बस इतना सुनते ही बोली, जन्मदिन की बधाई ठीक है, उम्र का जिक्र मत करो। मैंने कहा हकीकत से क्यों भाग रहे हो। जो है वो तो है ही। खैर, इस विषय पर हम दोनों के बीच देर तक हंसी ठिठोली चलती रही।
इससे ठीक एक दिन पहले छोटे बेटे एकलव्य ने सवाल पूछकर धर्मसंकट खड़ा कर दिया था। उसने कहा था, पापा आप व्हाट्सएप की डीपी में दादीसा-दादोसा की फोटो ही क्यों लगाते हो। मैंने कहा बेटे वो मेरे माताजी-पिताजी हैं और मैं उनसे सर्वाधिक प्रेम करता हूं। इतना सुनते ही उसने कहा पापा याद है ना कल मम्मी का जन्मदिन है। मैंने कहा तो? तो कुछ नहीं मम्मी ने आपके जन्मदिन पर अपने व्हाट्सएप की डिपी बदली थी और स्टे्टस भी, क्या आप भी ऐसा ही करोगे? बड़ी मासूमियत से पूछे गए इस गंभीर सवाल का जवाब मैंने कुछ नहीं दिया। हां जरा सा मुस्कुरा भर दिया। आज सुबह उठते ही सबसे पहले व्हाट्स एप की डीपी एवं स्टेट्स चेंज किया।
बस एक ही चीज बची थी फेसबुक। उस पर जन्मदिन की शुभकामनाएं या बधाई लिखने की बजाय कुछ नया करने का विचार आया। लिहाजा, पहले तो यह भूमिका लिखने का मानस बनाया। बहरहाल, जन्मदिन के मौके पर यह चंद पंक्तियां निर्मल को ही समर्पित हैं--।
घर की रौनक तुमसे निर्मल, तुम ही घर की शान,
मेरी खुशी की खातिर तुम, कर देती नींदें कुर्बान।
हर काम से बड़ी है सचमुच, घर की सारी जिम्मेदारी,
तुम मेरे साथ न होती, तो ना मिलती ऐसी पहचान।
जन्मदिन की बहुत सारी बधाई.... शुभकामनाएं......।
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