बस यूं ही
आखिरकार बड़े बेटे योगराज का आज यानि आठ अगस्त को विधिवत रूप से सरकारी स्कूल मतलब केन्द्रीय विद्यालय में दाखिला हो गया। उसका प्रवेश तकनीकी कारणों के चलते अटका हुआ था। छोटे पुत्र एकलव्य का प्रवेश तो पहले ही हो चुका था। अब दोनों भाई साथ-साथ एक ही स्कूल में जाते हैं। खैर, सरकारी स्कूलों की बात पर जोर इसलिए कि क्योंकि हमारा पूरा परिवार ही सरकारी स्कूल से जुड़ा है।
मैं दसवीं तक सरकारी स्कूल में पढ़ा हूं। बाद में अनुदानित स्कूल/ कॉलेजों में शिक्षा ग्रहण की। एेसा करना मजबूरी भी थी क्योंकि जिले में उस वक्त कोई सरकारी कॉलेज नहीं होता था। मेरे से बड़े दोनों भाइयों ने भी कमोबेश मेरी ही तर्ज पर शिक्षा प्राप्त की है। वर्तमान में बड़े भाईसाहब दिल्ली में सरकारी स्कूल में अध्यापक हैं जबकि उनसे छोटे वाले भाईसाहब वायुसेना से सेवानिवृत होने के बाद एसबीआई चौमूं में पदस्थापित हैं। सरकारी स्कूल में पढ़कर सरकारी सेवा जाने का सपना मेरा भी था लेकिन किस्मत पत्रकारिता में ले आई। खैर, दिल्ली वाले भाईसाहब के दोनों बेटे भी सरकारी स्कूलों में पढ़े। बड़े वाले ने अभी बीटेक किया है और छोटे वाला कर रहा है। बड़े वाले भतीजे की तो हुंडई जैसी प्रतिष्ठित कंपनी में साढ़े छह लाख सालाना पैकेज पर नौकरी लग चुकी है। यह सब लिखने का तात्पर्य यह है कि सरकारी स्कूलों में पढ़कर भी मुकाम पाया जा सकता है। लेकिन भेड़चाल एवं स्टेट्स सिंबल के कारण हम बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं।
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