Wednesday, December 28, 2016

पग-पग पर परीक्षा किसलिए

 टिप्पणी

दिवंगत अनुपम धींगड़ा की मां सुदर्शना को इन दिनों बार-बार एक ही सवाल परेशान कर रहा होगा कि आखिर सरकार उनसे चाहती क्या है? उनसे ऐसा क्या गुनाह हो गया जो पग-पर पर धैर्य की परीक्षा ली जा रही है। ऐसी कौनसी भूल हो गई जो अधिकारी उनके सम्मान से खिलवाड़ करने से गुरेज नहीं कर रहे? वो असमंजस में हैं और तय नहीं कर पा रही हैं कि आखिर किस किए की सजा मिल रही है। यकीनन यह बुजुर्ग महिला अपने उस फैसले को लेकर पछता रही होंगी तथा उस घड़ी को कोस रही होंगी, जब पुत्र की याद को चिरस्थायी रखने के लिए जीवनभर की कमाई सहर्ष दान कर दी थी। सरकार ने तब तो स्कूल का नामकरण उनके पुत्र के नाम पर कर दिया, लेकिन अब सरकार को इस नाम से परहेज हो गया लगता है। नियमों की आड़ में सरकारी नुमाइंदे अनुपम के नाम को मिटा देने पर आमादा हैं। ऐसा सालभर पहले भी हुआ। महीनेभर आंदोलन चला। नौबत यहां तक आ गई कि सुदर्शना को अपना सम्मान तक लौटाना पड़ गया। आखिरकार प्रशासन को इस विद्यालय को मर्ज से मुक्त करना पड़ा। अब फिर वो ही कहानी दोहरा दी गई है। यह एक तरह की प्रताडऩा है। शासन-प्रशासन का यह रवैया बड़ा पीड़ादायक है। दानदाताओं को सम्मान के बजाय दर्द देना किसी भी सूरत में न्यायसंगत नहीं हो सकता। अगर इसी तरह दर्द मिलता रहा है तो भला क्यों कोई दानदाता आगे आएगा।
बहरहाल, शहरवासियों की भावना से जुड़े इस मसले ने सभी राजनीति दलों को एक जुट कर दिया है। वे दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सुदर्शना के समर्थन में आ जुटे हैं। कई संगठन तो पिछली बार की तरह इस बार भी साथ हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि नियमों में बदलाव तब हो सकता है तो अब क्यों नहीं? अगर स्कूल मर्ज तब सही था तो क्यों बदला गया? और गलत था तो वही गलती दुबारा क्यों दोहरा गई? यह सवाल अधिकारियों को कठघरे में खड़ा करते हैं। आरोप तो यहां तक लग रहे हैं कि अधिकारियों ने आधी-अधूरी रिपोर्ट पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर भेजी। खैर, स्कूल को अगर मर्ज से मुक्त करना है तो फिर किसका इंतजार किया जा रहा है? और अगर सब कुछ पिछले साल की तर्ज पर ही करना है तो देरी क्यों की जा रही है? शहर की आवाज बने इस मसले में अब ज्यादा देरी ठीक नहीं। जनभावनाओं का आदर करते हुए सरकार को इस दिशा में तत्काल कदम उठाना चाहिए। ऐसा करना न केवल दानदाता का सही अर्थों में सम्मान होगा बल्कि शहर हित में भी होगा।

राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर के 21 जून 16 के अंक में प्रकाशित....

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