कटु सत्य
पिताजी को चक्कर आने के मर्ज ने करीब सात साल से घेर रखा है। इस दौरान उनको सरकारी, निजी अस्पतालों के अलावा प्राइवेट चिकित्सकों को घर पर भी दिखाया, कई तरह की जांच भी करवाई लेकिन आराम नहीं मिला। किसी ने सलाह दी कि इनको बीकानेर से बाहर दिखाओ तो किसी ने कहा कि ईसीएचएस में दिखा लो। पिताजी सेना में रहे हैं, इस कारण उनका ईसीएचएस का कार्ड बना हुआ है। इस कार्ड से पूर्व सैनिक अपना इलाज करवा सकते हैं। वैसे इस कार्ड को बने करीब आठ नौ साल हो गए लेकिन कभी इस्तेमाल नहीं किया। आखिरकार पिछले माह 23 जनवरी को धर्मपत्नी उनको लेकर ईसीएचएस पहुंची। वहां से पिताजी को बीकानेर के ही एमएन अस्पताल रैफर कर दिया गया।
श्रीमती का फोन आ गया था, लिहाजा आफिस की सुबह की बैठक के बाद मैं अस्पताल पहुंच गया। तब तक उनकी जांच की पर्ची बन चुकी थी। कई तरह की जांचें थी। सबसे पहले खून व पेशाब की जांच वाली लेबोरेट्री में घुसे। वहां गहमागहमी थी। नंबर आया। खून व पेशाब की शीशी रखने के बाद वह बोला ढाई बजे के बाद रिपोर्ट मिलेगी। उस वक्त यही कोई पौने बारह बजे होंगे। इसके बाद मैं उनको लेकर ईसीजी वाले कक्ष में गया। वहां पैर, पेट व छाती पर लिक्विड लगाकर ईसीजी उपकरण लगा दिए गए। इसके बाद नर्सिंगकर्मी ने नैपकीन देते हुए कहा अंकल जी इससे साफ कर लो। मैंने नर्सिंगकर्मी से वह नैपकीन लिया और वह लिक्विड साफ किया। सच में बहुत गुस्सा था, उस वक्त। सोच रहा था सरकारी एवं प्राइवेट में अंतर ही क्या है फिर?
खैर, इसके बाद उसने ईईजी की जांच के लिए पिताजी को कुर्सी पर बिठाया। करीब अठारह पिन उसने सिर में चिपका दी। हर पिन लगाने से पहले उसने सिर में लिसलिसा फेविकोलनुमा पदार्थ लगाया। ऊपर से रुई लगा दी। करीब आधे घंटे की जांच की बाद उसने फिर कहा अंकल जी, जाओ वाश वेसिन में सिर धो लो। हालांकि वाश वेसन तक वह साथ गया और नल चलाकर लौट आया। पापाजी ने सिर नल के नीचे किया और मैंने हाथों से वह लिसलिसा पदार्थ बड़ी मुश्किल से धोया। गुस्सा बढ़ चुका था लेकिन मौके की नजाकत देखकर चुप रहा। अब एक्सरे करवाना था। वहां एक महिला नर्सिंगकर्मी एक्सरे कर रही थी। वह उस कमरे में एक्सरे करती जबकि दूसरे में जाकर प्रिंट निकालती। पिताजी की गर्दन के दो एक्सरे हुए। वह दूसरे कमरे में गई लेकिन कपड़े बदल कर तेजी से बाहर निकल गई। मैंने जाते-जाते पूछा मैडम एक्सरे कहां है। तो उसने कहा कि प्रिंट की कमांड दे दी है , दूसरा बंदा आएगा वह एक्सरे दे देगा। मैं मन ही मन बुदबुदाया। आखिरकार करीब तीन घंटे बाद हम डाक्टर के पास पहुंचे। उसने रिपोर्ट को देखा और दवा लिख दी। पिताजी से कुछ नहीं पूछा।
डाक्टर की दवा लिखी पर्ची लिखी मैं दूसरे कक्ष में पहुंचा, जहां पिताजी की फाइल बननी थी। मैं नाम पूछते हुए वहां पहुंचा। एक बुजुर्गवार शख्स को बाहर निकलते देख मैंने कहा मुमताज जी से मिलना है। वह बोले अंदर चलिए आता हूं। मैं बैठा तो बुजुर्ग आए और मेरे हाथ से तमाम जांच रिपोर्ट, एक्सरे लेकर बाहर निकल लिए। थोड़ी देर बाद लौटे तो मूल जांच रिपोर्ट की फोटो कॉपी साथ थी। मूल जांच रिपोर्ट व एक्सरे को उन्होंने फाइल में लगा लिया जबकि जांच रिपोर्ट व डाक्टर की पर्ची की कॉपी मेरे को दे दी। मैं तो इस चक्कर में आया था कि पर्ची देखकर यह दवा देंगे लेकिन खाली पर्ची देखकर मैं ठिठका।
मैंने पूछा दवा कहां है?
फाइल ठीक करते हुए वो बोले, ईसीएचएस में मिलेगी।
मैंने कहा, यह तो बेहद पीड़ादायक बात है। मरीज तो बेचारा फुटबाल बन जाता है।
वो बोले, इसमें पीड़ादायक क्या है? इलाज घर में थोड़े ही होता है।
मैंने कहा, घर पर तो नहीं होता लेकिन फिर सरकारी एवं प्राइवेट में अंतर ही क्या है
बोले, यह कौनसा प्राइवेट है, सरकारी ही तो है, आपके कौनसे पैसे लगे हैं।
मैंने कहा, जी बिलकुल पैसे लगे हैं। आप कैसे कह सकते हैं यह निशुल्क है
बोले, मामूली से तो पैसे कटते हैं।
मैंने कहा, सारे पूर्व सैनिक इलाज भी नहीं लेते।
थोड़ा विषयांतर होते हुए बोले, ईसीएचएस बहुत बढिय़ा स्कीम है।
मैंने कहा, जी में सब जानता हूं, कितनी बढिय़ा है। मैंने नजदीक से देखा है।
इतने सुनते ही वे थोड़ा सा सककपाए, जैसे मैंने उनकी दुखती रग पर हाथ धर दिया हो। बोले, हमारे अस्पताल का सत्तर लाख रूपया अटका पड़ा है। समय पर भुगतान ही नहीं होता है।
मैं मन ही मन बुदबुदाया। नहीं हो रहा है तो क्या मजबूरी है। क्यों ढोए जा रहे हो। तोड़ लो अनुबंध।
इसके बाद मैं पर्ची लेकर घर लौट आया।
... क्रमश:
पिताजी को चक्कर आने के मर्ज ने करीब सात साल से घेर रखा है। इस दौरान उनको सरकारी, निजी अस्पतालों के अलावा प्राइवेट चिकित्सकों को घर पर भी दिखाया, कई तरह की जांच भी करवाई लेकिन आराम नहीं मिला। किसी ने सलाह दी कि इनको बीकानेर से बाहर दिखाओ तो किसी ने कहा कि ईसीएचएस में दिखा लो। पिताजी सेना में रहे हैं, इस कारण उनका ईसीएचएस का कार्ड बना हुआ है। इस कार्ड से पूर्व सैनिक अपना इलाज करवा सकते हैं। वैसे इस कार्ड को बने करीब आठ नौ साल हो गए लेकिन कभी इस्तेमाल नहीं किया। आखिरकार पिछले माह 23 जनवरी को धर्मपत्नी उनको लेकर ईसीएचएस पहुंची। वहां से पिताजी को बीकानेर के ही एमएन अस्पताल रैफर कर दिया गया।
श्रीमती का फोन आ गया था, लिहाजा आफिस की सुबह की बैठक के बाद मैं अस्पताल पहुंच गया। तब तक उनकी जांच की पर्ची बन चुकी थी। कई तरह की जांचें थी। सबसे पहले खून व पेशाब की जांच वाली लेबोरेट्री में घुसे। वहां गहमागहमी थी। नंबर आया। खून व पेशाब की शीशी रखने के बाद वह बोला ढाई बजे के बाद रिपोर्ट मिलेगी। उस वक्त यही कोई पौने बारह बजे होंगे। इसके बाद मैं उनको लेकर ईसीजी वाले कक्ष में गया। वहां पैर, पेट व छाती पर लिक्विड लगाकर ईसीजी उपकरण लगा दिए गए। इसके बाद नर्सिंगकर्मी ने नैपकीन देते हुए कहा अंकल जी इससे साफ कर लो। मैंने नर्सिंगकर्मी से वह नैपकीन लिया और वह लिक्विड साफ किया। सच में बहुत गुस्सा था, उस वक्त। सोच रहा था सरकारी एवं प्राइवेट में अंतर ही क्या है फिर?
खैर, इसके बाद उसने ईईजी की जांच के लिए पिताजी को कुर्सी पर बिठाया। करीब अठारह पिन उसने सिर में चिपका दी। हर पिन लगाने से पहले उसने सिर में लिसलिसा फेविकोलनुमा पदार्थ लगाया। ऊपर से रुई लगा दी। करीब आधे घंटे की जांच की बाद उसने फिर कहा अंकल जी, जाओ वाश वेसिन में सिर धो लो। हालांकि वाश वेसन तक वह साथ गया और नल चलाकर लौट आया। पापाजी ने सिर नल के नीचे किया और मैंने हाथों से वह लिसलिसा पदार्थ बड़ी मुश्किल से धोया। गुस्सा बढ़ चुका था लेकिन मौके की नजाकत देखकर चुप रहा। अब एक्सरे करवाना था। वहां एक महिला नर्सिंगकर्मी एक्सरे कर रही थी। वह उस कमरे में एक्सरे करती जबकि दूसरे में जाकर प्रिंट निकालती। पिताजी की गर्दन के दो एक्सरे हुए। वह दूसरे कमरे में गई लेकिन कपड़े बदल कर तेजी से बाहर निकल गई। मैंने जाते-जाते पूछा मैडम एक्सरे कहां है। तो उसने कहा कि प्रिंट की कमांड दे दी है , दूसरा बंदा आएगा वह एक्सरे दे देगा। मैं मन ही मन बुदबुदाया। आखिरकार करीब तीन घंटे बाद हम डाक्टर के पास पहुंचे। उसने रिपोर्ट को देखा और दवा लिख दी। पिताजी से कुछ नहीं पूछा।
डाक्टर की दवा लिखी पर्ची लिखी मैं दूसरे कक्ष में पहुंचा, जहां पिताजी की फाइल बननी थी। मैं नाम पूछते हुए वहां पहुंचा। एक बुजुर्गवार शख्स को बाहर निकलते देख मैंने कहा मुमताज जी से मिलना है। वह बोले अंदर चलिए आता हूं। मैं बैठा तो बुजुर्ग आए और मेरे हाथ से तमाम जांच रिपोर्ट, एक्सरे लेकर बाहर निकल लिए। थोड़ी देर बाद लौटे तो मूल जांच रिपोर्ट की फोटो कॉपी साथ थी। मूल जांच रिपोर्ट व एक्सरे को उन्होंने फाइल में लगा लिया जबकि जांच रिपोर्ट व डाक्टर की पर्ची की कॉपी मेरे को दे दी। मैं तो इस चक्कर में आया था कि पर्ची देखकर यह दवा देंगे लेकिन खाली पर्ची देखकर मैं ठिठका।
मैंने पूछा दवा कहां है?
फाइल ठीक करते हुए वो बोले, ईसीएचएस में मिलेगी।
मैंने कहा, यह तो बेहद पीड़ादायक बात है। मरीज तो बेचारा फुटबाल बन जाता है।
वो बोले, इसमें पीड़ादायक क्या है? इलाज घर में थोड़े ही होता है।
मैंने कहा, घर पर तो नहीं होता लेकिन फिर सरकारी एवं प्राइवेट में अंतर ही क्या है
बोले, यह कौनसा प्राइवेट है, सरकारी ही तो है, आपके कौनसे पैसे लगे हैं।
मैंने कहा, जी बिलकुल पैसे लगे हैं। आप कैसे कह सकते हैं यह निशुल्क है
बोले, मामूली से तो पैसे कटते हैं।
मैंने कहा, सारे पूर्व सैनिक इलाज भी नहीं लेते।
थोड़ा विषयांतर होते हुए बोले, ईसीएचएस बहुत बढिय़ा स्कीम है।
मैंने कहा, जी में सब जानता हूं, कितनी बढिय़ा है। मैंने नजदीक से देखा है।
इतने सुनते ही वे थोड़ा सा सककपाए, जैसे मैंने उनकी दुखती रग पर हाथ धर दिया हो। बोले, हमारे अस्पताल का सत्तर लाख रूपया अटका पड़ा है। समय पर भुगतान ही नहीं होता है।
मैं मन ही मन बुदबुदाया। नहीं हो रहा है तो क्या मजबूरी है। क्यों ढोए जा रहे हो। तोड़ लो अनुबंध।
इसके बाद मैं पर्ची लेकर घर लौट आया।
... क्रमश:
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