गजल-3
लफ्ज गूंगे हो गए, गहरा गई खामोशियां,
आंखें भी पथरा गई, रह गई बस तन्हाइयां।
महफिलें उनको क्या देंगी राहतें भला,
रास जिनको आने लगी हो वीरानियां।
टूटा दिल, टूटे सपने और हिज्र के आंसू,
होती यही हैं यारो, उल्फत की निशानियां।
दुनिया से आखिर मिलता उसे क्या 'माही',
नसीब में जिसके लिखी हों नाउम्मीदयां।
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