Thursday, June 16, 2011

मेरा गांव....

मातृभूमि से मोह भला किसे नहीं होता। मुझे भी है। मेरे ही गांव के एक शिक्षाविद्‌ हैं श्रीभगवानसिंह झाझड़िया। सीकर कॉलेज में पढ़ाते थे। आजकल सेवानिवृत्त होने के बाद साहित्यिक गतिविधियों से जुड़े हुए हैं। समाचार पत्रों में तो लिखते ही रहते हैं फेसबुक पर भी लगभग मौजूद रहते हैं। गांव के होने के नाते मेरा उनसे परिचय पहले से ही है, लेकिन हाल ही में फेसबुक के माध्यम से उनसे मिलन हो गया। एक दिन मैंने अपने ब्लॉग में बगड़ के बारे में कुछ लिखा था। मेरे आग्रह पर उन्होंने मेरा आलेख पढऩे के बाद कहा कि आपको ऐसा ही कोई लेख गांव के बारे में भी लिखना चाहिए। मैंने मन ही मन उनके आग्रह  को स्वीकार तो कर लिया लेकिन गांव के बारे में लिखना जितना आसान है, उतना ही चुनौतीपूर्ण भी। समझ नहीं आया कि गांव की खासियतों एवं खूबियों को रेखांकित करूं या फिर उन मूलभूत समस्याओं को उजागर करूं जो आजादी के बाद से ही मुंह बाए खड़ी हैं। खैर, प्रयास यही रहेगा कि दोनों बातों का समावेश समान रूप से हो जाए।
दो कस्बों के बीच बसा है केहरपुरा कलां गांव। गांव के पूर्व में सुलताना है तो पश्चिम दिशा में इस्लामपुर। ऐसा समझ लीजिए कि इन दोनों कस्बों को जोड़ने वाली सड़क के बीच में स्थित है मेरा गांव। रोजमर्रा की चीजों की खरीददारी करने के लिए गांव के लोग सुलताना ही ज्यादा जाते हैं, क्योंकि सुलताना का  देहाती बाजार  बड़ी तेजी के साथ उभरा है जबकि इस्लामपुर समय के साथ कदमताल नहीं कर पाया है, जैसा बीस साल पहले था तथा कमोबेश वैसा ही आज है। मेरे गांव का विधानसभा क्षेत्र झुंझुनूं है लेकिन तहसील एवं उपखण्ड मुख्यालय चिड़ावा लगता है।
सैनिकों के मामले में प्रसिद्ध मेरे गांव में कभी यह स्थिति थी कि प्रत्येक घर से एक व्यक्ति सेना में था। मेरा परिवार भी इसका बहुत बड़ा उदाहरण रहा है। मेरे पिताजी और उनक चार बड़े भाई भी सेना में रहे हैं। इतना ही नहीं इन पांचों भाइयों ने 1962, 1965 व 1971 की लड़ाइयां भी लड़ी हैं। मेरे परिवार जैसे गांव में बहुत से परिवार हैं। गांव में आज भी कई पूर्व सैनिक मौजूद हैं। आजादी के बाद शुरुआती दौर में रोजगार का एकमात्र साधन सेना ही था, हालांकि इससे पहले अंग्रेजों की सेना में भी गांव के लोगों ने सेवाएं दी हैं। फिर भी रोजगार का सबसे सशक्त एवं महत्वपूर्ण साधन सेना ही रहा। गांव से बड़ी संख्या में लोग सेना में गए तथा जब-जब देश पर खतरा आया तब सीमा पर मोर्चा संभालने में कोताही नहीं बरती। सेना में जाने का सिललिसा आज भी बदस्तूर जारी है। हां, वर्तमान में गांव में शिक्षा का उजियारा इतना फैल गया है कि अब गांव के युवाओं को कैरियर बनाने के कई विकल्प दिखाई देने लगे हैं। यही कारण है कि अब गांव के युवा बड़ी संख्या में थलसेना के साथ-साथ वायुसेना व जल सेना की ओर भी रुख करने लगे हैं।
गांव के कई लोग सेना में उच्च पदों पर पहुंचे जबकि कई फिलहाल कार्यरत हैं। शिक्षा के मामले में गांव में तीन सरकारी एवं निजी स्कूल हैं लेकिन उच्च शिक्षा के लिए गांव से बाहर निकलना पड़ता है। लड़कों के लिए सरकारी मिडिल स्कूल है जबकि लड़कियों के लिए दसवीं तक है। इतना होने के बावजूद मुझे इस बात पर गर्व है कि मेरे गांव का शिक्षा का स्तर बेहद अच्छा है। बेटियों को लिखाने पढ़ाने का जज्बा गांव में गजब का है। लिंगभेद की देशव्यापी काली छाया से मेरा गांव अछूता है। यहां बेटा-बेटी को समान समझा जाता है। लैंगिक संवेदनशीलता तथा कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ लिखने की प्रेरणा के पीछे काफी हद तक मेरे गांव का माहौल ही रहा है।सेना के बाद मेरे गांव के काफी लोग शिक्षा से जुड़े हुए हैं। बड़ी संख्या में गांव के लोग शिक्षा के माध्यय से राष्ट्र निर्माण की बुनियाद को मजबूत करने में जुटे हुए हैं। सिविल सर्विसेज में भी गांव के लोग सेवा दे रहे हैं। मेरे गांव के एक शख्स तो कलक्टर जैस शीर्षस्थ पद तक पहुंचने में भी सफल रहे हैं।
मेहनत कर बढ़िया मुकाम हासिल करने वाले गांव के सफल व्यक्तियों के पीछे किसी गॉडफादर का हाथ नहीं बल्कि आपसी स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का ही परिणाम है। गांव के युवा एक दूसरे से प्रेरणा लेते हैं और मंजिल की तलाश में जुट जाते हैं।
सेना, शिक्षा तथा सर्विस के बाद बड़ी संख्या में लोग कृषि से भी जुड़े हुए हैं लेकिन गांव का रकबा कम है, इस कारण गांव में खेती फायदे का सौदा नहीं है। बावजूद इसके मजबूरी कहें या जिनको रोजगार नहीं मिला वे कृषि के काम में लगे हुए हैं। कुओं का जलस्तर हर साल नीचे जा रहा है इस कारण हर साल कुओं को गहरा करवाना पड़ता है। इस वजह खेती में जो थोड़ा बहुत मुनाफा होता है वह इस काम में खर्च हो जाता है।
गांव में बिजली मेरे पैदा होने से पहले ही आ गई थी लेकिन उसका ढर्रा आज भी पटरी पर नहीं है। गांव में बिजली कब आए और कब चली जाए कहना मुश्किल है। सबसे बड़ी बात तो है कि मेरे गांव के लोग इस समस्या से रोजाना दो चार होते हैं, आपस में चर्चा करते हैं, लेकिन इस समस्या के निदान के लिए कोई प्रयास नहीं करते। हालत घरेलू एवं कृषि बिजली दोनों की समान है। एक बार छात्र जीवन में कुछ युवा साथियों के साथ हम बिजली की मांगों के लेकर सुलताना के पावरहाउस पहुंचे थे। बदकिस्मती से वहां का माहौल गर्मा गया। मामला पुलिस थाने तक पहुंच गया। बस फिर क्या था। उसके बाद बिजली को लेकर कोई कुछ कहता ही नहीं है।  ग्रामीणों की इसी मजबूरी का फायदा विद्युत निगम के  अधिकारी-कर्मचारी गाहे-बगाहे उठाते रहते हैं। गांव के अधिकतर नौकरीपेशा लोग जब गांव आते हैं तो उनको सर्वाधिक पीड़ा बिजली को लेकर ही होती है। वे अपनी पीड़ा गांव के लोगों को कहते हैं लेकिन उस पर गंभीरता से कोई नहीं सोचता।
मेरे गांव में सबसे बड़ा संकट यह है लोग यहां से पलायन कर रहे हैं। वर्तमान में आधे से ज्यादा गांव खाली हो गया है। रोजगार की तलाश में जो गांव से बाहर निकला, उसने फिर वापस गांव की ओर रुख नहीं किया। उसने गांव की चिंता भी नहीं की। राजनीतिक मोहरे ऐसे लोगों को चुनाव के मौसम में अपने खर्चे पर गांव के दर्शन करवाने का अवसर जरूर उपलब्ध करवा देते हैं, लिहाजा, वे भी उसी का समर्थन कर चले जाते हैं।  मैंने गांव के मौजीज लोगों  को एक जगह बैठ कर गांव के समग्र विकास लिए चर्चा करते हुए नहीं देखा। ग्रामसभाओं में ग्रामीण तो दूर जनप्रतिनिधि ही नहीं आते हैं। उनकी उपस्थिति किस प्रकार दर्शाई जाती है मेरे से बेहतर शायद ही कोई जानता होगा। हां, तो मैं कह रहा है था मेरा गांव खाली हो गया है।
मेरे देखते-देखते ही गांव काफी कुछ बदल गया है। अक्सर आबाद रहने वाले गांव के रास्तों में अब अघोषित कर्फ्यू सा लगा रहता है। गांवों के नुक्कड़ों पर अक्सर दिखाई देने वाले ताशपत्ती एवं चौपड़ के नजारे अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुके हैं। हां, ताशपत्ती का खेल जरूर होता है लेकिन उसमें मनोरंजन व हास-परिहास की भावना गौण हो चुकी है। ताशपत्ती का खेल रफ्ता-रफ्ता जुए में तब्दील हो रहा है। गांव के अधिकतर बेरोजगारों की सुबह और शाम इसी काम में बीत रही है।
व्यक्ति के खुद तक सिमटने की वैश्विक समस्या से मेरा गांव भी अछूता नहीं है।  गांव का गुवाड़  अब अतीत की गवाही देता है। कभी यहां चौपाल लगती थी तथा बड़े बुजुर्ग मिलकर आपस में हालचाल पूछा करते थे। एक दूसरे के दुख-दर्द साझा किए करते थे। लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं है। राजनीति का खेल मेरे गांव में भी खूब चला। यह राजनीति का ही कमाल था कि कभी सामूहिक रूप से मनाई जाने वाली होली आज तीन-चार जगह मनने लगी है। धूलण्डी के दिन प्यार मोहब्बत से एक दूसरे को राम-रमी करने तथा रंग-गुलाल लगाने वाले आज एक-दूसरे के प्रति बांहे चढ़ाए हुए नजर आते हैं। दो धड़ों में बंटे लोगों के बीच जो एक अदृश्य तनाव है, जो कभी भी किसी बड़े हादसे की शक्ल इख्तियार कर सकता है। मैं सोचता हूं गांव की एकमात्र इस साझा विरासत को पुनः बहाल करने के लिए कोई प्रयास क्यों नहीं करता। फिर ख्याल आता है कि किसको मतलब है, सब को अपनी पड़ी है। राजनीतिक मोहरे तो ऐसे ही अवसरों की तलाश में रहते हैं। मुझे मेरे गांव में बहुत सारी खूबियां नजर आती हैं लेकिन एकमात्र यही खामी सब पर भारी पड़ती है। मुझे आज भी होली का वह मनहूस वाकया याद है, जब गांव की साझा संस्कृति को बहुत बड़ा आघात लगा था। होली-दीवाली पर राम रमी के बहाने  एक दूजे के घर जाने तथा हालचाल जानने का प्रचलन भी अब कम हो चला है।
आखिर में एक बात और मेरा गांव आम गांव जैसा नहीं है। यहां प्रत्येक घर आपको पक्का दिखाई देगा। हां, रास्ते जरूर ऊबड़खाबड़ एवं बेतरतीब है। इनमें कीचड़ भरा रहता है। रास्तों की इस प्रकार की दशा के लिए मैं काफी हद तक राजनीति को ही जिम्मेदार ठहराऊंगा। कच्चे मकान तो गांव में ढूंढे भी ना मिलेगा। एक दूसरी बड़ी बात यह है कि मेरे गांव में खेतीबाड़ी या भवन निर्माण के लिए आपको मजदूर नहीं मिलेंगे। इस काम के लिए पड़ोसी कस्बे सुलताना जाना पड़ेगा।
यातायात के पर्याप्त साधन हैं। गांव तक पहुंचने के लिए पक्की डामर की सड़क भी बनी हुई है। नौकरीपेशा लोग होने के कारण गांव के लोगों का आर्थिक स्तर औसत से काफी ऊंचा है। इसी कारण अधिकतर घरों में दुपहिया वाहन मिल जाएंगे। चौपहिया वाहनों की संख्या में भी दिनोदिन इजाफा हो रहा है। गांव का ऐतिहासिक राधा कृष्ण मंदिर कई घटनाओं का साक्षी रहा है। मंदिर में बाबा का धूणा अपने चमत्कारिक महत्त्व के कारण ग्रामीणों की आस्था का प्रमुख केन्द्र बना हुआ है।
बहरहाल, समय के साथ कदमताल करता मेरा गांव आगे बढ़ा जा रहा है लेकिन संस्कार एवं संस्कृति की कीमत पर है। सोचता हूं संस्कार एवं संस्कृति को साथ लेकर गांव के लोग उन्नति करें, आगे बढ़े तो कितना अच्छा होगा। मुझे उम्मीद है वह दिन जरूर आएगा। मेरे जैसे कुछ साथी और हैं जिनके मन में यह पीड़ा है। देर है तो बस साथ बैठने की। एक दिन बैठ गए तो जरूर कुछ ना कुछ सकारात्मक पहल करके उठेंगे। वैसे भी कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती है।

6 comments:

  1. आपके गाँव पर बहुत बढिया जानकारी रही | केहरपुरा से सुलताना कि तरफ जाते है तो आधा किलो मीटर की सडक काफी दिनों से टूटी हुई है | और बारिश में तो घुटनों से ज्यादा पानी भर जाता है |

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  2. आपने सही फरमाया वह आधा किलोमीटर का टुकड़ा बेहद खराब है। उस रास्ते से सडक़ तो गायब ही हो गई है। मैंने भी लेख में गांव के रास्तों का उल्लेख किया है। सड़क न बन पाना भी राजनीति का ही हिस्सा है। वैसे वह रास्ता अब चौड़ा जरूर हो गया है। अभी गांव गया तब देखा था। अब उस रास्ते से दो बसें एक साथ गुजर सकती हैं। इस कारण पानी भरने की दिक्कत भी नहीं रहेगी।

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  3. मुझे लगता है अपने बारे में या अपने से जुडी किसी विषयवस्तु पर लिखना जितना आसान होता है, उतना ही चुनौतिपूर्ण भी होता है वाकई आपने अपने गाँव के बारे में बहुत अच्छा लिखा है. धन्य है आपकी जन्मभूमि आप जैसा कर्मयोगी पाकर !

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  4. Keharpura ke bare mein aapka aalekh padha,achha laga.Shayad hi kisi vykti ne internet par ya akhbar men is tarah gaon ke bare mein likha hoga.Kuchh varshon pahle Rajasthan patrika mein gaon ke bare mein Bishan singh shekhawat ya pradeep Shekhawat ne likha tha,par vah dusari tarah ka lekh tha.you have the talent for writing.write about people, culture tradition,castes & way of living,the village then and now.every village has something to write about.Even every person has to write the material for an autobiography.The seed is always small.It can grow into a tree by watering, nourishing and taking care.As you studied at Bagar in school and college I studied at Madrella in tenth class.go on writin.some day a book may be ready.i shall also try to write but i should decide wheather i should write in english or hindi.one difficulty is that i cant type in hindi.wish you best of luck.

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  5. Bhout hi acha likha.... bilkul aasan se sbdo me sari khani keh di....muje or pedhna h gaovno k bare me...plz tell me other tooles...

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  6. Or bahut kuchh Lekhanaa chahiya thaa .Bhagwan singhji se bhi nivedan ha ki ve bhi lekhye...English me lekhe phir type hindi me karwa Ley. Pathak jayda hindi ke ha so hindi me thik hoga. youth ke liye lekhye Bujargon ke liye lekhye..gaon ki basaawat ke kahani bhi likhi ja sakti..ak bar soch kar too dekhey ...KARMVIRKATEWA ,KANWARPURA

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