Wednesday, May 30, 2012

...प्रशासन की छूट है!


टिप्पणी

पिछले सप्ताह गुरुवार की ही तो बात है, जब राज्य में सतारूढ़ पार्टी भाजपा के पदाधिकारी टीपी नगर चौक पर पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि के खिलाफ धरने पर बैठे थे। धरनास्थल पर हुई सभा में वक्ताओं ने पेट्रोल मूल्य में वृद्धि के लिए केन्द्र पर न जाने कितने ही शब्दों के तीर चलाए। विरोध का सिलसिला दूसरे दिन, शुक्रवार को भी चला, जब भाजपा के अनुषांगिक संगठन भाजयुमो के पदाधिकारियों ने पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि के खिलाफ अपनी गाड़ियों की चाबी कांग्रेस पदाधिकारियों को सौंप दी। इसी दिन ऑटो चालकों ने भी रैली निकालकर न केवल पेट्रोल मूल्यवृद्धि का विरोध किया, बल्कि चुपके से नई किराया सूची की घोषणा भी कर दी। इसके बाद शहरवासियों से बढ़ा हुआ किराया वसूला जा रहा है लेकिन कहीं कोई विरोध नहीं है। पेट्रोल के भाव बढ़ने पर आक्रोशित दिखाई देने वाले भाजपा पदाधिकारियों का ऑटो किराये में वृद्धि को लेकर एक बयान तक नहीं आया है। ऐसा लगता है कि भाजपा का विरोध केवल दिखावे का ही था। भाजपा की नजरों में पेट्रोल के भावों में बढ़ोतरी आम आदमी से जुड़ा मसला है लेकिन, बढ़े हुए ऑटो किराये से उसे कोई मतलब नहीं है। कोई बोलना ही नहीं चाहता। इससे साफ जाहिर है कि पेट्रोल मूल्यवृद्धि का विरोध सस्ती लोकप्रियता ही थी लेकिन, नए ऑटो किराये का विरोध करने से वोट बैंक खिसकने का खतरा है, लिहाजा मौन धारण करना ही उचित समझा जा रहा है। विपक्षी दल कांग्रेस के  नेताओं के भी इस मामले में हाल कमोबेश भाजपा जैसे ही हैं। उन्होंने भी इस मामले में चुप्पी साध रखी है। वैसे भी छत्तीसगढ़ में पक्ष-विपक्ष में आपसी सूझबूझ बेहद गजब की है। आपस में एक दूसरे का विरोध करना तो दोनों दलों के नेताओं की फितरत में है ही नहीं।
खैर, किराया वृद्धि के इस मसले में राजनीतिक पार्टियों की खामोशी तो आश्चर्यजनक है ही, प्रशासन का रवैया भी कम हास्यास्पद नहीं है। ऑटो किराये को लेकर जिला परिवहन अधिकारी के बयान को देखें तो ऐसा लगता है कि जैसे कि वे हर काम शिकायत मिलने के बाद ही करते हैं। चार दिन से शहरवासियों की ऑटो चालकों के साथ किराये को लेकर नोकझोंक हो रही है लेकिन, परिवहन विभाग को शिकायत का इंतजार है। ऐसे में यह सवाल मौजूं है कि विभाग किसके लिए काम कर रहा है।
बहरहाल, प्रशासन को इस मामले में पहल करनी चाहिए। भले ही ऑटो चालक पेट्रोल के भावों में बढ़ोत्तरी के साथ ऑटो पाट्‌र्स की कीमतों में उछाल को किराया वृद्धि का कारण बताएं लेकिन, प्रशासन को इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए। इस बात की तहकीकात भी जरूरी है कि किराये में की गई बढ़ोत्तरी जायज है या नाजायज। गंभीर बात तो यह है प्रशासन को विश्वास में लिए बिना किराया बढ़ाना कहां तक उचित है। पेट्रोल के भाव समूचे राज्य में बढ़े हैं लेकिन, मूल्य वृद्धि सिर्फ कोरबा में ही क्यों? यह सरासर नाइंसाफी नहीं है तो क्या है? प्रशासन को चाहिए कि वह ऑटो चालकों के साथ बैठकर ऐसी किराया सूची तय करे, जिसमें दोनों पक्षों का ही अहित ना हो। जिस अनुपात में पेट्रोल के भाव बढ़े हैं, उस अनुपात में किराया बढ़ाना तो समझ में आता है लेकिन, उससे ज्यादा किराया लेना तो सरासर लूट की श्रेणी में आता है।

साभार : पत्रिका कोरबा के 30 मई 12 के अंक में प्रकाशित।