Friday, October 7, 2011

'रावण' बोला- मैं जिंदा हूं...


टिप्पणी
बोलने वाले रावण के पुतले को अग्नि के हवाले करने के बाद गर्वित मन से शहरवासी जैसे ही घरों की ओर मुडे़, तभी जोरदार धमाका हुआ। अचानक आसमान में कौंधी तेज रोशनी से वहां मौजूद लोगों की आंखें चुंधियां गई। इसके बाद का नजारा देखकर तो लोगों की आंखें फटी की फटी रह गई। जलते पुतले से एक विशालकाय आकृति निकली और देखते ही देखते आसमान में जोरदार अट्‌टाहास गूंजने लगा। यह सब देख शहरवासियों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। वे एकदम डरे, सहमे उस आकृति को अपलक निहारने लगे। रफ्ता-रफ्ता आकृति आकार लेने लगी और पुनः पुतले में तब्दील हो गई। पुतले का अट्‌टाहास जारी था, लिहाजा, वहां जमा सभी लोग जड़वत हो गए। अचानक पुतले ने बोलना शुरू गया। वह बोला 'बिलासपुरवालो, मुझे पहचानो। मैं रावण हूं, रावण। वही रावण, जिसके पुतले का आप लोगों ने अभी-अभी दहन किया है। ऐसा आप लोग हर साल करते हो। फिर भी मैं हर बार नए रूप में आता हूं और भी बड़ा होकर। मैं तो आप लोगों का इस बात के लिए शुक्रिया अदा करने आया हूं कि आज आपने मेरे साथ भ्रष्टाचार रूपी पुतले का भी दहन किया है।'
लम्बी सांस छोड़ते हुए पुतला हंसने लगा। हंसते-हंसते ही उसने सवाल दागा, 'भ्रष्टाचार का पुतला जलाने से क्या भ्रष्टाचार खत्म हो गया? आप ही बताओ, आज भ्रष्टाचार कहां नहीं है। आपका शहर तो भ्रष्टाचार के दलदल में बुरी तरह फंसा हुआ है। हर जगह भ्रष्टाचार का बोलबाला है। कदम-कदम पर भ्रष्टाचार है। शासन-प्रशासन के लिए तो भ्रष्टाचार अब शिष्टाचार बन चुका है। हालात यह हो गए हैं कि आचार, विचार, संस्कार आदि भी भ्रष्टाचार से अछूते नहीं रहे। गली, घर, समाज, प्रदेश व देश सभी जगह भ्रष्टाचार की घुसपैठ है।'
गंभीर मुद्रा बनाते हुए पुतला फिर बोला 'बिलासपुर वालो। हजारों हजार वर्ष पूर्व मर कर भी मैं आज तक नहीं मरा हूं। भ्रष्टाचार मेरा ही स्वरूप है। यह मेरा छोटा भाई ही तो है। मैं त्रेतायुग में पैदा हुआ और यह कलयुग में। वैसे भी इस भ्रष्टाचार रूपी रावण को पैदा करने तथा पनपाने में आप सब का ही योगदान है और इसके लिए जिम्मेदार भी आप लोग ही हैं। आप लोगों ने भ्रष्टाचार को इतना प्यार एवं स्नेह दिया कि इसका कद मेरे से भी बड़ा हो गया। आपने भ्रष्टाचार रूपी पुतले का दहन करके एक नई बहस को जन्म दे दिया है।'
यकायक पुतला आवेश में आ गया। वह गुस्से में जोर से गरजा, 'कलयुग के इस रावण को मारने के लिए अब कोई विभीषण भी नहीं आएगा। वह बेचारा हिम्मत जुटाकर कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने का प्रयास करता भी है तो आप लोग ही उसे पागल कह कर शांत कर देते हो। मेरी जमात मेरे अनुयायी तो साल दर साल बढ़ रहे हैं लेकिन विभीषण जैसे लोग तो अपने वजूद के लिए जूझ रहे हैं, संघर्ष कर रहे हैं।' पुतले के ठहाके लगातार गूंज रहे थे। वह कहने लगा 'भ्रष्टाचार का रावण अब नहीं मरेगा। वह जिंदा रहेगा। उसके जिंदा होने से मुझे भी संबल मिला है। मैं जिंदा हूं, मैं जिंदा हूं....मेरा नए रूप में पुनर्जीवन हो गया।' इतना कहकर पुतला आसमान में लीन हो गया।
 शहरवासी इस समूचे घटनाक्रम से हतप्रभ थे। उनके जेहन में कई सवाल उमड़ने लगे तो कानों में पुतले के डायलॉग ही गूंज रहे थे। वे सोचने लगे, सचमुच भ्रष्टाचार ही तो कलयुग का रावण है। आज का सबसे बड़ा रावण। सबसे खतरनाक रावण। बिलासपुर एवं देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती और सबसे बड़ा संकट। परेशान सब हैं, लेकिन विभीषण या राम बनने को कोई तैयार नहीं।


साभार : बिलासपुर पत्रिका के  07 अक्टूबर 11 के अंक में प्रकाशित।