Saturday, August 18, 2012

सरासर जान से खिलवाड़

प्रसंगवश

 एक चर्चित जुमला है, रोम जब जल रहा था तब नीरो बांसुरी बजा रहा था। कुछ ऐसा ही हाल राज्य सरकार एवं उनके नुमाइंदों का है। इन दिनों दुर्ग-भिलाई में सरकारी भवनों से प्लास्टर उखड़ने की खबरें लगातार आ रही हैं। वैसे भी बारिश के मौसम में सीलन आने से इस प्रकार के मामलों में यकायक इजाफा हो ही जाता है। प्लास्टर उखड़ने से प्रभावित लोग अपने बचाव के लिए जहां बन रहा है गुहार लगा रहे हैं लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। सरकार एवं उसके नुमाइंदे तो कुंभकर्णी नींद में ऐसे गाफिल हैं कि उनके कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही हैं। यह तो गनीमत है कि प्लास्टर उखड़ने से जानमाल की कोई बड़ी हानि नहीं हुई। देखा जाए तो दुर्ग के जिला अस्पताल परिसर स्थित टीबी अस्पताल की छत्त का प्लास्टर उखड़ना ही अपने आप में बेहद गंभीर बात है। अस्पताल एक ऐसी जगह होती हैं, जहां लोग स्वस्थ होने की उम्मीद के साथ आते हैं, लेकिन यहीं पर भी हादसों से वास्ता पड़े तो फिर यह सरासर जान से खिलवाड़ ही है। बात अकेले अस्पताल की ही नहीं है, बल्कि दुर्ग में अधिकतर सरकारी कार्यालय एवं आवास बेहद पुराने एवं जर्जर हैं और इनसे अक्सर प्लास्टर उखड़ता रहता है। ऐसी विषम परिस्थितियों के बावजूद अधिकारी-कर्मचारी एवं उनके परिजन जान जोखिम में डालकर इन आवासों में रहने को मजबूर हैं। 
पिछले दिनों पुलिस लाइन में भी इसी तरह प्लास्टर उखड़कर गिरने से एक महिला घायल हो गई थी। समस्या से प्रभावित महिलाएं जब अपना दुखड़ा सुनाने स्थानीय सांसद के पास गई तो उन्होंने अनर्गल बयान देकर जले पर नमक छिड़कने जैसा काम किया। जन से इस तरह रुखा व्यवहार करने के बाद भी खुद को जनप्रतिनिधि कहलवाना निसंदेह शर्मनाक एवं गंभीर बात है। जनप्रतिनिधि से उम्मीद की जाती है कि भले ही वह समस्या का निराकरण ना कर/करा पाए, कम से कम दिलासा तो दे। ज्यादा नहीं तो वह उम्मीद भरा आश्वासन तो दे ही सकता है, लेकिन सत्तारूढ़ दल एवं उसके नुमाइंदों से ऐसी उम्मीद करना भी बेमानी है।  
बहरहाल, पुलिस ऐसा विभाग है जिसके कंधों पर प्रदेश की कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी हैं। परिजनों पर मंडरा रही मौत की आशंका में पुलिसकर्मी अपने काम को कितनी ईमानदारी से कर पाएंगे, सोचा जा सकता है। कहा गया है कि जान है तो जहान है, लेकिन जब खतरा जान पर ही हो तो फिर सारे काम गौण हो जाते हैं। राज्य सरकार को भावी हादसे की दस्तक को तत्काल प्रभाव से समझते हुए आवश्यक कदम उठाना चाहिए। देखना यह है कि राज्य सरकार इस मामले में पहल अपने विवेक से करती है या किसी हादसे के बाद। और अगर जानमाल की हानि के बाद ही यह सब होना है तो सरकार एवं उसके नुमाइंदों को सद्‌बुद्धि देने के लिए भगवान से प्रार्थना के अलावा और कुछ किया भी नहीं जा सकता है।

साभार : पत्रिका छत्तीसगढ़ के  18 अगस्त 12  के अंक में प्रकाशित।