Tuesday, August 14, 2012

यह पानी निकलवा दीजिए


 टिप्पणी

माननीय, अनिल टुटेजा जी
आयुक्त नगर निगम, भिलाई।
आपको भिलाई नगर निगम की जिम्मेदारी संभाले हुए सप्ताह भर से अधिक समय हो गया है। इस अवधि में आपके काम करने का अंदाज देखकर लगा कि वाकई आपमें कुछ करने का जज्बा है। वैसे भिलाई निगम के लिए आप नए हो सकते हैं लेकिन आप छत्तीसगढ़ के ही जन्मे जाए हैं, लिहाजा यहां की जानकारी तो आ
पको पहले से है। विशेष रूप से भिलाई को तो आप भली-भांति जानते ही हैं। जानने की वजहें भी हैं। कौन होगा जो भिलाई को नहीं जानता। इस्पातनगरी एवं शिक्षा नगरी, यही तो दो नाम हैं, जो भिलाई का प्रतिनिधित्व करते हैं। बड़े गर्व की अनुभूति होती है भिलाई के लिए यह दोनों विश्लेषण सुनकर, लेकिन अफसोस की बात यह है कि इन विशेषताओं के साथ कई कड़वी हकीकतें भी जुडी हैं भिलाई के साथ। बुनियादी सुविधाओं के अभाव से लेकर प्रदूषण तक की कड़वी हकीकतें। खैर, रफ्ता-रफ्ता आप इन हकीकतों से वाबस्ता हो जाएंगे। आप संवदेनशील हैं तथा जनता के दर्द को भी समझते हैं। तभी तो पदभार ग्रहण करने के साथ ही आपने अधिकारियों-कर्मचारियों को निर्धारित समय पर कार्यालय आने की कड़ी नसीहत दे डाली। इतना ही नहीं लगे हाथ आपने शहर की टूटी सड़कों का जायजा भी ले लिया। चाहते तो आप मातहत को मौके पर भेजकर सड़कों की रिपोर्ट मंगवा सकते थे लेकिन आपने खुद मौका देखना उचित समझा। एक अधिकारी में ऐसा गुण होना भी चाहिए। वातानुकूलित कक्षों में बैठकर रिपोर्ट पर भरोसा करने वाले अधिकारियों का हश्र बाद में कैसा होता है, यह आप बखूबी जानते हैं। ऐसे अधिकारी कमोबेश हर जगह मिल जाएंगे। भिलाई में भी कमी नहीं है। आपके निगम में भी मिल जाएंगे।
कुछ ऐसे ही अधिकारियों की बदौलत तो भिलाई में मौर्या टाकीज के पास एक अंडरब्रिज बनकर तैयार हो गया। बनाने वालों ने यहां नियमों को अनदेखा किया ही, बनने के बाद भी उसकी किसी ने शायद ही सुध ली होगी। फिलवक्त महीने भर से चल रही बारिश के कारण यह अंडरब्रिज पानी से लबालब है। यहां भरे पानी को निकालने के किए जा रहे प्रयास नाकाफी हैं। अंडरब्रिज बंद होने के कारण पावर हाउस एवं सुपेला के रेलवे क्रासिंग पर यातायात का दवाब यकायक बढ़ गया है। जल्दी निकलने के चक्कर में वाहन चालक जान को दाव पर लगाने से भी नहीं हिचक रहे हैं। आप समझ सकते हैं, ऐसा वे जानबूझकर तो नहीं करते। परेशान लोगों के हालात व मजबूरी पर आपके मातहतों को कतई तरस नहीं आता है। आप ही सोचिए, आपके मातहत संवेदनशील होते तो क्या एक माह तक रास्ता इस तरह बाधित रहता?।
यकीन मानिए यह शहर अपनी विशेषताओं के कारण जितना प्रसिद्ध है, उनसे उतना ही परेशान एवं हलकान भी है। करने को भिलाई में बहुत काम है। समस्याओं की लम्बी फेहरिस्त है। बस एक बार नब्ज देखने और मर्ज जानने की जरूरत है। फिलहाल तो आप एक बार मौका देखकर किसी तरह पानी निकासी का प्रबंध करवा दीजिए। अगर इस पानी भराव का कोई स्थायी हल भी हो जाए तो सोने में सुहागा होगा। प्रभावितों के लिए यह बड़ा काम है लेकिन आप जैसे सक्षम अधिकारी के लिए कुछ भी असंभव नहीं। आप ऐसा करवा देंगे तो यकीनन प्रभावित लोग इस काम के लिए आपके ऋणी तो रहेंगे ही दिल से दुआ भी देंगे।
 
साभार -पत्रिका भिलाई के 14 अगस्त 12  में  प्रकाशित।

चुपचाप कट गया मैं...


पेड़ का दर्द

मेरी दशा देखकर आप समझ गए होंगे कि मेरा दर्द क्या है। सोमवार दोपहर को मैं मरते-मरते बचा हूं। वो तो भला हो एक दो जागरूक लोगों का, जिनकी बदौलत मेरा अस्तित्व रह गया। वरना मेरी हत्या तो लगभ तय थी। बेरहमों ने समय भी बड़ा मुफीद चुना। मैं बहुत चीखा, चिल्लाया भी, लेकिन कोई नहीं था, उस वक्त। वो तो मेरी किस्मत अच्छी थी कि एक-दो पर्यावरण प्रेमी संयोग से वहां पहुंच गए और मैं बच गया। पता नहीं क्यों कोई यकायक मेरे खून का प्यासा हो गया। क्या बिगाड़ा था मैंने किसी का। मैं तो आसपास के लोगों को सुकून भरी छाया ही उपलब्ध कराता रहा हूं। सैकड़ों परिंदे मेरी शाखाओं पर बेखौफ होकर शिद्दत के साथ रात गुजारते रहे हैं।
अफसोस उन परिन्दों का आशियाना उजड़ गया। कहां रात गुजारेंगे वो। एकदम ठूंठ बन गया हूं मैं। हालात यह हो गई मैं अभी किसी को छाया तक भी नहीं दे सकता। काफी वक्त लगेगा मेरे जख्म भरने में। हुड़को में श्रीराम चौक के मैदान के पास मुझे बड़े आदरभाव व विधि विधान के साथ लगाया था। बरगद का पेड़ होने तथा सबका चहेता होने के बाद भी पता नहीं क्यों मैं किसी को अखर गया। खैर, यह आप लोगों के स्नेह एवं दुआओं का ही कमाल था कि मैं बच गया। फिर भी आपको आगाह करता हूं कि मेरे से दुश्मनी निकालने वाले को आप सजा जरूर दिलवाएं ताकि वह भविष्य में इस प्रकार की हिमाकत ही ना करे। अगर आज आप लोगों ने हिम्मत करके यह पुनीत कार्य कर दिया तो यकीन मानिए आप पर्यावरण प्रेम की नई इबारत लिख देंगे।

साभार -पत्रिका भिलाई के 14 अगस्त 12 में  प्रकाशित।