Saturday, June 11, 2011

जूता दिखाने का चलन

इन दिनों जूता फेंकने, उछालने व दिखाने का चलन इतना आसान हो चला है कि हींग लगे न फिटकरी रंग चोखो आ जाए... वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है। जूतों से संबंधित हालिया घटनाओं पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे  कि इस कृत्य को अंजाम देने वाले पलक झपकते ही समूची दुनिया में चर्चित हो गए। वैसे भी सारा खेल नाम का ही है। किसी ने कहा भी है कि बदनाम नहीं होंगे तो क्या नाम नहीं होगा। अभिताभ ने तो गाया भी है ... जो है नाम वाला, वही तो बदनाम है... खैर, नाम कमाने के लिए लोगों की जिंदगी गुजर जाती है बावजूद इसके वे अपनी पहचान नहीं बना पाते, लेकिन जूता फेंकने, उछालने या दिखाने वालों ने महज एक-दो मिनट में ही अपना नाम इतिहास में दर्ज करा लिया। यह अलग बात है कि इतिहास का अवलोकन करने वाले इन जूता प्रेमियों को किस संदर्भ में लेते हैं। जिसकी जैसी मानसिकता होगी, वह उसको उसी नजरिए से देखेगा।
हाल ही में सीकर जिले के धोद विधानसभा क्षेत्र के युवक ने एक राजनीतिज्ञ को जूता दिखाया। जूता दिखाने के बाद पक्ष-विपक्ष दोनों दलों के बयान आए। कोई इसे आम आदमी की आवाज बता रहा था तो कोई विपक्ष की चाल। लेकिन जूता दिखाने वाले ने जो सवाल पूछा था, उसमें उसका झुकाव किसी दल की तरफ नहीं था। होता भी कैसे उसके विधानसभा क्षेत्र में लम्बे समय से वामदल का प्रत्याशी जीतता आया है। आरोप-प्रत्यारोप के खेल में फंसे दोनों ही दलों की वहां दाल नहीं गलती है। इतना ही नहीं जूता दिखाने वाला वहां पत्रकार की भूमिका में पहुंचा था। पत्रकारों को भी वाम विचारधारा के नजदीक माना जाता है।
इस पूरे घटनाक्रम से मैंने तो यह सोचा है कि किसी को  अगर जूता मारना होता है तो वह फेंक कर ही मार देता है उसे सीकर के युवक की तरह हाथ में लेकर खड़े होने की जरूरत क्या है। इससे साफ जाहिर होता है कि सीकर जिले के युवक  का मकसद जूता मारना या उछालना नहीं बल्कि दिखाना था। शेखावाटी में  इसी तरह जूता दिखाने का प्रचलन खूब है। शायद उसी से प्रेरित होकर उसने इस काम को अंजाम दिया। वैसे भी शेखावाटी के लोग मारने में कम डराकर काम निकलवाने में ज्यादा विश्वास रखते हैं। मसलन बच्चा शैतानी कर रहा होता है तो अभिभावक उसे थप्पड़ दिखाते हुए कहेंगे, देखा है ना, यह थप्पड़ एक पड़ेगा तो अक्ल ठिकाने आ जाएगी। बस थप्पड़ का डर असर कर जाता है और बच्चा शैतानी करना बंद कर देता है। इसी प्रकार मोहल्ले में या रास्ते में किसी को कुछ गड़बड़ करते देखकर बड़े बुजुर्ग इसे सजा के नाम पर डांटते हैं। वो कुछ ऐसे ही कहते हैं, बेटा, चुपचाप लाइन पर आ जा वरना यह जूता देखा है ना.. या यह लट्‌ठ देखा है ना....। मतलब आप समझ गए हैं कि शेखावाटी का आदमी किसी को मारेगा नहीं, बल्कि डराएगा।