Tuesday, September 11, 2012

हाजिर जवाब हरियाणवी

बस यूं ही

हरियाणवी बोली का अंदाज ही ऐसा है कि इसको सुनने वाले की हंसी बरबस छूट ही जाती है। यही इस बोली की खासियत भी है। इसका लहजा ही ऐसा है कि इसके एक-एक शब्द में हास्य दिखाई देता है। यकीन नहीं है तो हिन्दी भाषा का कोई भी वाक्य या डॉयलोग हरियाणवी में सुनकर देख लीजिए। एक अलग ही तरह के आनंद की अनुभूति होती है, इसको सुनने में। अपने सहज एवं सरल स्वभाव के चलते हरियाणा के लोग अपनी बात बिना कोई भूमिका बांधे बिलकुल सीधे-सपाट शब्दों में कह देते हैं। कई लोगों को इस प्रकार की बातचीत बेहद अखरती है लेकिन हकीकत में देखा जाए तो ऐसा है नहीं। नागौर एवं जोधपुर के कई साथी एवं परिचित तो हमारे जिले झुंझुनूं को हरियाणा ही बोलते हैं। उनकी बातों में कुछ सच्चाई भी है कि क्योंकि झुंझुनूं जिला हरियाणा की सीमा से न केवल सटा है बल्कि दोनों के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता भी है। झुंझुनूं की काफी रिश्तेदारियां हैं हरियाणा में। हर दूसरे या तीसरे घर में हरियाणा का रिश्ता मिल जाएगा। विशेषकर झुंझुनूं जिला मुख्यालय से पूर्व में स्थित इलाके में तो हरियाणवी संस्कृति के साक्षात दर्शन ही होते हैं। तभी तो बसों एवं घरों में जिस अंदाज में राजस्थानी गीत गूंजते हैं, उससे कहीं ज्यादा हरियाणवी गीत बड़ी शिद्‌दत के साथ सुने जाते हैं। हट ज्या ताऊ पाछै न...जैसे गीत ने तो लोकप्रियता का एक अलग ही इतिहास ही गढ़ दिया।
कोई राजस्थान का वाशिंदा होकर हरियाणवी का इतना पक्षधर होकर हो सकता है, इस बात पर भले ही कोई आश्चर्य करें लेकिन बता दूं कि भाषा किसी की बपौती नहीं होती है। भाषा उसी की है जो बिलकुल मस्त होकर स्वाभाविक रूप से बोलकर उसका आनंद उठाता है। मुझे हरियाणवी सुनने और बोलने में एक अलग तरह का सुकून मिलता है। विशेषकर हरियाणवी चुटकुले तो मैं अक्सर अपने दोस्तों के साथ शेयर करता रहता हूं। यकीन मानिए अगर मैं हरियाणवी बोलने लगूं तो हरियाणा के लोग ही मुझे राजस्थानी कहने से इनकार कर देंगे। खैर, हरियाणवी का पक्षधर होने की सबसे बड़ी वजह तो यही है कि मेरा ननिहाल हरियाणा में है। ननिहाल भी कोई ऐसा-वैसा गांव नहीं बल्कि बेहद चर्चित गांव है। हाल ही में भारतीय सेना के सर्वोच्च पद से रिटायर हुए जनरल वीके सिंह का गांव बापौड़ा ही मेरा ननिहाल है। जी हां बिलकुल सही पहचाना आपने भिवानी से तोशाम जाने वाली सड़क पर पहला स्टैण्ड है बापौड़ा। अब तो बापौड़ा एवं भिवानी की सीमाएं एकमेक हो गई हैं पता नहीं चलता है दोनों का। बचपन में गर्मियों की छुटि्‌टयां अक्सर ननिहाल में गुजरती थी। बैलगाड़ी में बैठकर जोहड़ तक जाना। जोहड़ के पानी में नहाना, अठखेलियां करना। ननिहाल के हम उम्र साथियों के साथ खेलना तथा खूब मस्ती करना कल की सी बातें ही तो लगती हैं। खैर, बचपन के बाद मेरे से बड़े दोनों भाइयों का रिश्ता भी हरियाणा में ही हुआ। एक का भिवानी-चरखीदादरी रोड पर स्थित हालुवास गांव में तो दूसरे का महेन्द्रगढ़-नारनौल मार्ग पर स्थित खुडाना गांव में। रिश्तेदारियों में भी खूब आना जाना होता रहा है। कहने का सार यही है कि मुझे हरियाणवी संस्कार बचपन से मिले हैं। न मैं हरियाणा के लिए अनजाना हूं और ना ही हरियाणा मेरे लिए। 
हास्य की बात इसलिए याद आ गई कि मंगलवार सुबह बड़ी भाभीजी से फोन पर बात हो रही थी। बड़े भाईसाहब दिल्ली सपरिवार रहते हैं। भाभीजी काफी समय से घुटनों के दर्द से परेशान थी, लिहाजा भिवानी आ गई। वहां उनका इलाज चल रहा है। वे मायके में ही ठहरी हुई हैं। बातों-बातों में मैंने उनको उलाहना दे दिया कि आपके मायके के लोग कभी बात ही नहीं करते हैं। मेरी बात सुनकर भाभीजी ने तत्काल फोन अपने पिताजी को दे दिया। भाभीजी के पिताजी सीनियर स्कूल में हैडमास्टर थे। अब रिटायर हो चुके हैं। आसपास के गांवों उनकी अच्छी जान-पहचान है। उनकी हर बात में हास्य है। उन्होंने हालचाल पूछे तो मैंने कहा कि आप तो भूल ही गए। मेरा इतना ही कहते ही उन्होंने पलटवार किया.. बोले आप कौनसा याद करते हो। आज आपकी भाभी यहां है तो याद कर लिया वरना आप कब फोन करते हो। फोन नम्बर भी नहीं है आपके। उनका जवाब सुनकर मैंने कहा कि फोन नम्बर लेना कोई मुश्किल काम तो नहीं है। आप कहीं से भी मेरे नम्बर लेकर फोन कर सकते थे। मेरा इतना कहते वे बोले नम्बर क्या रेलवे स्टेशन पर मिलते हैं। उनकी हाजिर जवाबी से मैं निरुत्तर हो गया और मन की मन मुस्कुराने लगा। फोन पर मेरा जवाब ना पाकर उन्होंने फोन भाभीजी को दे दिया। मेरी हंसी अब रफ्तार पकड़ चुकी थी। भाभीजी को फोन पर ठीक है फिर..., कह कर मैं इतना हंसा कि पेट में बल पड़ने लग गए। सही तो कहा उन्होंने फोन नम्बर क्या रेलवे स्टेशन पर मिलते हैं। वैसे पता उनको भी था ऐसा हकीकत में नहीं होता है लेकिन जैसा कि मैंने बताया कि हरियाणा में हास्य बात-बात में है और हाजिरजवाबी भी। और वैसे भी तनाव एवं भागदौड़ भरी जिंदगी में किसी को बातों ही बातों में हंसा देना किसी कला से कम नहीं है। मैं कायल हूं इस कला का।

4 comments:

  1. सचमुच ,हरियाणवी भाषा का एक अपना ही लुत्फ़ है ..

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    1. ब्लॉग पर आने एवं टिप्पणी के लिए शुक्रिया रितू जी। बिलकुल सही कहा आपने। हरियाणवी भाषा का अलग अंदाज एवं अलग ही लुत्फ है।

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  2. ke baat hui ya........hansan ka to kuch tha ye nhin...........dandre padne hon to alag baat sai......he ..he..he.........sorry

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  3. डा. साहब शुक्रिया। ब्लॉग पर आने तथा टिप्पणी करने के लिए। वैसे मैं समझा नहीं आप क्या कहना चाहते हैं ।

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