Thursday, March 28, 2013

बिल, बयान और बवाल-4


बस यूं ही

आंखों पर लिखे गए फिल्मी गीत और एंटी रेप बिल को लेकर यह चौथी किश्त है, लेकिन आंखों से संबंधित गानों की फेहरिस्त छोटा होने का नाम ही नहीं ले रही है। घूरने और ताकने के समर्थन एवं विरोध करने वालों के पास अपने-अपने तर्क हैं लेकिन मेरा मानना है कि कई बार नजर अनायास भी मिल जाती है। यकीन मानिए ऐसा कभी आप के साथ भी हुआ होगा। आप देखना कुछ और चाहते हैं लेकिन नजर यकायक कहीं और चली जाती है। यह अलग बात है कि ऐसा होने के बाद चौंकना या झेंपना लाजिमी है। फिर भी गीतकारों ने इस तरह के वाकये को भी कलमबद्ध कर दिया है। 'बेइरादा नजर मिल गई तो, मुझसे दिल वो मेरा मांग बैठे...।' गीत कुछ ऐसा ही है। अब किसी के साथ ऐसा हो जाए और कोई मांग पूरी नहीं करे तो फिर मौजूदा माहौल में हश्र क्या होगा समझा जा सकता है। हां, इस गीत से इतना तो तय है कि नजर इरादतन और बेइरादतन भी मिलाई जाती है। खैर, आंखों और गीतों का एपीसोड लम्बा हो रहा है, लेकिन लम्बे समय से गीतों का तलबगार रहा हूं और अब भी हूं, लिहाजा इस बहाने आंखों से वाबस्ता उन सभी गीतों को याद कर रहा हूं। क्या पता बाद में गीत सुनना तो दूर गुनगुनाने का मौका भी ना मिले। 'तेरे चहरे से नजर नहीं हटती...' यह गीत खूब गाया और गुनागुनाया गया है। कइयों ने गीत के माध्यम से दिल की बात दिलरुबा तक पहुंचाई। लेकिन अब नजर नहीं हटेगी तो हवालात की हवा खानी पड़ जाएगी। इसलिए नजरों की यह 'दादागिरी' अब खत्म ही समझो। चर्चित और हजारों दिलों को जोडऩे वाले गीत का इस तरह दर्दनाक द एंड हो जाएगा कभी सोचा भी ना था ? इसी तरह अब 'जरा नजरों से कह दो तुम निशाना चूक ना जाए...' लेकिन अब निशाना चूकना शर्तिया तय है, क्योंकि अब निशाना लगाना ही गुनाह हो रहा है।
वैसे आंखों की इस चर्चा में एक बात याद आ गई। बचपन में पढे कुछ शेर याद आ गए। ग्रामीण इलाकों में चलने वाली बसों के अंदर कई तरह की शेरों-शायरियां लिखी हुई होती हैं। पहले यह पेंटर से लिखवाई जाती थी, आजकल जमाना तकनीक का है ऐसे में बसों वाले आजकल रेडीमेड स्टीकर चिपका कर काम चला लेते हैं। शेर देखिए 'संत भला एकांत में संसार की बातें क्या जाने, जब नजरों पर पाबंदी हो वो प्यार की बातें क्या जाने..।' बीस-पच्चीस साल पहले लिखे गए शेर का भावार्थ भी यही है कि नजरों पर जब पाबंदी हो तो वे प्यार की बातें नहीं करेंगी। अब कोई 'नजर के सामने, जिगर के पास, कोई रहता है वो हो तुम..' कहेगा तो यकीनन कसूरवार माना या ठहराया जाएगा। 'दिल की आवाज भी सुन, मेरे फसाने पर ना जा, मेरी नजरों की तरफ देख जमाने पे ना जा..' लेकिन अब दिल की आवाज अनसुनी कर दी जाएगी। अब जमाने का नहीं बल्कि कानून का डर नजरों को देखने से रोकेगा। हां, तो चर्चा बसों में लिखे शेरों की हो रही थी। इसी तरह एक शेर था 'नजर से नजर मिली मगर कमाल ना हो सका, हाय रे हाथ उठाया था मगर सलाम ना हो सका..' अब ना कमाल होगा और ना सलाम। अब यह गीत 'अकेली ना बाजार जाया करो, नजर लग जाएगी..।' एक एकदम ही निरर्थक हो जाएगा। नजर तो तभी लगेगी ना जब कोई देखेगा। इसलिए अब नजर लगने का डर खत्म समझो। ऐसे में नजर उतारने वालों की दुकान पर ताला लगना तय है। नजर लगने से संबंधित यह गाना 'तुझे लागे ना नजरिया..' भी अब नेपथ्य में चला जाएगा।
'मुझको हुई ना खबर, कब प्यार की पहली नजर' जैसे गीत अपवाद स्वरूप जिंदा जरूर रह सकते हैं। क्योंकि यहां तो नायिका इतनी बेखबर है कि उसको खबर हुए बिना प्यार भरी नजर उसका दिल चुरा कर ले गई। वैसे गीतों से मेरे को बेहद प्यार है लेकिन यह गीत पता नहीं क्यों बिलकुल भी नहीं जमता। अब हकीकत में ऐसा हो नहीं सकता है, क्योंकि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती है। पहली नजर में प्यार होना तो सभी ने सुना है लेकिन बिना खबर हुए ऐसा होना तो किसी से आश्चर्य से कम नहीं है। उदाहरण के लिए 'सैंया ले गई जिया तेरी पहली नजर...'जैसे गीत को लिया जा सकता है। यहां नजरें पहली बार मिली और दिल भी लगा। कहने का आशय है कि एक दूसरे ने आपस में देखा तभी तो यह संभव हुआ ना। 'जादू तेरी नजर, खुशबू तेरा बदन...' पहले प्रंशसा के दो बोल कह कर बाद में हक जताने की हद भला अब माफी के काबिल कैसे होगी। 'तेरी झुकी नजर, तेरी हर अदा, मुझे कह रही है ये..' यहां तो कुछ कहना ही बेकार है। यहां तो झुकी हुई नजर भी बोल रही है। आखिर में एक गीत और याद आया 'लैला बेचारी क्या करती,, नजरिया मजनूं से लड़ गई..' देखिए गीत में लैला कितनी लाचार और मजबूर हो गई फिर भी दोष नजरों का ही बताया जा रहा है। बहरहाल, आंखों की महिमा अपरमपार है। आंखों से प्यार भला किसको नहीं होगा। हम सभी को है। और कोई आंखों से प्यार न कहने की बात करता है तो यकीनन वह झूठ बोल रहा है। लेकिन मौजूदा हालात में झूठ बोलने वालों की संख्या में दिनोदिन इजाफा हो रहा है। भले ही ऐसे लोग रात को तनहाई में 'किसी नजर को तेरा इंतजार आज भी है..' सुनें और गुनागुनाएं लेकिन बात वही कथनी और करनी में अंतर वाली ही है। इस गीत पर जरा गौर फरमाइए 'चंदन सा बदन, चंचल चितवन...' ऐसा होना स्वाभाविक है। तभी तो नायक सरेआम कहता भी कि उसको दोष मत देना। नायक का यह कहना उचित भी प्रतीत होता है। सुंदरता होती ही देखने के लिए है। उसकी बातों का समर्थन यह शेर भी तो करता है..। 'तुम देखने की चीज हो, इसलिए देखता हूं मैं, मुझको सजा ए मौत जो मेरा कसूर हो..। '
 
...क्रमश: