Sunday, December 17, 2017

आज चिंतित हूं...

बस यूं ही
चार दिन से जयपुर से लौटा तो श्रीमती बीमार मिली। बीमारी की सूचना तो फोन पर मिल गई लेकिन आकर देखा तो वाकई में हालत गड़बड़ थी। सूखे होंठ, लटका चेहरा, उनींदी आंखें और थकी-थकी सी चाल। लब्बोलुआब यह कि एकदम निढाल सी। दो दिन से यही हालत थी। चौदह दिसम्बर को देर रात फोन किया था लेकिन तब जयपुर में होने तथा डीजे पर तेज आवाज होने के कारण फोन अटेंड नहीं कर पाया। मुझे क्या मालूम था, फोन तबीयत को लेकर किया जा रहा है। उसने व्हाटसएप पर मैसेज भी किया लेकिन रात को समारोह के वीडियो बनाते-बनाते मोबाइल की बैटरी जवाब दे चुकी थी। लिहाजा पन्द्रह दिसंबर को सुबह जयपुर से रवाना होते वक्त मैसेज देखा। फोन पर बात हुई तो मामला गंभीर लगा। मैंने स्टाफ के एक साथी को मैसेज किया। वो डाक्टर को लेकर घर भी गए लेकिन डाक्टर की दवा श्रीमती को जमी नहीं है।
पन्द्रह को देर शाम घर पहुंचा तो उसकी हालत देखकर तय किया कि अगले दिन सुबह चिकित्सक को दिखाना है। अलसुबह साढ़े चार बजे अचानक आंख खुली तो वह बुखार से तप रही थी। मैंने जैसे ही माथे पर हाथ रखा तो उसने पानी मांगा। उसको पानी देकर मैं रजाई में घुस गया। बुखार में उसके मुंह से आवाज निकलती रही। पांच बजे उसने फिर पानी मांगा। पिलाकर फिर रजाई में घुस गया। श्रीगंगानगर में इन दिनों सर्दी ज्यादा है। पारा तीन डिग्री के आसपास चल रहा है। निर्मल को सर्दी ज्यादा भी लगती है। खैर, छह बजते बजते मोबाइल का अलार्म बज उठा। मौके की नजाकत भांपते हुए मैं उठा और पानी को गर्म करने रख दिया। अब संकट बच्चों को दूध पिलाने तथा माताजी-पिताजी की चाय बनाने का था। बुखार में तपने के बावजूद वह उठी। चाय बनाकर दी। और इन सब के अलावा आज निर्मल की भूमिका मैंने संभाली और मां को चाय पिलाने के बाद फिर रजाई में आ घुसा। इसके बाद मां से संबंधित वह तमाम काम जो निर्मल रोजाना करती है किए। आफिस के लिए कुछ लेट हो गया था। सवा ग्यारह बजे घर से निकला। आते ही सुबह के काम निबटाए। मेल इत्यादि चैक किए। दोपहर के दो बज गए। इसके बाद डाक्टर के पास गए। डाक्टर ने खून की जांच व सोनाग्राफी लिख दी। सोनोग्राफी करवाई तो दोनों किडनी में पथरी बताई। इसके अलावा पित्ताशय (गॉल ब्लेडर) में भी पथरी की रिपोर्ट आई। खून की जांच आई तो बताया गया कि शरीर में खून की कमी है। ब्लड प्रेशर लॉ पहले से ही है।
हिमोग्लोबिन भी सामान्य से कम आया। इतनी सारी गड़बड़ निकल जाना किसी भी भले चंगे आदमी को यकायक डिस्टर्ब कर सकती है। कल एक जांच और है। समझ नहीं पा रहा हूं क्या करूं। मैं घर के काम से अब तक बिलकुल फ्री था। मुझे पता ही नहीं चलता कि घर का काम होता कैसे है। भगवान से प्रार्थना है कि वह निर्मल को जल्द दुरुस्त करें। स्वस्थ्य करें, क्योंकि वह स्वस्थ हैं तो हम सब स्वस्थ हैं।

भैया ये दिवार टूटती क्यों नहीं

बस यूं ही
सरकारी कामों के बारे में कहा जाता है वो कि अक्सर देर से ही पूर्ण होते हैं। इस तरह के उदाहरण कई हैं। एक मामला तो मेरे गांव केहरपुरा कलां से भी जुड़ा हैं। मामला अतिक्रमण से संबंधित हैं। गांव के राजकीय औषधालय से चानणा जोहड़ तक के रास्ते पर हो रखे अतिक्रमण के संबंध में स्व. जयपालसिंह शेखावत के सुपुत्र देवेन्द्रसिंह ने पिछले माह राजस्थान संपर्क पोर्टल पर शिकायत दर्ज करवाई थी। देवेन्द्र ने अभी 14 दिसम्बर को पोर्टल से इस मामले की अपडेट जानकारी ली तो मामला अपने आप में दिलचस्प निकला। इसमें बताया गया है कि 'प्रकरण में उपखंड अधिकारी चिड़ावा की रिपोर्ट के अनुसार उक्त प्रकरण में तहसीलदार चिड़ावा से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार उक्त रास्ता राजस्व रिकार्ड में कटानी रास्ते के रूप में दर्ज है। ग्राम से निकलने के बाद लगभग सौ फीट तक दोनों तरफ के काश्तकारों ने पक्की दीवार बना रखी है एवं मौके पर रास्ता 10-11 फीट चौड़ा है। पूर्व में सीमा ज्ञान करवाकर रास्ता खोल दिया गया था। वर्तमान में लगभग 16-17 फीट चौड़ा रास्ता चालू अवस्था में है तथा अतिक्रमियों के विरुद्ध धारा 91 की रिपोर्ट की जा चुकी है।'
यह रिपोर्ट या तो निहायत ही बेवकूफ कर्मचारी ने बनाई है। या फिर इसकी तरफ ध्यान ही नहीं दिया गया है। या या फिर किसी डेढ़ स्याणे ने दिमाग लगाकर यह जवाब लिखा है। बहरहाल,चंद सवाल चिड़ावा के उपखंड अधिकारी व तहसीलदार दोनों से है। यही सवाल मैं इन दोनों अधिकारियों से करने की कोशिश करूंगा। मसलन,
1 .क्या उपखंड अधिकारी व तहसीलदार ने कभी मौका देखा है?
2. क्या इन दोनों अधिकारियों को पूर्व की तथा बाद की स्थिति की वास्तविक जानकारी है?
3. कहीं नीचे का कोई कर्मचारी इन दोनों अधिकारियों को अंधेरे में तो नहीं रख रहा?
4. इस मामले में अधिकारियों पर किसी तरह का कोई दवाब तो नहीं है?
5. इस तरह की रिपोर्ट पोर्टल पर दर्ज कौन करता है? तथा किसके निर्देश पर दर्ज करता है?
6. रास्ता पहले 10-11फीट था तो अब 16-17 फीट चौड़ा कैसे हो गया वह भी बिना दिवार तोड़े?
7. रास्ता बंद ही कब हुआ था तो रिपोर्ट में रास्ता चालू होने पर जोर क्यों व किसलिए?
8. रिपोर्ट का जवाब बेहद गोलमाल है। इसमें समस्या का समाधान होगा या नहीं यह नहीं बताया गया?
9. सीमाज्ञान करवाया गया तो कितने फीट पर करवाया गया?
10. इस मामले में पंचायत की भूमिका क्या रही है और क्या होगी?
गांव के युवाओं को भी इस तरह के मामलों में पहल करनी चाहिए क्योंकि यह भी एक तरह की सेवा ही है।