Sunday, May 26, 2013

लोकप्रियता का खेल


टिप्पणी

चुनावी साल है, इसलिए लगे हाथ अरबों रुपए के विकास कार्यों का भूमिपूजन भी धड़ाधड़ हो रहा है। लेकिन जिन कार्यों का भूमिपूजन हो रहा है, वे कब पूरे होंगे, उनकी समय सीमा क्या है, यह बताने की स्थिति में कोई नहीं है। फिलहाल तो सरकार का एकसूत्री कार्यक्रम भूमिपूजन कर तात्कालिक वाहवाही बटारेने का ही दिख रहा है। प्रदेश में ऐसे विकास कार्यों की लम्बी फेहरिस्त हैं, जिनका भूमिपूजन या घोषणाएं हुए तो मुद्दत हो गई लेकिन वे आजतक अमलीजामा नहीं पहन पाए। कई जगह तो भूमिपूजन के पत्थर तक गायब हो गए और घोषणाएं हवा-हवाई साबित हुई। भिलाई एवं दुर्ग शहर भी इस प्रकार के भूमिपूजनों एवं घोषणाओं से अछूते नहीं है।  प्रदेश के स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री शनिवार को खुर्सीपार में प्रस्तावित दस बिस्तर वाले अस्पताल के जच्चा-बच्चा केंद्र का उद्घाटन करने आ रहे हैं। अस्पताल बाद में शुरू होगा, पहले जच्चा बच्चा केन्द्र शुरू होगा। इस अस्पताल का भूमिपूजन भी पांच साल पहले हो गया था। इसके भवन निर्माण के लिए दानदाताओं ने भी सहयोग किया था, फिर भी प्रदेश सरकार को यहां तक आने में पांच साल का लम्बा वक्त लग गया और अब तक भी काम पूर्ण नहीं हुआ है। प्रदेश के मुखिया की घोषणा की सबसे बड़ी बानगी तो भिलाई का लाल बहादुर शास्त्री शासकीय अस्पताल सुपेला ही है, जहां पांच साल पहले की गई घोषणा के बाद भी सुविधाओं एवं संसाधनों में आज तक विस्तार नहीं हुआ है।
बहरहाल, सस्ती लोकप्रियता पाने या तात्कालिक वाहवाही बटोरने की मंशा से जनता का भला नहीं होने वाला। प्रदेश के मुखिया एवं उनके मातहत अगर वाकई कुछ करने की हसरत रखते हैं तो उनको सबसे पहले कथनी एवं करनी के भेद को खत्म करना होगा। भूमिपूजन के पत्थर लगाकर भूलने की बीमारी का इलाज भी जरूरी है, क्योंकि भूमिपूजन करके पत्थर लगा देने या अस्पताल खोलने भर से ही पीडि़तों को राहत नहीं मिलती। जरूरी है उनमें पर्याप्त स्टाफ हो, संसाधन हो। अगर यह सब नहीं होता है तो फिर 'विकास' का नारा व 'विकास यात्रा' दोनों ही बेमानी है।  

साभार - भिलाई पत्रिका के 25 मई 12  के अंक में प्रकाशित।