Thursday, January 10, 2013

घोषणाओं का सब्जबाग!



टिप्पणी 
 
सपने देखना या दिखाना तभी सार्थक है, जब उनको निर्धारित समय सीमा में पूरा कर लिया जाए। कुछ ऐसे ही सपने बालोद जिले के लोगों ने देखे थे या यूं कहें कि दिखाए गए थे। लम्बे समय से विकास की बाट जोह रहे एवं मुख्यधारा से कटे लोगों की खुशी का उस वक्त ठिकाना नहीं था, जब बालोद को जिला बनाने की घोषणा की गई थी। यह सपने पूरे होने की दिशा में उठाया गया एक कदम माना गया। एक तो नए जिले की सौगात ऊपर से घोषणाओं की बरसात, एक तरह से मुंह मांगी मुराद पूरी होने जैसा ही तो था। लोगों की उम्मीदें जवां हो गई थीं। जिला बनने का जश्न भी जोरदार तरीके से मना। हर किसी के चेहरे पर एक अलग ही चमक नजर आई। जिला बनने की प्रथम वर्षगांठ पर प्रदेश के मुखिया एक बार फिर बालोद आ रहे हैं, लेकिन क्षेत्र के लोगों में वैसा उत्साह एवं जोश नजर नहीं आ रहा है, जैसा पिछले साल था। आए भी कैसे, बीते एक साल में न तो बालोद की सूरत बदली और न ही सीरत। हालात भी कमोबेश वैसे ही हैं, जैसे एक साल पहले थे। चुनावी साल होने के कारण इतना तो तय है कि प्रदेश के मुखिया इस बार भी करोड़ों रुपए के विकास कार्यों की घोषणा और भूमिपूजन की झड़ी लगाने से नहीं चूकेंगे। कुछ इसी तरह की घोषणाएं उन्होंने पिछले साल भी की थीं, लेकिन उनका हश्र क्या हुआ, यह बालोद के लोग बेहतर जानते हैं। हो सकता है मुख्यमंत्री के इस दौरे के चलते पिछले साल की घोषणाओं पर जमी गर्द साफ हो जाए। बालोद में वैसे भी धूल ज्यादा उड़ती है, तभी तो मुख्यमंत्री ने पिछले साल शहर को धूलमुक्त बनाने की घोषणा की थी। यह घोषणा भी, अभी तक घोषणा ही बनी हुई है और धूल यूं ही उड़ रही है। इसके अलावा और भी कई घोषणाएं अभी आधी-अधूरी हैं। बुनियादी एवं मूलभूत सुविधाओं का तो हाल ही बुरा है। गांवों को जोडऩे वाले रास्ते इतने बदहाल हैं कि पैदल चलना भी मुश्किल है।
बहरहाल, मुख्यमंत्री के आगमन से उनके दल एवं कार्यकर्ताओं में भले ही जोश हो लेकिन आम आदमी खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है। तभी तो मुख्यमंत्री के दौरे को लेकर आम लोगों में उत्सुकता तो है, लेकिन उत्साह नजर नहीं आ रहा है। उनमें जिज्ञासा जरूर है, लेकिन उम्मीदें कम हैं। सतारूढ़ दल की ओर से वर्षगांठ के बहाने अगर आगामी चुनाव में लाभ के लिए ही यह सारा उपक्रम किया जा रहा है तो इसे न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता। मुखिया होने के नाते मुख्यमंत्री का दायित्व बनता है कि वे जो घोषणाएं करें वे नियत समय में पूरी हों और लम्बित घोषणाएं भी जितना जल्दी हो पूरी हो जानी चाहिएं। और अगर इतिहास ही दोहराना है तो यह चुनावी मौसम में सब्ज बाग दिखाने से ज्यादा कुछ नहीं है। सुविधाओं को तरसते लोगों के लिए यह सब्जबाग किसी छलावे से कम नहीं होगा।

साभार- पत्रिका भिलाई के 10 जनवरी 12  के अंक में प्रकाशित।