Wednesday, May 20, 2015

सांप और छछुंदर

बस यूं ही
सांप और छंछुदर की कहानी तो कमोबेश सभी ने ही सुनी होगी। मेरे को भी थोड़ा-थोड़ा याद है। कहानी का मजमून कुछ इस तरह से है कि सांप और छछुंदर की लड़ाई में सांप गहरे धर्मसंकट में घिर जाता है। वह छछुंदर को न तो निगल पाता है और न ही उगल पाता है। बताया जाता है कि सांप अगर छछूंदर को खा जाए तो मरने का खतरा और पकड़ कर छोड़ दे तो अंधा होने का अंदेशा रहता है। केन्द्र में काबिज कथित कुलीनों के कुनबे वाली पार्टी की हालत भी इन दिनों कुछ ऐसी ही है। हाल-फिलहाल की दो घटनाएं ऐसी हैं, जिससे पार्टी की जबरदस्त किरकिरी हुई है। दिल्ली में बेदी को पहले पार्टी में शामिल करने तथा फिर मुख्यमंत्री घोषित करने के फैसले को पार्टी अभी तक पचा नहीं पाई है। हार का सदमा ऐसा है कि पार्टी में अभी तक अंदरखाने मंथन चल रहा है।
कोढ़ में खाज का काम जम्मू कश्मीर में पीडीपी को समर्थन से हो गया। या यूं कहे कि पार्टी ने यह फैसला करके अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा काम कर लिया। अगर पीडीपी जो कर रही है, उसमें सहयोगी की कहीं न कहीं हां है तो मुद्दा ही खत्म, क्योंकि युद्ध और प्यार के साथ-साथ आजकल राजनीति में भी सब कुछ जायज होने लगा है। हालांकि राष्ट्रवाद के प्रखर झंडाबरदारों से ऐसे किसी गुप्त समझौते की उम्मीद तो नहीं है। फिर भी जो हो रहा है कि उससे पार्टी की साख पर बट्टा जरूर लग रहा है।
वैसे भी सियायत में हर तरह के प्रयोग तभी तक ही सर्वमान्य हैं जब तक वो सफल होते हैं। क्योंकि सफलता एक ऐसा टॉनिक है, जिसमें गलतियां अगर हुई भी हैं तो छिप जाती हैं। जबकि विफलता में इससे ठीक उलटा होता है। एक-एक बात की पड़ताल होती है। यहां तक कि बाल की खाल भी निकाल ली जाती है। बहरहाल, पार्टी के रणनीतिकार उस घड़ी को पानी पी-पी कर कोस रहे होंगे जब यह निर्णय किया गया होगा।

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