Sunday, September 25, 2011

उदासीनता से बढ़ता दुस्साहस

टिप्पणी
बिलासपुर जिले का शिक्षा विभाग इन दिनों चर्चा में है। शातिर लोग शिक्षा विभाग के नाम पर खुलेआम भर्तियों से संबंधित इश्तहार निकाल रहे हैं, आवेदन बेच रहे हैं। एक के बाद एक फर्जीवाड़े उजागर हो रहे हैं। आलम यह है कि बीते एक माह में शिक्षा विभाग से संबंधित चार मामले सामने आ चुके हैं। चूंकि सभी मामले शिक्षा विभाग से संबंधित हैं, लिहाजा विभाग की संलिप्तता या किसी कर्मचारी की मिलीभगत से भी इनकार नहीं किया जा सकता। फर्जी चपरासी भर्ती प्रकरण में तो शिक्षा विभाग के एक शिक्षक की भूमिका संदिग्ध मानी भी जा रही है। मामले की तह तक जाने के लिए पुलिस इस शिक्षक की सरगर्मी से तलाश कर रही है। बिलासपुर में कम्प्यूटर ऑपरेटर भर्ती की सूचना खुलेआम चस्पा करने तथा भर्ती से संबंधित आवेदन बेचने का मामला तो ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया गया है। इंदिरा शक्ति योजना के नाम पर ठगी के शिकार हुए दो युवकों के मामले में भी विभाग ने बजाय कोई कार्रवाई करने के भर्ती को फर्जी बताकर पीड़ित युवकों को टरका दिया। फर्जीवाड़े से संबधित इन मामलों में ऐसे लोगों को निशाना बनाया जा रहा है, जो कम पढ़े लिखे हैं। वे आसानी से बहकावे में आ जाते हैं। तभी तो शातिर लोगों को बेरोजगारी की मार से परेशान युवाओं को सरकारी नौकरी का सब्जबाग दिखाकर अपना उल्लू सीधा कर लेने में कोई दिक्कत नहीं होती। फर्जीवाड़े की उक्त घटनाओं से इतना तो तय है कि विभाग ने इन मामलों को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जितना कि उसे लेना चाहिए था।  विभाग की ओर से इस प्रकार के मामलों में शुरू से ही सख्ती बरती जाती तो शायद फर्जीवाड़ा करने वालों के हौसले इस कदर बुलंद नहीं होते। एक-दो शातिरों के खिलाफ अगर कड़ी कार्रवाई हो जाती तो बाकी को अपने आप सबक मिल जाता। लेकिन यह हो न सका, विभाग ने इस प्रकार के मामलों में लगातार उदासीनता बरती तभी ऐसे मामलों की फेहरिस्त बदस्तूर बढ़ती गई।  वैसे भी शिक्षा विभाग को सबसे महत्वपूर्ण महकमा इसलिए माना जाता है, क्योंकि इसके जिम्मे शिक्षा का उजियारा फैलाकर लोगों को जागरूक करने की महत्ती जिम्मेदारी है। बिलासपुर जैसे जिले में तो शिक्षा विभाग की भूमिका इसलिए भी अहम है क्योंकि यहां आर्थिक असमानता का ग्राफ अन्य जिलों के मुकाबले काफी नीचे हैं। शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के जीवन स्तर में भी बड़ा फासला देखने को मिलता है। इसी अंतर के कारण लोग विकास की मुख्यधारा से जुड़ नहीं पाते। यहां की साक्षरता दर भी राज्य के अन्य जिलों के मुकाबले कम है। जिले के लोगों की अशिक्षा एवं अज्ञानता का फायदा शातिर लोग गाहे-बगाहे उठाते रहते हैं। ऐसे में शिक्षा विभाग को जिम्मेदारी ज्यादा बन जाती है।
बहरहाल, ऐसे मामलों में शिक्षा विभाग का सतर्कता बरतना बेहद जरूरी है। उसके नाम पर कोई धोखाधड़ी कर रहा है। लोगों को ठग रहा है तो वह उसके खिलाफ तत्काल कार्रवाई करे। इस प्रकार के मामलों में उदासीनता बरतने का मतलब शातिरों को प्रोत्साहन देना ही तो है। इधर, भर्ती के नाम पर ठगी के शिकार होने वाले युवकों को भी चाहिए कि वे किसी की चिकनी चुपड़ी बातों में आने की बजाय अपने विवेक से काम लें। कोई भी निर्णय लेने से पहले मामले की तह तक जाएं। क्योंकि जो काम वे अपना पैसा एवं चैन लुटाने के बाद कर रहे हैं अगर पहले कर लें तो दोनों की बचत होगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि विभाग भविष्य में इस प्रकार के मामलों पर गंभीरता से विचार करेगा ही संबंधित युवक भी जागरुकता के साथ सावधानी बरतेंगे। कड़ी कार्रवाई तथा जागरुकता से ही इस प्रकार के फर्जीवाड़ों पर रोक संभव है।

साभार : बिलासपुर पत्रिका के 25  सितम्बर 11 के अंक में प्रकाशित।