Thursday, July 26, 2012

शहादत को मिले सम्मान

टिप्पणी

यकीन मानिए अगर यह किसी फिल्मी कलाकार का कार्यक्रम होता तो लोग इतनी बड़ी संख्या में जुटते कि भिलाई का हुडको मैदान छोटा दिखाई देने लगता। अगर यह किसी पार्टी विशेष के बड़े नेता की सभा होती तो अकेली गाड़ियों का लवाजमा ही इतना हो जाता कि शहर की यातायात व्यवस्था लड़खड़ा जाती। अगर यह किसी हीरोइन या नृत्यांगना का कार्यक्रम होता तो भूख-प्यास की चिंता छोड़कर लोग सुबह से अपनी जगह सुनिश्चित करने का प्रयास करते दिखाई देते। अफसोस की बात यह है कि कार्यक्रम किसी फिल्मी कलाकार, किसी नेता या किसी नृत्यांगना का ना होकर एक शहीद की पुण्यतिथि का था। तभी तो छत्तीसगढ़ के एकमात्र करगिल शहीद कौशल यादव के स्मारक स्थल पर श्रद्धासुमन अर्पित करने जुटे लोगों की उपस्थिति वाकई सोचनीय थी। श्रद्धांजलि देने आए गिने-चुने लोगों को देखकर समझा जा सकता है कि आखिर छत्तीसगढ़ के युवाओं की सशस्त्र सेनाओं में भागीदारी कम क्यों है। श्रद्धांजलि सभा के लिए लगाए गए टैंट की अधिकतर कुर्सियां खाली पड़ी थी। समय निकाल कर पहुंचे चुनिंदा लोग भी इतनी जल्दी में थे कि वे सिर्फ मुंह दिखाई करके लौट गए।गनीमत रही कि दो चार स्कूलों के विद्यार्थियों ने राष्ट्रधर्म निभाते हुए स्मारक स्थल पर न केवल अपनी उपस्थिति दर्ज कराई बल्कि शहीद को भावभीनी श्रद्धांजलि भी अर्पित की। कहने को महापौर एवं भिलार्इ नगर  विधायक ने भी स्मारक स्थल पर श्रद्धासुमन अर्पित किए लेकिन दोनों ने मंच पर साथ-साथ बैठने से परहेज किया। विधायक अपनी रस्म अदायगी कर पहले की निकल लिए जबकि महापौर तय समय पर पहुंची। वैशाली नगर विधायक तो दोपहर बाद श्रद्धाजलि अर्पित करके आए। इधर, देश की सुरक्षा एवं अस्मिता की दुहाई देने तथा देश के लिए मर-मिटने के दावे करने वाले दल भाजपा के छुटभैये नेताओं के अलावा नामचीन नामों की उपस्थिति न के बराबर थी। शर्मनाक बात तो यह भी थी कि कार्यक्रम में प्रशासनिक स्तर पर कोई अधिकारी या कर्मचारी नहीं पहुंचा। मरणोपंरात वीर चक्र से नवाजे गए शहीद कौशल यादव के प्रति ऐसा व्यवहार निहायत ही गैर जिम्मेदाराना एवं देशभक्ति के जज्बे को ठेस पहुंचाने वाला है।
बहरहाल, छत्तीसगढ़ प्रदेश के युवाओं की भागीदारी सशस्त्र सेनाओं में बेहद कम है। इसका यह तो कतई मतलब नहीं है कि यहां के युवाओं में देशभक्ति का जज्बा नहीं है। दरअसल यहां के युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने तथा उनको राष्ट्र सेवा की मुख्यधारा से जोड़ने के प्रयास ही बहुत कम हुए हैं। यहां के युवाओं को शायद ही ऐसा माहौल मिला हो, जिसके दम पर उन्होंने देश सेवा करने का सपना पाला हो। लोगों में देश के प्रति जोश, जज्बा एवं जुनून बरकरार है, बस शर्त इतनी सी है कि उनकी इस भावना को समय-समय पर जगाया जाए। हाल ही में प्रदेश में हुई वायुसेना भर्ती इसका जीता जागता उदाहरण है। भर्ती के प्रति माहौल बनाया गया तो युवाओं को जुटने में भी देर नहीं लगी। फिर भी तेरह साल पहले शहीद के अंतिम संस्कार के दौरान हजारों की संख्या में जुटने वालों की संख्या बुधवार को दहाई तक सिमटना बेहद सोचनीय विषय है। इसके पीछे कहीं न कहीं सरकारी एवं प्रशासनिक उदासीनता ही  जिम्मेदार है। शहीद की पुण्यतिथि किसी उत्सव से कम नहीं होती है। उसकी शहादत को पूरा-पूरा सम्मान मिलना चाहिए ताकि युवा पीढ़ी के दिल में देशप्रेम का जज्बा पैदा हो। उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में अकेले कौशल यादव ही नहीं बल्कि प्रदेश के अन्य शहीदों के प्रति ऐसा रुखा व्यवहार न हो तथा उनकी पुण्यतिथि महज रस्मी कार्यक्रम ना बने, तभी शहीदों की चिताओं पर हर वर्ष मेले लगने का स्लोगन चरितार्थ हो पाएगा।

साभार - पत्रिका भिलाई के 26  जुलाई 12  के अंक में प्रकाशित।