Monday, April 1, 2013

शह और संपर्क का खेल


टिप्पणी

भले ही यह जांच का विषय है लेकिन इतना तो तय है कि दुर्ग के बेथल चिल्ड्रन होम में अरसे से चल रहे  'अनाथों' से अनाचार के सनसनीखेज एवं घिनौने कृत्य में न केवल केयर टेकर व संचालक आरोपी हैं बल्कि वे सब भी बराबर के दोषी हैं, जो जानते हुए भी अनजान बने रहे। तभी तो जिला प्रशासन की ठीक नाक के नीचे बिना मान्यता के भी यह चिल्ड्रन होम बेरोकटोक चलता रहा। ऐसा शातिराना एवं शर्मनाक काम केवल शह, सम्पर्क और साठगांठ के सहारे ही संभव है, वरना एक सामान्य आदमी अचानक और आश्चर्यजनक रूप से अर्श पर कैसे पहुंच सकता है। रसूखदारों से रिश्ते, सियायत से सम्पर्क और जिम्मेदारों से जानकारी का फायदा उठाकर फर्जीवाड़े के सहारे यह अमानवीय कृत्य होता रहा। मिलीभगत के इस खामोश खेल का खुलासा अब भी नहीं हो पाता, अगर कुछ जागरूक संगठन पहल नहीं करते या लड़कियां होम से ना भागती। प्रदेश में आश्रमों की असलियल उजागर होने के बाद सामूहिक दुष्कर्म का यह बड़ा मामला है।
खैर, हकीकत सामने आने के बाद हड़कम्प मचाना स्वाभाविक है। थोड़ा बहुत तात्कालिक, रस्मी और औपचारिक हंगामा भी है। इस प्रकार के मामलों में ऐसा हमेशा ही होता है। झलियामारी एवं आमाडुला आश्रमों की हकीकत से पर्दा उठने से लेकर अब तक हुई हलचल का इतिहास और परिणाम सबके सामने हैं। आश्रमों की असलियत उजागर होने पर होने वाला आश्चर्य मिश्रित अफसोस इस बार भी है लेकिन हालात से हारे मासूमों की मदद के लिए कोई सामूहिक आवाज नहीं उठ रही है। उनकी तकलीफ समझना तो दूर उनको तमाशा बना दिया गया है।
दिल्ली की 'दामिनी' के लिए दुर्ग में जो दर्द दिखाई दिया वैसा दर्द मासूमों के साथ दुष्कर्म को लेकर नहीं दिख रहा है। अब ना तो कोई शर्मसार है और ना ही किसी चेहरे पर शिकन। किसी के गमगीन या गुस्सा होने का तो कहीं नामोनिशान तक नहीं है। संवेदनाओं का सैलाब भी सूख गया है। हमदर्दी और हिम्मत दिखाने वालों का भी अकाल है। कागजी बयानों की फेहरिस्त दिनोदिन जरूर लम्बी हो रही है। और इधर कार्रवाई के नाम पर चार पुलिस अधिकारियों को जांच सौंप कर इतिश्री कर ली गई है। ऐसे घिनौने और गंभीर मामले की न्यायिक जांच होनी चाहिए।


साभार- पत्रिका भिलाई के 01 अप्रेल 13 के अंक में प्रकाशित।

कुछ तो ऐसा कीजिए, जो याद रखें

टिप्पणी 

श्रीमान, आयुक्त, नगर निगम, भिलाई
निगम आयुक्त का पदभार संभालने के बाद आपने शहर की बदहाल सड़कों को ठीक करने की दिशा में तत्परता दिखाते हुए ठेकेदारों के खिलाफ जो कार्रवाई की थी, उसको लोग अभी भूले नहीं हैं। यह बात दीगर है कि सड़कों की दशा में ज्यादा सुधार नहीं हो पाया। इसका प्रमुख कारण यह है कि आप जितनी मेहनत कर रहे हैं, उसका उतना न तो प्रतिफल मिल रहा है और ना ही कहीं प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है। यह भी विडम्बना है कि भिलाई निगम क्षेत्र में आपके नेतृत्व में कई तरह के अभियान तो चलाए गए, लेकिन मंजिल तक कोई नहीं पहुंचा। अभियानों का आगाज जरूर प्रभावी अंदाज में हुआ, लेकिन उद्देश्य की पूर्ति किसी से भी नहीं हुई। सभी अभियानों का हश्र कमोबेश एक जैसा ही रहा और सभी पूर्ण होने से पहले ही दम तोड़ गए।
आपके खाते में ऐसे अधूरे अभियानों की फेहरिस्त बेहद लम्बी है। शहर में सरकारी आवासों से अवैध कब्जों को हटाने की मुहिम बड़े जोर-शोर से शुरू हुई थी, लेकिन कब्जे कितने हटे आप भी जानते हैं। यही हाल नाले पर अतिक्रमण हटाने का रहा। महज दो दिन फूं फां करके आपका अमला अचानक चुपचाप बैठ गया। नेहरूनगर के आवासों में व्यावसायिक गतिविधियां संचालित करने वालों को नोटिस देकर कार्रवाई के नाम पर रहस्यमयी चुप्पी साध ली गई। यही नहीं शहर में अवैध तथा बिना टोंटी के नलों को बंद करने की कार्रवाई भी पता नहीं क्यों बंद हो गई। गर्मी के मौसम में आज भी शहर के कई हिस्से पानी के लिए तरस रहे हैं। इधर, सुपेला में रविवार को लगने वाले साप्ताहिक बाजार को दूसरी जगह स्थानांतरित करने को भले ही आप और आपके मातहत बड़ी उपलब्धि मानें, लेकिन आज भी सुपेला की सड़क अतिक्रमण से मुक्त नहीं है। सड़क पर न केवल अस्थायी दुकानें बेखौफ लग रही हैं, बल्कि स्थायी दुकान वालों ने भी सामान सड़क तक खिसका कर कब्जा जमा लिया है। यकीन नहीं हो तो आप स्वयं मौका देख सकते हैं।
शहर में सर्वाधिक चर्चा तो सर्विस लेन से कब्जे हटाने की कार्रवाई को लेकर हो रही है। दो-चार दिन कार्रवाई चली, उसके बाद आप अवकाश पर चले गए और आपके मातहतों को अभियान बंद करने की जोरदार वजह मिल गई। पहले तो वे कहते रहे कि आयुक्त आएंगे तब कार्रवाई होगी, लेकिन आपके लौटने के बाद भी कोई हलचल नहीं हुई। उलटे जहां से कब्जे हटाए गए थे, वहां अतिक्रमी फिर से काबिज हो गए। अभियानों का इस तरह गला घोंटने से आपकी एवं मातहतों की कार्यप्रणाली पर कई तरह के सवालिया निशान और अवैध वसूली के चक्कर में अभियान से समझाौता करने तक के आरोप लग रहे हैं। इन सवालों और आरोपों का पटाक्षेप तभी होगा, जब तमाम तरह के हस्तक्षेप एवं दवाबों को नजरअंदाज कर अधूरे  अभियानों को कारगर कार्रवाई कर पूर्ण किया जाए। बेहतर होगा जनहित से जुड़े अभियानों का आप स्वयं औचक निरीक्षण करें। और अगर अभियानों में इसी तरह  औपचारिकता ही निभानी है तो बेहतर है उनको शुरू ही नहीं किया जाए।
बहरहाल, आम जन से जुड़े अभियानों का इस तरह गला मत घोंटने दीजिए। उनको जिंदा रखिए। अभियान जिंदा रहेंगे तभी आमजन को राहत मिलेगी। एक बात और, आरामतलबी एवं कामचोरी आपके जिन मातहतों की आदत में आ चुकी है, इनके लिए दिशा-निर्देश या फटकार किसी भी सूरत में कारगर नहीं हो सकते। ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ाई जरूरी है। अगर आप वाकई में कुछ करने का माद्दा रखते हैं तो आपको जनहित में कड़े फैसले व सख्त कार्रवाई से हिचकिचाना नहीं चाहिए। बात चाहे आपके मातहतों की हो या फिर अभियानों की, कुछ तो ऐसा कीजिए, ताकि भिलाई के लोग आपको कुशल व दक्ष अधिकारी के रूप में लम्बे समय तक याद रखें। 

 
साभार- पत्रिका भिलाई के 31 मार्च 13 के अंक में प्रकाशित।