Tuesday, February 14, 2012

इन धमाकों को सुनिए!

टिप्पणी 

श्रीमान, राहुल शर्मा
पुलिस अधीक्षक, बिलासपुर।

आपको बिलासपुर जिले का कार्यभार संभाले हुए एक माह से ज्यादा समय हो गया है। इस अवधि में आपको शहर की सूरत एवं सीरत का अंदाजा तो भली भांति हो गया होगा। वैसे भी किसी अधिकारी के लिए शहर को समझने के लिए एक माह का समय कम नहीं होता है। चूंकि आप नए हैं, सभी की नजरें भी आप पर ही हैं, इसलिए शहर को आपसे अपेक्षाएं भी ज्यादा हैं। अपेक्षा ज्यादा होने का मतलब यह तो कतई नहीं है कि आपसे पहले वाले अधिकारी काम के नहीं थे या उन्होंने काम नहीं किया। दरअसल यह आम धारणा बन गई है कि जब भी कोई नया अधिकारी आता है तो उससे उम्मीदें एवं अपेक्षाएं बढ़ जाती है। इसकी एक प्रमुख वजह नए व पुराने के बीच तुलना होना भी है। जब व्यवस्था एक  ही ढर्रे पर चलती है और उसमें रत्तीभर भी बदलाव दिखाई देता है तो उम्मीदें बढ़ना लाजिमी है। आपने पदभार संभालने के बाद जिस तरह कबाड़ियों के खिलाफ कार्रवाई की उससे लगा कि वाकई आप पटरी से उतरी व्यवस्था को सही करने की दिशा में बढ़ रहे हैं। लेकिन जिस अंदाज में कार्रवाई का आगाज हुआ, वह अंजाम तक पहुंचने से पहले ही विवादों में घिर गई। खैर, इस प्रकार की कार्रवाई अक्सर नवागत अधिकारी करते आए हैं ताकि गलत काम करने वालों में कानून के प्रति खौफ हो। यह बात दीगर है कि आपने कार्रवाई का केन्द्र कबाड़ियों को बनाया।
आपको अवगत कराने की जरूरत नहीं है, फिर भी बता दें कि बिलासपुर शहर में मुख्य रूप से दो विचारधाराओं के लोग ही ज्यादा हैं। या यूं कहें कि दो विचारधाराओं के लोग दो वर्गों में बंटे हुए हैं। इनकी जीवनशैली में जमीन आसमान का अंतर है। तभी तो दोनों वर्गों के बीच लम्बी-चौड़ी खाई है। एक वर्ग सामान्य व आम लोगों का प्रतिनिधित्व करता है जबकि दूसरा रसूखदारों एवं धनाढ्‌य लोगों से बावस्ता है। सारी कहानी इन दोनों वर्गों के इर्द-गिर्द ही घूमती है। रसूखदार जहां पैसे एवं पहुंच के दम पर कुछ भी करा सकने का दावा करते हैं जबकि आम आदमी के पास सिवाय व्यवस्था को कोसने के दूसरा कोई चारा नहीं है। रसूखदारों से नजदीकियां बढ़ाने, उनके दुख-दर्द में शामिल होने तथा उनको कुछ भी करने की छूट देने जैसे आरोपों से आपका विभाग भी अछूता नहीं है। कई मौके तो ऐसे आए हैं जब आपके मातहतों ने मुंह देखकर कार्रवाई की है।
पुलिस में भर्ती होने के बाद प्रशिक्षण के दौरान संविधान के प्रति पूरी ईमानदारी एवं मेहनत से सेवा देने, कर्तव्य का पालन पूरी निष्ठा व ईमानदारी के साथ करने, सभी धर्मा के प्रति समान भावना रखने, अपराध के लिए कोई भी रिश्तेदारी या जाति भावना दिल में न आने देने तथा मेहनत एवं लगन के दम पर देश एवं राष्ट्र धवज का नाम ऊंचा करने की शपथ लेने वाले आपके मातहत पता नहीं क्यों समय के साथ बदल जाते हैं। आम आदमी का दर्द उनको दर्द ही नजर नहीं आता है। ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। बीते एक माह में आप भी इससे वाकिफ हो गए होंगे। शहर में देर रात तक डीजे बजाना, तेज धमाकों के साथ आतिशबाजी करना और पटाखे फोड़ना आम हो गया है।  मौजूदा समय में रसूखदारों का यह शगल आम आदमी को इसलिए अखर रहा है, क्योंकि यह परीक्षा का समय है। प्राइमरी से लेकर माध्यमिक, उच्च माध्यमिक एवं कॉलेज स्तर की परीक्षा सिर पर हैं। परीक्षाओं को देखते हुए जिला प्रशासन ने माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनुपालना में तेज ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर रोक लगाने के आदेश जारी कर रखे हैं। ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर रोक के आदेशों के बावजूद रात बारह-एक बजे तक शहर में तकरीबन रोजाना तेज आवाज में डीजे बजता है। पटाखे फूटते हैं, लेकिन आपके मातहतों को यह सुनाई नहीं देता है।
ऐसा लगता है, उन्होंने कानों में रुई डाल रखी है। डीजे एवं पटाखों के धमाके आपको सुनाई न देना भी किसी आश्चर्य से कम नहीं है। ऐसा लगता है आपके बंगले एवं कार्यालय की दीवारें आवाज रोधी हैं। आप ही बताइए, अपनी खुशी के लिए दूसरों को परेशानी में डालना कहां तक उचित है। परीक्षा की तैयारी में व्यस्त कोई नौनिहाल हिम्मत जुटाकर आपको सूचना देता भी है तो उसकी बात को अनसुना नहीं करना चाहिए। वह एक उम्मीद के साथ  सूचना देता है लेकिन जब उसे निराशा  हाथ लगती है तो वह दुबारा क्यों फोन करेगा। इससे तो यह जाहिर होता है कि रसूखदारों को खुलेआम अपने रुतबे का प्रदर्शन करने की अघोषित छूट भी आपके विभाग ने ही दे रखी है।  वे कभी भी, कहीं भी कुछ भी करें। उनको रोकने या टोकने कोई नहीं जाता है।  तभी तो आम आदमी पुलिस के पास जाने में भी डरता है। व्यवस्था से त्रस्त बिलासपुर के आम आदमी को जब इन ध्वनि विस्तारक यंत्रों व देर रात होने वाले तेज धमाकों से ही मुक्ति नहीं मिल रही है तो फिर अपराधों पर नियंत्रण की बात करना बेमानी है। आप कुछ नया कर पाए तो बिलासपुर के लोग आपको लम्बे समय तक याद रखेंगे। भले ही वह आम जन में विश्वास कायम करना ही क्यों न हो।

साभार : बिलासपुर पत्रिका के 14 फरवरी 12 के अंक में प्रकाशित