Friday, May 25, 2018

दोहरा मापदण्ड

टिप्पणी
आबकारी विभाग व पुलिस ने बुधवार को संयुक्त कार्रवाई करते हुए रावला क्षेत्र में हथकढ़ शराब का कारोबार करने वालों के ठिकानों पर छापे मारे। इस दौरान हथकढ़ शराब व लाहन भी नष्ट किया गया। इसी तरह की कार्रवाई पिछले हिन्दुमलकोट क्षेत्र में भी की गई थी। अवैध काम के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई होनी भी चाहिए बल्कि लगातार होनी चाहिए ताकि अवैध कारोबार पर अंकुश लगे। साथ ही इस कारोबार से जुड़े लोगों में भय व्याप्त हो, लेकिन ऐसा होता नहीं है। समय-समय पर कार्रवाई होती ही नहीं है और जो कार्रवाई होती है, उसके पीछे भी कुछ निहितार्थ छिपे हुए होते हैं। शराब मामले से जुड़ा एक दूसरा पहलू हैं, लेकिन यहां आबकारी विभाग व पुलिस दोनों ही खामोश हैं। दोनों के पास इसका कोई ठोस जवाब नहीं हैं हां, इस बात से बचने के खूबसूरत बहाने जरूर हैं। दोनों विभागों में से कौन यह बताएगा कि रात आठ बजे बाद शहर व जिले के लगभग तमाम ठेकों पर बिकने वाली शराब अवैध नहीं है? निर्धारित से ज्यादा कीमत वसूलना अवैध नहीं है? ठेके के बाहर रेट लिस्ट चस्पा न करना अवैध नहीं है? यह ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब दोनों विभागों के पास हैं, लेकिन आबकारी विभाग ने तो टारगेट पूरा करने के चक्कर में ठेकेदारों को मनमर्जी करने की अघोषित छूट दे रखी है तो पुलिस भी कानून व्यवस्था भंग नहीं होने तक कार्रवाई नहीं करती। इस तरह के हालात से कभी-कभी यह भी
शक भी होता है कि इस मसले पर दोनों विभागों के बीच अंदरखाने कोई गुप्त समझौता है, क्योंकि हथकढ़ व लाहन के खिलाफ कार्रवाई के दौरान जो सहयोग व सामंजस्य दोनों विभागों के बीच होता है, वैसा अंग्रेजी शराब को लेकर क्यों नहीं हैं? क्या यह दोहरा रवैया नहीं? क्या यह दोहरा मापदंड नहीं है? आबकारी विभाग की पिछले दिनों ओवररेट मामले में कुछ दुकानों पर गई कथित कार्रवाई भी चर्चा का विषय बनी है। इस मामले में किस दुकानदारों को सजा मिली, कितना जुर्माना लगा, यह आज भी अपने आप में राज ही है, अलबत्ता आबकारी ने इस कार्रवाई को प्रचारित कर तात्कालिक रूप से वाहवाही जरूर बटोर ली।
बहरहाल, वैसे दोनों ही विभागों को इस मामले में इस कदर आंखें नहीं मूंदनी चाहिए। अवैध काम अवैध ही होता है। अवैध के मामले में कोई भेद नहीं होता है। वह चाहे हथकढ़ शराब हो या शराब की देर रात तक या निर्धारित मूल्य से बिक्री हो। दोनों विभागों का तालमेल व सामंजस्य भी वैसा ही दिखना चाहिए जैसा हथकढ़ के मामले में दिखाई देता है।  हथकढ़ के खिलाफ कार्रवाई भी प्रायोजित किसी खास प्रयोजन के लिए ही की जाती है। यहां भी मूल बात ठेकेदारों को हथकढ़ से हो रहे नुकसान से बचाना ही है। मतलब दोनों ही विभाग दोनों की जगह केवल ठेकेदारों का ही ख्याल रख रहे हैं। उपभोक्ताओं व कानून व्यवस्था से भी इनको सरोकार होना चाहिए।

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 25 मई 18 के अंक में प्रकाशित 

इक बंजारा गाए-32

अंदर की बात
कई बार जो वास्तव में होता है वह दिखाई नहीं देता। और जो दिखाई देता है वह पूरा सच नहीं होता। ऐसा सभी मामलों में नहीं होता है लेकिन कभी-कभार हो जाता है। श्रीगंगानगर के गोलबाजार स्थित एक होटल का मामला जिस तेजी से उछला उसी गति से शांत भी हो गया। लोगों के समझ नहीं आ रहा है कि आखिर बिना कोई कार्रवाई हुए यह मामला यकायक ठंडा कैसे पड़ गया। आखिर इसके पीछे का राज क्या है। दबे स्वर में चर्चा हो रही है कि इस मामले में शिकायत करने वाले ही बैकफुट पर आ गए। इतना ही नहीं कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि दोनों ही पक्षों में अंदरखाने समझौता हो गया। लिहाजा अब होटल के टूटने या हटने का खतरा फिलहाल तो टल गया बताते हैं। वैसे बताया जा रहा है कि गोलबाजार में ही एक अन्य मल्टी स्टोरी बिल्डिंग को लेकर भी शिकायतें खूब हो रही हैं लेकिन प्रशासन इस पर कार्रवाई करने से हिचकिचा रहा है। इस बिल्डिंग के बेनामी मालिक शहर के प्रभावशाली लोग बताए जा रहे हैं।
राजनीति का चस्का
राजनीति का चस्का जिसको लग जाए फिर उसका तो फिर भगवान ही मालिक है। इन दोनों श्रीगंगानगर के सूरतगढ़ की दो महिलाओं पर राजनीति का जबरदस्त चस्का लगा है। शराब बंदी के बहाने दोनों सियासत में आना चाहती हैं। दोनों रिश्ते में देवरानी-जेठानी लगती हैं लेकिन दोनों में प्रतिद्वंद्विता इस कदर है कि एक ने तो दूसरी को पहचाने से ही इनकार कर दिया। भला यह कैसे संभव हो सकता कि देवरानी अपनी जेठानी को ही न जाने, लेकिन राजनीति पता नहीं क्या-क्या करवा देती है। दोनों ही महिलाओं का खुद का कोई राजनीतिक अनुभव नहीं है लेकिन फिर भी दोनों जुटी हुई हैं। दबे स्वर में चर्चा है कि इन दोनों महिलाओं के पीछे कोई दूसरी ताकत काम कर रही है। जेठानी के तामझाम देखकर तो लोग माथा पकड़ लेते हैं। लग्जरी गाड़ी, सुरक्षाकर्मी और पीआरओ की टीम। इस तरह के जलवे देखकर कहा जा रहा है कि जरूर पर्दे के पीछे कोई है जो इनका समर्थन कर रहा है।
सीएम का सपना
सपने दिखाने और बड़े-बड़े वादे करने वाले सेठजी का एक बयान इन दिनों अच्छी खासी चर्चा में है। हुआ यूं कि कभी सेठजी की पार्टी से चुनाव जीतकर विधानसभा में जाने वाले एक महिला नेत्री का अचानक सेठजी की पार्टी से मोह भंग हो गया। इतना ही नहीं महिला नेत्री ने उस पार्टी का दामन थाम लिया, जिससे इन दिनों सेठजी का वास्ता कम ही पड़ा है। खैर, चर्चा व चटखारे की बात तो यह है कि महिला नेत्री के जाने के बाद सेठजी प्रचारित कर रहे हैं कि वो तो उसको सीएम तक बनाना चाह रहे थे। अब सीएम का सपना उन्होंने दिखाया या नहीं यह तो सेठजी या महिला नेत्री ही जाने लेकिन इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में हंसी के फव्वारे छूट रहे हैं। हंस-हंस के लोगों के पेट में बल पड़ रहे हैं। महिला नेत्री ने तो पुराने पार्टी को छोटा कह कर अपनी बात पूरी कर दी अब तो सेठजी ही बता पाएंगे कि वो महिला नेत्री को सीएम बनाने का सपना आखिरकार कैसे पूरा करके दिखाते।
पानी की कहानी
श्रीगंगानगर में इन दिनों प्रदूषित पानी का मामला गहराया हुआ है। सभी राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब से पानी को लेकर धरना प्रदर्शन आदि कर रहे हैं। कई संगठन भी इस मामले में सक्रिय है। सभी अपने अपने स्तर पर पानी को दूषित बता रहे हैं। इसके लिए आरोप-प्रत्यारोप तक भी लग रहे हैं। एक दल दूसरे दल को जिम्मेदार बता रहा है, जबकि हकीकत में यह मसला पुराना है। कोई भी दल इस मसले से अछूता नहीं है। सभी ने इस मसले को देखा और जाना है लेकिन समाधान के मामले में आंख मूंद ली है। वैसे भी सरकारें आमजन को स्वच्छ व शुद्ध पानी पिलाने का दावा तो जरूर करती हैं लेकिन दावा शायद ही कभी पूरा हो पाता है। कल केन्द्रीय मंत्री के घेराव में भी उनकी पार्टी के कम और दूसरे दल के लोग ज्यादा थे, जबकि दूषित पानी की समस्या सबकी है। इस मसले को तो दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचना चाहिए लेकिन फिर भी सब अपनी-अपनी ढपली अलग-अलग तरीके से बजाने से बाज नहीं आ रहे।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 24 मई 18 के अंक में प्रकाशित 

पड़ोसी धर्म निभाए पंजाब

टिप्पणी
एक अच्छे पड़ोसी का दायित्व होता है कि वह दुख-दर्द में काम आए, लेकिन राजस्थान के पड़ोसी प्रदेश पंजाब ने पड़ोसी धर्म शायद ही निभाया हो। बात चाहे नहरों में प्रदू्िरषत पानी की हो या फिर गाहे-बगाहे पानी रोकने या कम करने की। पंजाब ने हमेशा मनमानी कर अपनी बात ही ऊपर रखी है। ताजा मामला नहरों में काला व बदबूदार पाने आने का है। यह पानी इतना जहरीला है कि जलदाय विभाग ने इसके डिग्गियों मंे भंडारण तक रोक लगा रखी है। वैसे पंजाब से राजस्थान आने वाली नहरों में प्रदूषित पानी आने का यह कोई पहला मामला नहीं है। पंजाब की औद्योगिक इकाइयों व शहरों का रासायनिक अपशिष्ट सतलुज और व्यास नदियों में डाला जाता रहा है। नहरों में दूषित पानी आने का यह सिलसिला सदियों से चल रहा है लेकिन आज तक न तो किसी के खिलाफ कार्रवाई हुई और न ही इस समस्या का समाधान हुआ। इस नहरी का पानी का उपयोग खेती के साथ-साथ पीने के लिए भी किया जाता है। इस नहरी पर पानी श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ सहित प्रदेश के दस जिले निर्भर हैं। सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि श्रीगंगानगर में दूषित पानी की जांच करने वाली प्रयोगशाला में पूरी एवं सघन जांच नहीं हो पाती। क्षेत्र के लोग लंबे समय से यहां विशेष प्रयोगशाला की मांग करते आ रहे हैं लेकिन सरकार ध्यान नहीं दे रही। नहरों की मरम्मत के नाम पर अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं लेकिन पानी शुद्ध व स्वच्छ मिले इसके लिए गंभीरता से प्रयास नहीं हो रहे हैं। श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ जिलों में कैंसर रोगियों के बढ़ते आंकड़ों के बावजूद सरकार जाग नहीं रही है। जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं खोजा गया तो प्रदेश के दस जिलों के करीब तीन करोड़ लोगों की नस्ल विकृत हो सकती है। इसलिए स्वास्थ्य से सरेआम हो रहा यह खिलवाड़ अब स्थायी समाधान चाहता है। वरना परिणाम भयावह हो सकते हैं।
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 राजस्थान पत्रिका के जयपुर संस्करण में 23 मई 18 के अंक में प्रकाशित