Thursday, September 8, 2011

दूरदर्शिता का अभाव

टिप्पणी

तीन साल पहले जिस उद्‌देश्य के साथ शहर में ऑडिटोरियम का निर्माण शुरू हुआ था, वह अभी तक अधूरा ही है। इस ऑडिटोरियम को दो साल में बनकर तैयार तैयार होना था लेकिन यह शुरुआती दौर में ही विवादों में घिर गया। अभी तक इसका बेसमेंट पार्किंग का काम ही हो सका है जबकि इस ऑडिटोरियम में बेसमेंट में कार और भूतल पर दो पहिया वाहनों के पार्किंग का निर्माण किया जाना है। इसके अलावा ऊपरी तल पर ऑडिटोरियम तथा ओपन थियेटर का निर्माण भी प्रस्तावित है। वर्तमान में ऑडिटोरियम का निर्माण कार्य बंद है, क्योंकि इसकी ड्राइंग डिजाइन पर आपत्ति उठने के बाद उसे  निरस्त कर दिया गया। नगर निगम प्रशासन फिलहाल नई डिजाइन का इंतजार कर रहा है। जैसे ही नई डिजाइन आएगी कार्य फिर से शुरू होगा।
ऑडिटोरियम निर्माण पर महापौर भी सवाल उठा चुकी हैं। उन्होंने बाकायदा सदन में आरोप लगाया था कि ऑडिटोरियम का निर्माण गलत तरीके से हो रहा है तथा इससे कभी भी जनहानि हो सकती है। इधर, निगम के अधिकारी महापौर के आरोपों में दम नहीं बता रहे हैं। भले ही निगम के अधिकारी कुछ भी कहें लेकिन ऑडिटोरियम को लेकर जो हालात उपजे हैं, उससे अनियमितता की आशंका बलवती को उठी है। इन बातों से इतना तो तय है कि ऑडिटोरियम के निर्माण कार्य को निगम अधिकारियों ने गंभीरता से नहीं लिया। साथ ही कई ऐसे सवाल भी उठ खड़े हुए हैं, जिनसे निगम की भूमिका संदिग्ध दिखाई दे रही है। मसलन, आम लोगों को भवन निर्माण के दौरान नियम-कायदों की औपचारिकता में अटका देने वाले निगम अधिकारियों ने इस काम की कार्ययोजना पहले से तैयार क्यों नहीं की? जिस डिजाइन पर हंगामा बरपा है, उसको तैयार करने में गंभीरता क्यों नहीं बरती गई? ऑडिटोरियम बनने की निर्धारित समयावधि की पालना क्यों नहीं की गई? सहित ऐसे कई सवाल हैं, जो निगम अधिकारियों  को कठघरे में खड़ा करते हैं। जाहिर सी बात है कि निर्धारित समयावधि गुजर जाने के कारण ऑडिटोरियम के लिए प्रस्तावित लागत सात करोड़ 80 लाख 58 हजार में भी वृद्धि होगी।
बहरहाल, इस समूचे मामले से इतना तो तय है कि अनुभवहीन एवं अदूरदर्शी अधिकारियों के  हाथों में अगर इसी प्रकार बड़ी जिम्मेदारी दी जाती रही तो योजनाओं का हश्र ऐसा ही होगा। निगम के उच्च अधिकारी अगर बड़े प्रोजेक्ट की कार्ययोजना तैयार करवाने में किसी अनुभवी एवं दूददर्शी अधिकारी को तरजीह दें तो निसंदेह उसके परिणाम भी आशातीत आएंगे। इतना ही नहीं योजनाओं में गंभीरता न बरतने वाले तथा अदूरदर्शितापूर्ण निर्णय लेने वाले अधिकारियों से अतिरिक्त खर्च होने वाली राशि वसूलने का प्रावधान भी हो ताकि कोई ऐसी हिमाकत ही नहीं करे।

साभार : बिलासपुर पत्रिका के 8 सितम्बर 11 के अंक में प्रकाशित।